🕌 मुक़द्देमा 🕋
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चूंकि इस किताब में हर मसला के मुतअ़ल्लिक कुरआनी आयात पेश की जाएंगी और उन आयात की तफ़्सीर भी ब्यान होगी, इसलिए तफ़्सीरे कुरआन के मुत_अल्लिक नीची लिखी बातें लिहाज़ में रखना ज़रूरी हैं।

एक तो है कुरआन की तफ़्सीर, दूसरी कुरआन की तावील, तीसरी कुरआन की तहरीफ़। उनकी अलग-अलग तारीफ़ें हैं और अलग-अलग अहकाम ~

(1). कुरआन की तफ़्सीर अपनी राय से करना हराम है, बल्कि उसके लिए नक़्ल की ज़रूरत है, कुरआन की जाइज तावील अपने इल्म व मारिफ़त से करना जाइज़ और बाइसे सवाब है, कुरआन पाक की तहरीफ़ करना कुफ्र है।

तफ़्सीर उसे कहते कि कुरआने करीम के वह अहवाल ब्यान करना जो कि अक़्ल से मालूम न हो सकें। नक़्ल की उनमें ज़रूरत हो जैसे आयात का शाने नुजूल या आयात का नासिख़ व मन्सूख़ होना, अगर कोई शख्स बगैर हवाला नक़्ल किए अपनी राय से कह दे कि फलां आयत मन्सूख़ है या फलां आयत की यह शाने नुजू़ल है तो यह मोतबर नहीं, और कहने वाला गुनहगार है।

मिश्कात किताबुल_इल्म फ़स्ले दोम (सफा. 35) में है~

मन का़ला फ़िल_कुरआने बेरायही फ़ल्यतबव्ववु मक़्अदहू मिनन्नारे

जो आये उन शख्स कुरआन में अपनी राय से कुछ कहे वह अपनी जगह जहन्नम में बना ले, मिश्कात में उसी
जगह है~

मन क़ाला फ़िल_कुरआने बेरायिही फ़असाबा फ़क़द अख़्तआ

जिस शख्स ने कुरआन में अपनी राय से कुछ कहा पस सही कह गया तो भी उस ने ग़लती की।

अब तफ़्सीरे कुरआन के चन्द मरतबे हैं, तफ़्सीरे कुरआन बिल, कुरआन, यह सब से पहले है इसके बाद तफ़्सीर कुरआन बिल अहादीस, क्योंकि हुजूर अलैहिस्सलाम साहिबे कुरआन हैं, उनकी तफ़्सीरे कुरआन निहायत ही आला, फिर कुरआन की तफ़्सीर सहाब_ए_किराम के क़ौल से ख़ुसूसन फुक़हा_ए_सहाबा और खुलफ़ा_ए_राशिदीन की तफ़्सीर ।

रही तफ़्सीरे कुरआन ताबईन या तबा ताबईन के क़ौल से, यह अगर रिवायत से है तो मोतबर वरना ग़ैर मोतबर माख़ूज़ अज़ ऐला_ए_कलिमतुल्लाह लिल, अल्लामा गोलड़वी कुद्देस सिर्रहू।

(2). तावीले कुरआन यह है कि आयाते कुरआनिया के मज़ामीन और उसकी बारीकियाँ ब्यान करे और सर्फ़ी व नहवी क़वाइद से इसमें तरह-तरह से निकात निकाले, यह अहले इल्म के लिए जाइज़ है, उनमें नक़्ल की ज़रूरत नहीं इसका सुबूत कुरआनी आयात और अहादीसे नब्वीया व अक़्वाले फुक़हा से है।

रब्बे करीम फ़रमाता है ~

तर्जमा तो क्या यह कुरआन में ग़ौर नहीं करते अगर यह ग़ैर खुदा के पास से होता तो जरूर इसमें बहुत इख़्लाफ़ पाते । #पारा: 5, सुरे: नासा

तफ़्सीर रूहुल-ब्यान में इस आयत के मातहत यतदब्बरूना की तफ़्सीर में फरमाते हैं यतअम्मलूना व यतबस्सरूना मा फ़ीहे यानी क्यों नहीं ग़ौर करते इसके माना में और क्यों नहीं ताम्मुल से देखते इन ख़ूबियों को जो कुरआन में हैं।

मिश्कात किताबुल-किसास, फ़स्ल अव्वल, सफा: 300,, में है कि किसी साहब ने हज़रत अली रज़ि-अल्लाहु अन्हु से दरयाफ़्त किया कि क्या आपके पास कुर-आन के सिवा कुछ और भी अतीय-ए-मुस्तफा़ अलैहिस्सलातु वसल्लाम है तो फ़रमाया कि मा इन्दना इल्ला मा फ़िल, कुरआने इल्ला फ़हमन यूता रजुलुन फ़ी किताबेही हमारे पास इस कुर-आन के सिवा और कुछ नहीं, हाँ वह इल्म व फ़हम है जो किसी को किताबे इलाही के मुतअल्लिक़ अता कर दी जाती है।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-15-16

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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