🕌 चौथा बाब 🕋

तक़्लीद वाजिब होने के दलाइल में
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इस बाब में हम दो फ़स्लें लिखते हैं, पहली फ़स्ल में तो सिर्फ तक़्लीद के दलाइल हैं, दूसरी में तक़्लीदे शख़्सी के दलाइल।

फ़स्ले अव्वल ~ तक़्लीद का वाजिब होना कुरआनी आयात और अहादीसे सहीहा और अमले उम्मत और अक़्वाले मुफ़स्सेरीन से साबित है, तक़्लीद मुतलक़न भी और तक़्लीदे मुज्तहेदीन भी एक तक़्लीद का सुबूत है,

 (1). इहिदनस सिरातल मुस्तक़ीम सिरातल्लज़ी न अनअमत अलैहिम. सूर:फा़तिहा

तर्जमा - हम को सीधा रास्ता चला, उनका रास्ता जिन पर तूने एहसान किया,

इससे मालूम हुआ कि सिराते मुस्तक़ीम वही है जिस पर अल्लाह के नेक बन्दे चले हों, और तमाम मुफ़स्सेरीन, मुहद्देसीन, फुक़हा, औलिया, अल्लाह, ग़ौस व कुतुब व अब्दाल अल्लाह के नेक बन्दे हैं वह सब ही मुक़ल्लिद गुज़रे लिहाज़ा तक़्लीद ही सीधा रास्ता हुआ।

कोई मुहद्दीस व मुफ़स्सिर, वली ग़ैर मुक़ल्लिद न गुज़रा, ग़ैर मुक़ल्लिद वह है जो मुज्तहिद न हो फिर तक़्लीद न करे, जो मुज्तहिद हो कर तक़्लीद न करे वह ग़ैर मुक़ल्लिद नहीं, क्योंकि मुज्तहिद को तक़्लीद करना मना है।

(2). ला युकल्लिफुल्लाहु नफ़्सन इल्रा वुरअहा (सूर, बकर)

तर्जमा - अल्लाह किसी जान पर बोझ नहीं डालता मगर उसकी ताक़त भर ।

इस आयत से मालूम हुआ कि ताक़त से ज्यादा काम की ख़ुदा तआला किसी को तक़्लीफ़ नहीं देता, तो जो शख्स
इत्तिहाद न कर सके और कुरआन से मसाइल न निकाल सके उससे तक़्लीद न कराना और उससे इस्तिबात (मसाइल निकालना) कराना ताक़त से ज्यादा बोझ डालना है ।

जब गरीब आदमी पर ज़कात और हज फ़र्ज़ नहीं है तो बे, इल्म पर मसाइल व इस्तिबात करना क्यों कर ज़रूरी होगा।

(3). वस्साबिकूनल अव्वलून मिनल मुहाजिरीना वल अंसारे वल्लज़ीना तबऊहुम बे एहसानिन रज़ि अल्लाहु अन्हुम व रज़ु अन्हु

और सब में अगले पिछले मुहाजिर व अंसार और जो भलाई के साथ उनके पैरू हुए अल्लाह उन से राज़ी और वह अल्लाह से राज़ी।

मालूम हुआ कि अल्लाह उनसे राज़ी है जो मुहाजिरीन और अंसार की इत्तेबा यानी तक़्लीद करते हैं, यह भी तक़्लीद हुई।

(4). अतीउल्लाहा व अतीउर्रसूला व ऊलिल अम्रे मिन्कुम।

इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और हुक्म वालों की जो तुम में से हों।

इस आयत में तीन ज़ातों की इताअत का हुक्म दिया गया, अल्लाह की कुरआन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की,, हदीस,, अम्र वालों की,, फ़िक़ह,, व इस्तिंबात के उलमा,,

मगर कलिमा अतीउल्लाह दो जगह लाया गया, अल्लाह के लिए एक और रसूल अलैहिस्सलाम और हुक्म वालों के लिए एक, क्योंकि अल्लाह की सिर्फ उसके फ़रमाने में ही इताअत की जाएगी न कि उसके फ़ेअल में और न उसके सुकूत में, वह कुफ़्फा़र को रोज़ी देता है कभी उनको ज़ाहिरी फ़तह देता है वह कुफ्र करते हैं मगर उनको फ़ौरन अज़ाब नहीं भेजता, हम इसमें रब तआला की पैरवी नहीं कर सकते कि कुफ़्फा़र की इमदाद करें ।

ब_ख़िलाफ़ नबी अलैहिस्सलाम व इमाम मुज्तहिद के कि, उनका हर हुक्म उनका हर काम और उनका किसी को कुछ काम करते हुए देख कर ख़ामोश होना तीनों चीज़ों में पैरवी की जाएगी।

इस फ़र्क़ की वजह से दो जगह अतीऊ फरमाया। अगर कोई कहे कि अम्र वालों से मुराद सुल्ताने इस्लामी है तो सल्ताने इस्लामी की इताअत शरई अहकाम में की जाएगी न कि ख़िलाफ़े शरअ चीज़ों में, और सुल्तान वह शरई अहकाम उलमा मुज्तहेदीन ही से मालूम करेगा, हुक्म तो असल में फ़क़ीह का होता है, इस्लामी सुल्तान महज़ उसका जारी करने वाला होता है, तमाम रिआया का हाकिम बादशाह और बादशाह का हाकिम आलिम मुज्तहिद, लिहाज़ा नतीजा वही निकला कि ऊलिल अम्रे उलमा_ए_मुज्तहेदीन ही हुए, और अगर बादशाहे इस्लामी भी मुराद लो जब भी तक़्लीद तो साबित हो ही गई आलिम की न हुई बादशाह की हुई।

