🕌 दीबाचा 🕋
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मसलए इल्मे ग़ैब में अल_कलिमतुल_औलिया मुसन्निफ़ हज़रत सदरुल, अफ़ज़िल उस्ताज़ी व मुर्शिदी मौलाना अल, हाज सैयद मुहम्मद नईमुद्दीन साहब मुरादाबादी,

तीजा फ़ातिहा वग़ैरह में अनवारे सातिआ मुसन्निफ़ हज़रत मौलाना अब्दुस्समी साहब बेदिल रामपुरी

और मसाला हाज़िर व नाज़िर उर्स व ज़ियारते कुबूर व तमाम मसाइल में तस्नीफा़ते आला हज़रत मुजद्दिद मीअते हाज़िरह मौलाना अहमद रज़ा खाँ साहब बरैलवी कुद्देस सिर्रहुल ,अज़ीज़ वग़ैरह,

मगर ख्याल यह था कि कोई 📖 किताब ऐसी लिखी जाए जो कि इन तमाम बहसों की जामे हो, जिसके पास वह किताब हो वह तक़्रीबन हर मसअले में मुखा़लिफ़ से गुफ़्तगू कर सके और मुसलमानों के अका़इद को उन लोगों से बचा सके, इसलिए मैंने हस्बतन लिल्लाहि इस काम की हिम्मत की, हिम्मत तो कर दी मगर अपनी कम इल्मी और बे बज़ाअती का मुझको पूरा पूरा अहसास है, शुरू करना मेरा काम है और इसको अंजाम पर
पहुँचाना मेरे रब के करम पर ही है।

मैं अपने मोहतरम दोस्त जनाब मुंशी अहमद दीन साहब सेक्रेट्री अंजुमन ख़ुद्दामुस्सूफ़िया गुजरात का तहे दिल से मश्कूर हूँ जिन्होंने इस काम में मेरी पूरी-पूरी इमदाद फरमाइ कि इसके छपवाने का इंतिज़ाम फरमा दिया, खुदा तआला उनके माल व औलाद व ईमान में बरकतें दे।

इस किताब में हर मसला पर मुख़्तसर मगर मुकम्मल बहस की गई है जिन लोगों को ज़्यादा तफ़्सील मन्जूर हो तो वह मसल_ए_इल्मे_ग़ैब में अल्कलिमतुल-उलिया का मुताला करें कि ऐसी किताब इस मसला में आज तक नहीं लिखी गई,

इसी तरह दीगर बहसों में आला हज़रत बरैलवी कुद्देस सिर्रहुल, अज़ीज़ की किताबों 📚 का मुताला करें।

हिदायात

इस किताब में इन बातों का लिहाज़ रखा गया है-

(1). अपने दावा की वज़ाहत।

(2). उसके दलाइल कुरआन व हदीस और बुजुर्गाने दीन, मुहद्देसीश व मुफ़स्सेरीन के अक़्वाल से।

(3). उसकी ताईद मुखा़लिफ़ीन की 📚 किताबों से।

(4). मुखा़लिफ़ीन के एतराज़ात आयाते कुरआनिया और अहादीस व अक़्वाले फुक़हा से।

(5). एतराज़ात के जवाबात कुर आन व अहादीस व अक्वाले उल्मा की रौशनी में।

(6). अपने दावा के अक़्ली दलाइल।

(7). मुखा़लिफ़ीन के अक़्ली एतराज़ात।

(8). उनके अक़्ली जवाबात।

(9). इस बात का भी लिहाज़ रखा गया कि जहाँ तक हो सके किताबों का सफ, नम्बर नक़्ल किया जाए क्योंकि सफ बदल जाते हैं बल्कि बाब और फस्ल और अगर तफ़्सीर का हवाला हो तो पारा, सूरत और आयत।

नोट~ मगर प्रुफ़ के वक़्त बहुक्म मौलाना अब्दुल_हकीम शरफ़ क़ादरी, बुख़ारी व मुस्लिम जिल्द अव्वल और मिश्कात शरीफ़ का सफ_नम्बर दे दिया गया है, हवाले में फ़ारुकिया बुक डिपो के मत्बूआत से मदद ली गई है,

नाज़िरीन अगर ग़ौर से इस 📖 किताब का मुताला करेंगे तो इंशाअल्लाह तआला इसको एक समुन्दर पाएंगे जिससे बेश कीमत मोती हासिल होंगे, इस किताब में सख़्त अल्फ़ाज़ी और कज बहसी से परहेज़ किया गया है अहले इंसाफ से उम्मीद है कि हक़ क़बूल करें और बातिल से बचें कि इसी में दीन व दुनिया की भलाई है

वमा तौफ़ीक़ी इल्ला बिल्लाहे अलैहि तवक्कल्तु व इलैहि उनीब

इस किताब का नाम हज़रत कि़ब्लाए आलम अमीरे मिल्लत शैखुल_मशाइख़ कुतुबुल_वक़्त आलिमे रब्बानी पीर सैयद जमाअत अली शाह साहब मुहद्दिस अली पूरी दामत बरकातुहुम अल_कुदसिया ने

जा, अल, हक़, व ज़हक़ल, बातिल

तज्वीज़ फ़रमाया है,

मैं निहायत फ़ख्र से इस किताब को इसी नाम से मौसूम करता हूँ और अपने रब से उम्मीद करता हूँ कि इस किताब को इस्म बा, मुसम्मा फ़रमाए और अपने फ़ज़्ल व करम से इसको कुबूल फरमाए मेरे लिए कफ़्फ़ाराए सैय्यात बनाए और हुस्ने खा़तिमा नसीब फरमाए ।

आमीन
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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-13-14

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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