〽️असकन्द्रिया की एक औरत उम्मे फातिमा मदीना मुनव्वरह में हाज़िर हुई तो उसका एक पैर जख्मी और मुतावर्रिम हो गया हत्ता के वो चलने से रह गई लोग मक्का मोअज़्ज़मा जाने लगे मगर वो वहीं रह गई, एक दिन वो किसी तरह रोजाऐ अनवर पर हाज़िर हुई और रोजाऐ अनवर का तवाफ़ करने लगी तवाफ़ करती जाती और ये कहती जाती, या हबीबी या रसूलल्लाहﷺ लोग चले गए और मैं रह गई, हुज़ूरﷺ! या तो मुझे वापस भेजिए या फ़िर अपने पास बुला लीजिए ये कह रही थी के तीन अरबी नोजवान मस्जिद में दाख़िल हुए और कहने लगे के कौन मक्का मोअज़्ज़मा जाना चाहता है।

उम्मे फातिमा ने जल्दी से कहा मैं जाना चाहती हूँ उनमें से एक बोला तो उठो, उम्मे फातिमा बोली मैं उठ नहीं सकती उसने कहा अपना पैर फैलाओ तो उम्मे फातिमा ने मतावर्रिम पैर फैला दिया उसका जो अब मुतावर्रिम पैर देखा तो तीनों बोले हाँ यही वो है और फिर तीनों आगे बढ़े और उम्मे फ़ातिमा को उठा कर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचा दिया और दरयाफ्त करने पर उनमें से एक नोजवान ने बताया के मुझे हुज़ूरﷺ ने ख्वाब में हुक़्म फरमाया था के उस औरत को मक्का पहुँचा दो उम्मे फातिमा कहती हैं के मैं बड़े आराम से मक्का पहुँच गई।

#(शवाहिद-उल-हक, सफा-164)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम आज भी हर फ़रियादी की फ़रियाद सुनते हैं और हर मुश्किल
हल फ़रमा देते हैं, बशर्त ये के फ़रियादी दिल और सच्ची अक़ीदत से या हबीबी या रसूल अल्लाहﷺ कहने का भी आदी हो।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 59, हिकायत नंबर-42
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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