〽️हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जब जन्नत से ज़मीन पर तशरीफ़ लाये तो ज़मीन के जानवर आपकी ज़ियारत को हाज़िर होने लगे।
हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हर जानवर के लिए उसके लायक दुआ फ़रमाते। उसी तरह जंगल के कुछ हिरन भी सलाम करने और ज़ियारत की नीयत से हाज़िर हुए। आपने अपना हाथ मुबारक उनकी पुश्तों पर फेरा और उनके लिए दुआ फरमाई, तो उनमें नाफ़ाऐ मुश्क पैदा हो गई। वो हिरन जब ये खुश्बू का तोहफा लेकर अपनी क़ौम में वापस आए तो हिरनों के दूसरे गिरोह ने पूछ कि ये खूश्बू तुम कहाँ से ले आए? वो बोले अल्लाह का पैग़म्बर आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से ज़मीन पर तशरीफ़ लाये हैं। हम उनकी ज़ियारत के लिए हाज़िर हुए थे तो उन्होंने रहमत भरा अपना हाथ हमारी पुश्तों पर फेरा तो ये खूश्बू पैदा हो गई। हिरनों का वो दूसरा गिरोह बोला तो फिर हम भी जाते हैं।
चुनाँचे वो भी गए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उनकी पुश्तों पर भी हाथ फेरा मगर उनमें वो खूश्बू पैदा ना हुई और वो जैसे गए थे वैसे के वैसे ही वापस आ गए। वापस आकर वो मुतअज्जिब होकर बोले कि ये क्या बात है?
तुम गए तो खूश्बू मिल गई और हम गए तो कुछ ना मिला। पहले गिरोह ने जवाब दिया- इसकी वजह ये है के हम गए थे सिर्फ ज़ियारत की नीयत से, तुम्हारी नीयत दुरस्त ना थी।
#(नुज़हत-उल-मजालिस, सफ़ा-4, जिल्द-1)
🌹सबक़ ~
=========
अल्लाह वालों के पास नेक नीयती से हाज़िर होने में बहुत कुछ मिलता है और अगर किसी बदबख़्त को कुछ न मिले तो उसकी अपनी नियत का क़ुसूर होता है। अल्लाह वालों की दैन व अता का कोई क़ुसूर नहीं होता।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 71, हिकायत नंबर- 57
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हर जानवर के लिए उसके लायक दुआ फ़रमाते। उसी तरह जंगल के कुछ हिरन भी सलाम करने और ज़ियारत की नीयत से हाज़िर हुए। आपने अपना हाथ मुबारक उनकी पुश्तों पर फेरा और उनके लिए दुआ फरमाई, तो उनमें नाफ़ाऐ मुश्क पैदा हो गई। वो हिरन जब ये खुश्बू का तोहफा लेकर अपनी क़ौम में वापस आए तो हिरनों के दूसरे गिरोह ने पूछ कि ये खूश्बू तुम कहाँ से ले आए? वो बोले अल्लाह का पैग़म्बर आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से ज़मीन पर तशरीफ़ लाये हैं। हम उनकी ज़ियारत के लिए हाज़िर हुए थे तो उन्होंने रहमत भरा अपना हाथ हमारी पुश्तों पर फेरा तो ये खूश्बू पैदा हो गई। हिरनों का वो दूसरा गिरोह बोला तो फिर हम भी जाते हैं।
चुनाँचे वो भी गए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उनकी पुश्तों पर भी हाथ फेरा मगर उनमें वो खूश्बू पैदा ना हुई और वो जैसे गए थे वैसे के वैसे ही वापस आ गए। वापस आकर वो मुतअज्जिब होकर बोले कि ये क्या बात है?
तुम गए तो खूश्बू मिल गई और हम गए तो कुछ ना मिला। पहले गिरोह ने जवाब दिया- इसकी वजह ये है के हम गए थे सिर्फ ज़ियारत की नीयत से, तुम्हारी नीयत दुरस्त ना थी।
#(नुज़हत-उल-मजालिस, सफ़ा-4, जिल्द-1)
🌹सबक़ ~
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अल्लाह वालों के पास नेक नीयती से हाज़िर होने में बहुत कुछ मिलता है और अगर किसी बदबख़्त को कुछ न मिले तो उसकी अपनी नियत का क़ुसूर होता है। अल्लाह वालों की दैन व अता का कोई क़ुसूर नहीं होता।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 71, हिकायत नंबर- 57
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