〽️हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुस्ल मुबारक के वक्त सहाबाइक्राम अलेहिम-उरिज़वान सोचने लगे और आपस में कहने लगे के जिस तरह दूसरे लोगों के कपड़े उतार कर उनको गुस्ल दिया जाता है क्या इसी तरह हुज़ूरﷺ के कपड़े मुबारक भी उतार कर हुज़ूरﷺ को गुस्ल दिया जाएगा या हुज़ूरﷺ को कपड़ों समेत गुस्ल दिया जाए?

इस बात पर गुफ़्तगू कर रहे थे के अचानक सब पर नींद तारी हो गई और सब के सर उनके सीनों पर ढलक आए फिर सब को एक आवाज़ आई, कोई कहने वाला कह रहा था के तुम जानते नहीं ये कौन हैं? खबरदार! ये “रसूल अल्लाह” हैं इनके कपड़े ना उतारना इन्हें “कपड़ों समेत ही गुस्ल दो” फिर सब की आँखें खुल गईं और हुज़ूर को कपड़ों समेत ही गुस्ल दिया गया।

#(मवाहिब लदनिया, सफा-378, जिल्द-2; मिश्कात, सफा-537)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान सब से मुमताज़ और बरगज़ीदा है और कोई शख्स ऐसा नहीं जो उनकी मिस्ल हो। आपकी ये ज़िन्दगी आपका विसाल शरीफ, आपका गुस्ल शरीफ और आपका कब्र अनवार में रोनक अफ्रोज़ होना हर बात आपकी मुमताज़ है और कोई शख्स किसी बात में आपकी मिस्ल नहीं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 56, हिकायत नंबर- 37

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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