〽️एक मर्दै सालेह को एक काफ़िर बादशाह ने गिरफ़्तार कर लिया वो फ़रमाते हैं उस बादशाह का एक बहुत बड़ा जहाज़ दरिया में फंस गया था, जो बड़ी कोशिश के बावजूद दरिया से निकल ना सका। आख़िर एक दिन जिस क़द्र क़ैदी थे उनको बुलाया गया ताकी वो सब मिलकर उस जहाज़ को निकालें।

चुनाँने उन क़ैदियों ने जिनकी तअदाद तीन हज़ार थी मिलकर कोशिश की मगर फिर भी वो जहाज़ निकल ना सका फिर उन क़ैदियों ने बादशाह से कहा के जिस क़द्र मुसलमान क़ैदी हैं उनको कहिये वो ये जहाज़ निकाल सकेंगे लेकिन शर्त ये है के वो जो नअरा लगाएँ उन्हें रोका ना जाए, बादशाह ने ये बात तसलीम कर ली और सब मुसलमान क़ैदियों को रिहा कर के कहा के तुम अपनी मर्जी के मुताबिक जो नअरा लगाना चाहो लगाओ और उस जहाज़ को निकालो।

वो मर्दै सालेह फरमाते हैं के हम सब मुसलमान क़ैदियों की तअदाद चार सौ थी हम ने मिल कर नअराऐ रिसालत लगाया और एक आवाज से “या रसूलल्लाहﷺ" कहा और जहाज़ को एक धक्का लगाया तो वो जहाज़ अपनी जगह से हिल गया फिर हम ने नअरा लगाते हुए उसे रूकने नहीं दिया हत्ता के उसे बाहर निकाल दिया।

#(शवाहिद-उल-हक-लिलनबहानी, सफा-163)


🌹सबक़ ~
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नअराऐ रिसालत मुसलमानों का मेहबूब नअरा है और मुसलमानों ने उसे हमेशा अपनाए रखा और उस नामे
पाक से बड़े-बड़े मुश्किल काम हल हो जाते हैं फिर जो शख़्स उस नअरा की मुख़ालफ़त करे किस क़द्र बेख़बर है।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 65-66, हिकायत नंबर- 50

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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