🕌 आयाते कुरआनिया में: पहली फ़स्ल 🕋
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2). व यकूनर्रसूलू अलैकुम शहीदा और यह रसूल तुम्हारे निगहबान व गवाह हों।
तफ़्सीरे अज़ीज़ी में इसी आयत के मातेहत हैं~
तर्जमा: हुजूर अलैहिस्सलाम अपने नूरे नबुव्वत की वजह से हर दीनदार के दीन को जानते हैं कि दीन के किस दरजा तक पहुंचा है, और उसके ईमान की हक़ीक़त क्या है, और कौन सा हिजाब उसकी तरक्क़ी से माने है, लिहाज़ा हुजूर अलैहिस्सलाम तुम्हारे गुनाहों को और तुम्हारे ईमानी दरजात को और तुम्हारे नेक व बद आमाल और तुम्हारे इख़्लास और निफ़ाक़ को पहचानते हैं, लिहाज़ा उनकी गवाही दुनिया में बहुक्मे शरअ उम्मत के हक़ में क़बूल और वाजिबुल अमल है।
तफ़्सीरे रूहुल_बयान में इसी आयत के मातहत है ~
तर्जमा: यह इस बिना पर है कि कलिमा शहीद में मुहाफ़िज़ और ख़बरदार के माना भी शामिल हैं और इस माना के शामिल करने में इस तरफ़ इशारा है कि किसी को आदिल कहना और सफ़ाई की गवाही देना गवाह के हालात पर बाख़बर होने से हो सकता है और हुजूर अलैहिस्सलाम की मुसलमानों पर गवाही देने के मानी यह हैं कि हुजूर अलैहिस्सलाम हर दीनदार के दीनी मरतबा को पहचानते हैं, पस हुजूर अलैहिस्सलाम मुसलमानों के गुनाहों को उनके ईमान की हकीकत को उनके अच्छे बुरे आमाल को उनके इख़्लास और निफा़क़ वग़ैरह को नूरे हक़ से पहचानते हैं और हुजूर अलैहिस्सलाम की उम्मत भी क़्यामत में सारी उम्मतों के यह हालात जानेगी मगर हुजूर अलैहिस्सलाम के नूर से।
तफ़्सीर ख़ाज़िन में इसी आयत के मातहत है ~
तर्जमा : फिर क़्यामत में हुजूर अलैहिस्सलाम को बुलाया जाएगा और रब तआला हुजूर अलैहिस्सलाम से आपकी
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2). व यकूनर्रसूलू अलैकुम शहीदा और यह रसूल तुम्हारे निगहबान व गवाह हों।
तफ़्सीरे अज़ीज़ी में इसी आयत के मातेहत हैं~
तर्जमा: हुजूर अलैहिस्सलाम अपने नूरे नबुव्वत की वजह से हर दीनदार के दीन को जानते हैं कि दीन के किस दरजा तक पहुंचा है, और उसके ईमान की हक़ीक़त क्या है, और कौन सा हिजाब उसकी तरक्क़ी से माने है, लिहाज़ा हुजूर अलैहिस्सलाम तुम्हारे गुनाहों को और तुम्हारे ईमानी दरजात को और तुम्हारे नेक व बद आमाल और तुम्हारे इख़्लास और निफ़ाक़ को पहचानते हैं, लिहाज़ा उनकी गवाही दुनिया में बहुक्मे शरअ उम्मत के हक़ में क़बूल और वाजिबुल अमल है।
तफ़्सीरे रूहुल_बयान में इसी आयत के मातहत है ~
तर्जमा: यह इस बिना पर है कि कलिमा शहीद में मुहाफ़िज़ और ख़बरदार के माना भी शामिल हैं और इस माना के शामिल करने में इस तरफ़ इशारा है कि किसी को आदिल कहना और सफ़ाई की गवाही देना गवाह के हालात पर बाख़बर होने से हो सकता है और हुजूर अलैहिस्सलाम की मुसलमानों पर गवाही देने के मानी यह हैं कि हुजूर अलैहिस्सलाम हर दीनदार के दीनी मरतबा को पहचानते हैं, पस हुजूर अलैहिस्सलाम मुसलमानों के गुनाहों को उनके ईमान की हकीकत को उनके अच्छे बुरे आमाल को उनके इख़्लास और निफा़क़ वग़ैरह को नूरे हक़ से पहचानते हैं और हुजूर अलैहिस्सलाम की उम्मत भी क़्यामत में सारी उम्मतों के यह हालात जानेगी मगर हुजूर अलैहिस्सलाम के नूर से।
तफ़्सीर ख़ाज़िन में इसी आयत के मातहत है ~
तर्जमा : फिर क़्यामत में हुजूर अलैहिस्सलाम को बुलाया जाएगा और रब तआला हुजूर अलैहिस्सलाम से आपकी