🕌 दीबाचा 🕋
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अल्लाहुम्मा बारिक लना फ़ी यमीनेना

ऐ अल्लाह, हमको हमारे यमन में बरकत दे,

हाज़िरीन में से कुछ ने अर्ज़ किया

व फ़ी नज्दिना या रसूलल्लाह, दुआ फ़रमाएं कि हमारे नज्द में बरकत दे फिर हुजूर अलैहिस्सलाम ने वही दुआ फ़रमाई, शाम और यमन का जिक्र फ़रमाया मगर नज्द का नाम न लिया,

उन्होंने फिर तवज्जोह दिलाई कि व फ़ी नज्दिना हुजूर यह भी दुआ फरमाए कि नज्द में बरकत हो, ग़रज़ तीन बार यमन और शाम के लिए दुआएं फरमाई, बार, बार तवज्जोह दिलाने पर नज्द को दुआ न फरमाई,,

बल्कि आख़िर में फरमाया मैं इस अज़्ली महरूम ख़ित्ता को दुआ किस तरह फरमाऊँ, वहाँ तो ज़लज़ले और फ़ित्ने होंगे, और वहाँ शैतानी गरोह पैदा होगा ।

इससे मालूम हुआ कि हुजूर सैयदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाहे पाक में दज्जाल के फ़ित्ना के बाद नज्द का फ़ित्ना था जिससे इस तरह ख़बर दे दी।

इसी तरह मिशकात जिल्द अव्वल किताबुल किसास बाब क़त्लु अहिलर्रद्दे (स०.309) में ब, हवाला नसाई हज़रत अबू बरज़ह रज़ि, अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि -

हुजूर अलैहिस्सलाम एक बार कुछ माले ग़नीमत तक़्सीम फ़रमा रहे हैं, एक शख़्स ने पीछे से अर्ज़ किया या
मुहम्मद, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, आपने इस तक़सीम में इन्साफ़ न किया, हुजूर अलैहिस्लाम ने ग़ज़बनाक होकर फ़रमाया कि हमारे बाद तुमको हम से बढ़ कर कोई आदिल न मिलेगा,

फिर फरमाया कि आख़िर ज़माना में एक क़ौम इससे पैदा होगी जो कुरआन पढ़ेंगे मगर कुरआन उनके हलक़ से नीचे न उतरेगा और इस्लाम से ऐसे निकल जाएंगे जैसे तीर शिकार से, फिर फरमाया।

तरजमा -

यानी उनकी पहचान सर मुंडाना है, यह निकलते ही रहेंगे यहाँ तक कि उनकी आख़िरी जमाअत दज्जाल के साथ होगी, अगर तुम उन से मिलो तो जान लो कि वह तमाम ख़िल्क़त में बदतर हैं ।

उसमें उनकी पहचान फरमाई गई है सर मुंडाना, आज भी वहाबी इससे खाली मुश्किल ही से मिलेंगे,

कहीं फरमाया कि बुत परस्तों को छोड़ेंगे और मुसलमानों को कत्ल करेंगे, देखो बुखारी जिल्द अव्वल किताबुल, अम्बिया मुत्तसिल किस्सा याजूज व माजूज।

मुस्लिम और मिशकात बाबुल, मोजज़ात फ़स्ले अव्वल, इसी जगह मिशकात में यह भी है लइन अदरकतुहुम ल, अक़्तुलन्नहुम क़त्ला आदिन अगर उन्हें हम पाते तो क़ौमे आद की तरह क़त्ल फरमा देते।

आज भी देवबन्दी आम तौर पर हिन्दुओं के साथ हैं, मगर नफ़रत करते हैं तो मुसलमानों से और उनके हमले हमेशा मुसलमानों पर खा़स कर अहले हरमैन पर ही हुए।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-9

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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