🕌 पांचवा बाब 🕋

तक़्लीद पर एतराज़ात और जवाबात के बयान में
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सवाल (5) तक़्लीद में ग़ैर ख़ुदा को अपना हकम बनाना है, और यह शिर्क है, लिहाज़ा तक़्लीदे शख़्सी शिर्क है रब तआला फरमाता है इनिल, हुक्मु इल्ला लिल्लाह नहीं है हुक्म मगर अल्लाह का।

जवाब ~ अगर ग़ैर ख़ुदा को हकम या पंच बनाना शिर्क है, तो हदीस मानना भी शिर्क हुआ, और सारे मुहद्देसीन व मुफ़स्सेरीन मुश्रिक हो गए क्योंकि तिर्मिज़ी, अबू दाऊद व मुस्लिम वग़ैरह हज़रात तो मुक़ल्लिद हैं और इमाम बुख़ारी वग़ैरह मुक़ल्लिदों के शागिर्द, देखो ऐनी शरह बुख़ारी, हमने दीवाने सालिक में इस सवाल का यह जवाब दिया-

जो तेरी तक़्लीद शिर्क होती
मुहद्देसीन सारे होते मुश्रिक।

बुख़ारी मुस्लिम व इब्ने माजा इमाम आज़म अबू हनीफ़ा।
कि जितने फुक़हा मुहद्देसीन हैं तुम्हारे ख़िरमन खूशा चीं हैं।
हों वास्ते से कि बेवसीला इमामा आज़म अबू हनीफ़ा।।

जिस रिवायत में एक फ़ासिक़ रावी आ जाए वह रिवायत ज़ईफ़ या मौज़ू है, तो जिस रिवायत में कोई मुक़ल्रिद आ जाए तो मुश्रिक आ गया, लिहाज़ा वह भी बातिल,

फिर तिर्मिज़ी व अबू दाऊद तो ख़ुद मुक़ल्लिद हैं मुश्रिक हुए, उनकी रिवायत ख़त्म हुई, बुख़ारी वग़ैरह पहले ही ख़त्म हो चुकी कि वह मुश्रिकों के शागिर्द हैं, अब हदीस कहाँ से लाओगे?

कुरआन पाक फ़रमाता है और अगर तुमको मियाँ बीवी के झगड़े का ख़ौफ़ हो तो एक हकम मर्द वालों की तरफ़
से भेजो और एक पंच औरत वालों की तरफ़ से भेजो।

हज़रत अली व मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने जंगे सिफ़्फ़ीन में हकम बनाया,

खुद हुजूर अलैहिस्सलाम ने बनी कुरैज़ा के मामले में हज़रत सअद इब्ने मआज़ रज़ि अल्लाहु अन्हु को हकम बनाया,

आयत के माना यह हैं कि हक़ीक़ी हुक्म ख़ुदा_ए_पाक ही का है और जो उसके सिवा के अहकाम हैं उलमा फ़ुक़हा और मशाइख़ के, इसी तरह अहकामे हदीस यह तमाम बिल, वास्ता ख़ुदा_ए_तआला ही के हकम हैं, अगर यह मानी हों कि किसी का हुक्म सिवाए खुदा के मानना शिर्क है तो आज तमाम दुनिया जज का फ़ैसला कचहरियों के मुक़द्दमात को मानती है सब ही मुश्रिक हो गए।


सवाल (6) क़्यासे मुज्तहिद गुमान है, और गुमान करना गुनाह है, कुरआन इससे मना करता है, कुरआन फरमाता है~

तर्जमा ऐ ईमान वालो बहुत गुमानों से बचो, बेशक कोई गुमान गुनाह हो जाता है और ऐब न ढूँढो, और एक दूसरे की ग़ीबत न करो, लिहाज़ा दीन में सिर्फ किताब व सुन्नत पर अमल चाहिए ।

जवाब~ इसका जवाब ख़ात्मा में आएगा कि क़्यास किसे कहते है और इसके अहकाम क्या हैं।


सवाल (7) इमाम हनीफ़ा फरमाते हैं कि जो हदीस सही साबित हो जाए वही मेरा मज़हब है, लिहाज़ा हमने उनके क़ौले हदीस के खिलाफ पाकर छोड़ दिए, इंशाअल्लाह ग़ैर मुक़ल्लिदों को इससे ज़्यादा दलाइल न मिलेंगे। उन्हीं को बना बिगाड़ कर या बढ़ा चढ़ा कर ब्यान करते हैं।

जवाब~ बेशक़ इमाम साहब का यह हुक्म है कि अगर मेरा क़ौल किसी हदीस सहीह के मुकाबिल आ जाए तो हदीस पर अमल करना मेरे मज़हब पर अमल करना है, यह इमाम साहब का इंतिहाई तक़्वा है और वाक़या भी यह है कि क़्यास मुज्तहिद वहाँ होता है जहाँ कुरआन व हदीस मौजूद न हो। लेकिन सवाल यह है कि इस ज़माने में दुनिया में ऐसा कौन मुसद्दिस है जो अहादीस का इस क़द्र ज़्यादा इल्म रखता हो कि तमाम अहादीस फिर उसकी तमाम सनदों पर इत्तला रखता हो, और यह भी जानता हो कि इमाम साहब ने यह हुक्म किस हदीस से लिया है, हम लोगों की नज़र सहाहे सित्ता से आगे नहीं होती, फिर किस तरह फ़ैसला कर सकते हैं कि इमाम का यह फ़रमान किसी हदीस से माख़ूज़ नहीं यूं तो हदीस में भी आता है कि।

तर्जमा~ जब तुमको मेरी कोई हदीस पहुँचे तो उसको किताबुल्लाह पर पेश करो, अगर उसके मुवाफ़िक़ हो तो कबूल कर लो वरना रद कर दो।

मुक़द्दमा तफ़सीराते अहमदिया सफ़ा 4 तो अगर कोई चकड़ालवी कहे कि बहुत हदीस चूंकि ख़िलाफे कुरआन हैं इसलिए हम हदीस को छोड़ते है, कुरआन में है कि मीरास तक़्सीम करो, हदीस में है कि नबी की मीरास तक़्सीम नहीं होती, जिस तरह यह कलाम रदशुदा है तुम्हारा क़ौल भी रद है।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-34-36

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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