यह भी ख़्याल रहे कि आयत में इताअत से मुराद शरई इताअत है। एक नुक्ता इस आयत में यह भी है कि अहकाम तीन तरह के हैं साफ़-साफ़ कुरआन से साबित जैसे कि जिस औरत ग़ैर हामिला का शौहर मर जाए तो उसकी इद्दत चार माह दस दिन है, उसके लिए हुक्म हुआ अतीउल्लाहा

दूसरे दो जो साफ़-साफ़ हदीस से साबित हैं, जैसे कि चांदी सोने का ज़ेवर मर्द को पहनना हराम है इसके लिए फरमाया व अतीउर्रसूला

तीसरे वह जो न तो सराहतन (साफ़-साफ़ ) कुरआन से साबित हैं न हदीस से जैसे कि औरत से इग़लाम करने की हुर्मते क़तई उसके लिए फरमाया गया ऊलिल अम्रे मिन्कुम तीन तरह के अहकाम और तीन हुक्म।

(5). फ़रअलू अहलज़्ज़िक्रे इन कुन्तुम ला तालमून. तो ऐ लोगों ! इल्म वालों से पूछो अगर तुमको इल्म नहीं

इस आयत से मालूम हुआ कि जो शख्स जिस मसला को न जानता हो वह अहले इल्म से दरयाफ़्त करे।

वह इज्तिहादी मसाइल जिनके निकालने की हम में ताक़त न हो मुज्तहेदीन से दरयाफ़्त किए जाएंगे, कुछ लोग कहते हैं कि इससे मुराद तारीख़ी वाक़ेआत हैं जैसा कि ऊपर की आयत से साबित है लेकिन यह सही नहीं, इसलिए कि इस आयत के कलिमात मुतलक़ बग़ैर क़ैद के हैं और पूछने की वजह है न जानना, तो जिस चीज़ को हम न जानते हों उसका पूछना लाज़िम है।

(6). वत्तबिअ सबीला मन अनाबा इलैया और उसकी राह चल जो मेरी तरफ रुजू लाया।

इस आयत से भी मालूम हुआ कि अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वालों की इत्तेबा तक़्लीद ज़रूरी है, यह हुक्म भी आम है, क्योंकि आयत में कोई क़ैद नहीं।

(7). तर्जमा और वह जो अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे रब हमको दे हमारी बीवियों और हमारी औलाद से आँखों में ठंडक और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना।

इस आयत की तफ़्सीर में तफ़्सीर मुआलिमुत्तंज़ील में है-

फ़नक़्तदी बिल, मुत्तक़ीना व यक़्तदी बिनल, मुत्तकून

हम परहेज़गारों की पैरवी करें और परहेज़गार हमारी पैरवी।

इस आयत से भी मालूम हुआ कि अल्लाह वालों की पैरवी और उनकी तक़्लीद ज़रूरी है।

(8). तर्जमा तो क्यों न हुआ कि उनके हर गरोह में से एक जमाअत निकले कि दीन की समझ हासिल करें और वापस आकर अपनी क़ौम को डर सुनाएं इस उम्मीद पर कि वह बचेंअ।

इस आयत से मालूम हुआ कि हर शख्स पर मुज्तहिद बनना ज़रूरी तो नहीं, बल्कि कुछ तो फ़क़ीह बनें और कुछ दूसरों की तक़्लीद करें।

(9). तर्जमा और अगर इसमें रसूल और अम्र वाले लोगों की तरफ़ रुजू करते तो ज़रूर इनमें से उसकी हक़ीक़त जान लेते वह जो इस्तिंबात करते हैं।

इससे साफ़ तौर पर मालूम हुआ कि अहादीस और अख़्बार कुर आनी आयात को पहले इस्तिंबात करने वाले उलमा के सामने पेश करें, फिर जिस तरह वह फरमा दें उस पर अमल करे, ख़बर से बढ़ कर कुरआन व हदीस है, लिहाज़ा इसका मुज्तहिद पर पर पेश करना ज़रूरी है।

(10). तर्जमा यौमा नदऊ कुल्ला उनासिन बिइमामेहिम जिस दिन हर जमाअत को उसके इमाम के साथ बुलाएंगे।

इसकी तफ़्सीर में तफ़्सीर रुहुल_ब्यान में है औ मुक़द्दमिन फ़िद्दीने फ़युक़ालु या हनफ़ीयुन या शाफ़ईयुन ये इमाम दीनी पेशवा है पस क़्यामत में कहा जाएगा कि ऐ हन्फ़ी ऐ शाफ़ई ।

इससे मालूम हुआ कि क़्यामत के दिन हर इंसान को उसके इमाम के साथ बुलाया जाएगा, यूँ कहा जाएगा कि ऐ हन्फ़ीयों, ऐ शाफ़इयों, ऐ मालकीयों, चलो तो जिसने इमाम ही न पकड़ा उसको किसके साथ बुलाया जाएगा उसके बारे में सूफिया_ए_किराम फ़रमाते हैं कि जिसका कोई इमाम नहीं उसका इमाम शैतान है।

(11). तर्जमा यानी जब उन से कहा जाता है कि ऐसा ईमान लाओ जैसा यह मुख़्लिस मोमिन ईमान लाए तो कहते हैं कि हम ऐसा ईमान लाएं जैसा यह बेवक़ूफ़ ईमान लाए।

मालूम हुआ कि ईमान भी वही मोतबर है जो सालेहीन का सा हो, तो मज़हब भी वही ठीक है जो नेक बन्दों की तरह हो और वह तक़्लीद है।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-25-28

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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