〽️हुज़ूर
सरवरे-आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ का जब वक्त आया तो
मलक-उल-मौत जिब्राईल की मईयत में हाज़िर हुआ, जिब्राईले अमीन ने अर्ज कियाः-
या रसूलल्लाहﷺ! ये मलक-उल-मौत आया है और आप से इजाजत तलब करता है, हुज़ूर! उसने आज तक कभी ना किसी से इजाज़त ली है और ना आपके बाद किसी से इजाज़त लेगा। हुज़ूर अगर इजाज़त दें तो अपना काम करे।
हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया- मलक-उल-मौत को आगे आने दो चुनाँचे मलक-उल-मौत आगे बढ़ा और अर्ज़ करने लगा- या रसूलल्लाहﷺ! अल्लाह तआला ने मझे आपकी तरफ़ भेजा है और मुझे ये हुक्म दिया है के मैं आपका हर हुक्म माँनू और जो आप फ़रमाएँ वही करूँ, लिहाजा आप अगर फ़रमाएँ तो मैं रूह मुबारक कब्ज़ करूँ वरना वापस चला जाऊँ।
जिब्राईल ने अर्ज किया- हुज़ूरﷺ! खुदा बंद करीम आपके लिए विसाल को चाहता है। हज़ूर ﷺ ने फरमया तो ऐ मलक-उल-मौत तुम्हें जान लेने की इजाज़त है।
जिब्राईल बोले हुज़ूरﷺ! अब जब के आप तशरीफ़ लिए जा रहे हैं तो फिर ज़मीन पर मेरा ये आखिरी फैरा है इसलिए के मेरा मक्सूद तो आप ही थे, इसके बाद मलक-उल-मौत कब्ज़ रूहे अनवर के शरफ़ से मुशर्रफ हुआ।
#(मवाहिब-उल-लुदनिया, सफा- 571, जिल्द- 4; मिश्कात शरीफ, सफा- 541)
🌹सबक ~
=========
हमारे हुज़ूर ﷺ की इतनी बड़ी शान है के वो मलक-उल-मौत जिसने कभी किसी बड़े से बड़े बादशाह से भी इजाज़त नहीं ली हमारे हुज़ूर की खिदमत में हाजिर होकर पहले इजाज़त तलब करता है और यूँ कहता है के अगर आप फ़रमाएँ तो जाँ लू वरना वापस चला जाऊँ और खुदा उसे ये हुक्म देकर भेजता है के मेरे महबूब की इताअत करना, जो वो फरमाएँ वही करना बावजूद उसके जो गुस्ताख़ हुज़ूर ﷺ को अपनी मिस्ल कहते हैं किस क़द्र गुमराह हैं क्या कभी उनसे भी मलक-उल-मौत ने इजाज़त ली है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 55, हिकायत नंबर- 35
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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या रसूलल्लाहﷺ! ये मलक-उल-मौत आया है और आप से इजाजत तलब करता है, हुज़ूर! उसने आज तक कभी ना किसी से इजाज़त ली है और ना आपके बाद किसी से इजाज़त लेगा। हुज़ूर अगर इजाज़त दें तो अपना काम करे।
हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया- मलक-उल-मौत को आगे आने दो चुनाँचे मलक-उल-मौत आगे बढ़ा और अर्ज़ करने लगा- या रसूलल्लाहﷺ! अल्लाह तआला ने मझे आपकी तरफ़ भेजा है और मुझे ये हुक्म दिया है के मैं आपका हर हुक्म माँनू और जो आप फ़रमाएँ वही करूँ, लिहाजा आप अगर फ़रमाएँ तो मैं रूह मुबारक कब्ज़ करूँ वरना वापस चला जाऊँ।
जिब्राईल ने अर्ज किया- हुज़ूरﷺ! खुदा बंद करीम आपके लिए विसाल को चाहता है। हज़ूर ﷺ ने फरमया तो ऐ मलक-उल-मौत तुम्हें जान लेने की इजाज़त है।
जिब्राईल बोले हुज़ूरﷺ! अब जब के आप तशरीफ़ लिए जा रहे हैं तो फिर ज़मीन पर मेरा ये आखिरी फैरा है इसलिए के मेरा मक्सूद तो आप ही थे, इसके बाद मलक-उल-मौत कब्ज़ रूहे अनवर के शरफ़ से मुशर्रफ हुआ।
#(मवाहिब-उल-लुदनिया, सफा- 571, जिल्द- 4; मिश्कात शरीफ, सफा- 541)
🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर ﷺ की इतनी बड़ी शान है के वो मलक-उल-मौत जिसने कभी किसी बड़े से बड़े बादशाह से भी इजाज़त नहीं ली हमारे हुज़ूर की खिदमत में हाजिर होकर पहले इजाज़त तलब करता है और यूँ कहता है के अगर आप फ़रमाएँ तो जाँ लू वरना वापस चला जाऊँ और खुदा उसे ये हुक्म देकर भेजता है के मेरे महबूब की इताअत करना, जो वो फरमाएँ वही करना बावजूद उसके जो गुस्ताख़ हुज़ूर ﷺ को अपनी मिस्ल कहते हैं किस क़द्र गुमराह हैं क्या कभी उनसे भी मलक-उल-मौत ने इजाज़त ली है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 55, हिकायत नंबर- 35
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