〽️बग़दाद के हाकिम इब्राहीम बिन इसहाक़ ने एक रात ख़्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु व सल्लम को देखा और हुज़ूरﷺ ने उससे फ़रमाया "क़ातिल को रिहा कर दो” ये हुक्म सुन कर हाकिम बग़दाद कांपता हुआ उठा और मातहेत अम्ले से पूछा के क्या कोई ऐसा मुज्रिम भी है जो क़ातिल हो? उन्होंने बताया के हाँ एक ऐसा शख़्स भी है जिस पर इल्ज़ाम क़त्ल है। हाकिम बग़दाद ने कहा उसे मेरे सामने लाओ।

चुनाँचे उसे लाया गया, हाकिमें बग़दाद ने पूछा के सच सच बताओ वाक़या क्या है? उसने कहा सच कहूँगा झुट हरगिज़ ना बोलूंगा, बात ये हुई के हम चन्द आदमी मिलकर अय्याशी व बदमाशी किया करते थे एक बूढ़ी औरत को हम ने मुकर्रर कर रखा था जो हर रात किसी बहाने से कोई ना कोई औरत ले आती थी। एक रात वो एक ऐसी औरत को लाई जिसने मेरी दुनिया में इंक़िलाब बर्पा कर दिया।

बात ये हुई के वो नोवारिद औरत जब हमारे सामने आई तो चीख़ मार कर और बेहोश होकर गिर गई। मैंने उसे उठा कर एक दूसरे कमरे में लाकर उसे होश में लाने की कोशिश की और जब वो होश में आ गई तो उससे चीख़ने और बेहोश होने की वजह पूछी, वो बोली ऐ नोजवान! मेरे हक़ में अल्लाह से डर। फिर कहती हूँ के अल्लाह से डर! ये बुढ़िया तो मुझे बहाने ही बहाने से इस जगह ले आई है देखः-

"मैं एक शरीफ़ औरत हूँ और सय्यदा हूँ, मेरे नाना रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मेरी माँ फ़ातिमा-त-उज़्ज़ोहरा हैं, ख़बरदार इस निस्बत का लिहाज़ रखना और मेरी तरफ़ बद निगाही से ना देखना।"

मैंने जब उस पाक औरत से जो सय्यदा थी ये बात सुनी तो लरज़ गया और अपने दोस्तों के पास आकर उन्हें हक़ीक़त हाल से आगाह किया और कहा के अगर आक़्बत की ख़ैर चाहते हो तो इस मुकर्रमा व मोअज़्ज़मा
ख़ातून की बे अदबी ना होने पाए। मेरे दोस्तों ने मेरे इस वाज़ से ये समझा के शायद मैं उनको हटा कर खुद तनहा ही इरतिक़ाबे गुनाह करना चाहता हूँ और उनसे धोका कर रहा हूँ इस ख़याल से मुझ से लड़ने पर आमादा हो गए।

मैंने कहा मैं तुम लोगों को किसी सूरत में इस अम्रे शीनअ की इजाज़त ना दूंगा लड़ूँगा, मर जाऊंगा मगर उस सय्यदा की तरफ बद निगाही मंजूर ना करूगा।

चुनाँचे वो मुझ पर झपट पड़े और मुझे उनके हमले से एक ज़ख्म भी आ गया और इसी असना में एक शख़्स जो उस सय्यदा के कमरे की तरफ़ जाना चाहता था मेरे रोकने पर मुझ पर जो हमला आवर हुआ तो मैंने उस पर छुरी से हमला कर दिया और उसे मार डाला फिर उस सय्यदा को अपनी हिफाज़त में लेकर बाहर निकाला तो शोर मच गया छुरी मेरे हाथ में थी मैं पकड़ा गया और आज ये बयान दे रहा हूँ।

हाकिमे बग़दाद ने कहा, जाओ तुम्हें रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के हुक्म से रिहा किया जाता है।

#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफा-813)


🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी उम्मत के हर नेक व बद आदमी और हर नेक व बद अमल को जानते और देखते हैं और ये भी मालूम हुआ के हुज़ूरﷺ की निस्बत के लिहाज़ व अदब से आदमी का अंजाम अच्छा हो जाता है। लिहाज़ा हर उस चीज़ का दिल में अदब व एहत्राम रखना चाहिए जिसका हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से ताल्लुक़ हो।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 63-64, हिकायत नंबर- 48

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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