〽️मदीना मुनव्वरह में एक हाशमी औरत रहती थी उसे बअज़ लोग ईज़ा दिया करते थे एक दिन वो हुज़ूरﷺ के रोजे पर हाज़िर हुई और अर्ज़ करने लगी, या रसूलल्लाहﷺ! ये लोग मुझे ईज़ा देते हैं, रोजाऐ अनवर से आवाज़ आई। क्या मेरा असवाऐ हस्ना तुम्हारे सामने नहीं, दुश्मनों ने मुझे ईज़ाएँ दीं और मैंने सब्र किया। मेरी तरह तुम भी सब्र करो।

वो औरत फरमाती है के मुझे बड़ी तसकीन हुई और चन्द दिन के बाद मुझे ईज़ा देने वाले भी मर गए।

#(शवाहिद-उल-हक, सफ़ा-165)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही व सल्लम सबकी सुनते हैं और हर मज़लूम के लिए आप ही का दर, जाऐ
पनाह है और या रसूलल्लाहﷺ कहने से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही व सल्लम की जानिब से रहमत व तसकीन, हासिल होती है।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 59-60, हिकायत नंबर-43
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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