🕌 पांचवा बाब 🕋

तक़्लीद पर एतराज़ात और जवाबात के बयान में
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सवाल (3) कुरआने करीम ने तक़्लीद करने वालों की बुराइयां फरमाई हैं फरमाता है उन्होंने अपने पादरियों और जोगियों को अल्लाह के सिवा खुदा बना लिया, फिर अगर तुम में किसी बात का झगड़ा उठे तो उसको अल्लाह और रसूल की तरफ़ रुजू करो और यह कि यही मेरा सीधा रास्ता है तो इस पर चलो और राहें न चलो कि तुमको उसकी राह से जुदा कर देंगी, तो कहेंगे बल्कि हम तो उस पर चलेंगे जिस पर अपने बाप दादा को पाया, इन आयात और इन जैसी दूसरी आयात से मालूम होता है कि अल्लाह व रसूल के हुक्म के सामने इमामों की बात मानना तरीक़_ए_कुफ़्फ़ार है, और सीधा रास्ता एक ही है, चार रास्ता हन्फ़ी, शाफ़ई ,वग़ैरह टेढ़े रास्ते हैं वग़ैरह,

✳️ जवाब~ जिस तक़्लीद की कुरआन करीम ने बुराई फरमाई है उसको हम पहले बाब में ब्यान कर चुके हैं व ला तत्तबेउस सुबुला में यहूदीयत या नस्रानियत वग़ैरह ख़िलाफ़े इस्लाम रास्ते मुराद हैं।

हन्फ़ी, शाफ़ई ,वग़ैरह चन्द रास्ते नहीं, बल्कि एक स्टेशन की चार सड़कें या एक दरिया की चार नहरें हैं, वरना फिर तो ग़ैर मुक़ल्लेदीन की जमाअतें सनाई और ग़ज़्नवी का क्या हुक्म है, चन्द रास्ते होते हैं अक़ाइद बदलने से, चारों मज़्हब के अक़ाइद एक जैसे हैं, सिर्फ आमाल में फुरूई इख़्तिलाफ़ है, जैसा कि खुद सहाब_ए_किराम में
इख़्तिलाफ़ रहा।


सवाल (4) होते हुए मुस्तफा की गुफ़्तार मत मान किसी का क़ौल व किरदार फ़ितना दर दीन नबी अन्दाख़्तन्द।

✳️ जवाब ~ यह शेअर असल में चकड़ालवियों का है,
होते हुए किब्रिया की गुफ़्तार मत मान नबी का क़ौल व किरदार दूसरे शेअर भी इस तरह है।

मस्जिद दो ख़िश्त अलाहिदा साख्तन्द फ़ितना दर दीन नबी अन्दाख़्तन्द।

चार मज़हब का जवाब हमने अपने दीवान में दो शेअरों में इस तरह दिया है।

चार रूसुल चार फ़रिश्ते, चार कुतुब हैं ।
दीन चार सिलसिले दोनों चार, चार लुत्फ़ अजब है चार में ।
आतिश व आब व ख़ाक व बाद सब का उन्हीं से है सबात, चार का सारा माजरा ख़त्म है चार यार में।

चार का अदद तो ख़ुदा को बड़ा ही प्यारा है,
📚 किताबें भी चार भेजीं और दीन भी चार ही बनाए, इंसान का ख़मीर भी चार ही चीज़ों से किया वग़ैरह।

जब मक़्सूद के चारों रास्ते घिर गए तो फिर वहाँ पंहुँचना ना_मुम्किन। क्योंकि रास्ते चार ही हो सकते हैं, खान_ए_काबा के इर्द गिर्द चार तरफ नमाज़ होती है, मगर रुख़ सबका काबा तो ऐसे ही हुजूर अलैहिस्सलाम तो काबा ईमान हैं। चारों मज़हबों ने चारों रास्ते घेर लिए। वहाँ किस रास्ता से पहुँचेंगे।

जिस तरह कुरआन के होते हुए हदीस की ज़रूरत है, इसी तरह हदीस के होते हुए फ़िक़्ह, की ज़रूरत है, फ़िक़्ह, कुरआन व हदीस की तफ़्सीर है। और जो हुक्म कि हम को न हदीस में मिले न कुरआन में उसको फ़िक़्ह ही ब्यान फरमाता है।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-33-34

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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