🕌 दीबाचा 🕋
--------------------------------------------------------
इस फरमाने आली के मुताबिक बारहवीं सदी में नज्द से मुहम्मद बिन अब्दुलवह्हाब पैदा हुआ, उसने क्या, क्या अहले हरमैन व दीगर मुसलमानों पर ज़ुल्म किए, उसकी दास्तान तो सैफुल, जब्बार और बवारिक़े मुहम्मदिया अला अरग़मातुन्नजदीया वग़ैरह कुतुबे तवारीख़ में देखा, उनके कुछ ज़ुल्म अल्लामा शामी ने अपनी किताब रद्दुल, मुख़्तार जिल्द सोम बाबुल, बुग़ात के शुरू में इस तरह ब्यान फरमाए हैं-
तरजमा जैसे कि हमारे ज़माना में अब्दुलवहाब के मानने वालों का वाक़या हुआ कि यह लोग नज्द से निकले और मक्का व मदीना शरीफ़ पर उन्होंने ग़ल्बा कर लिया ।
अपने को हंबली मज़हब की तरफ़ मन्सूब करते थे, लेकिन उनका अ़क़ीदा यह था कि सिर्फ़ हम ही मुसलमान हैं, और जो हमारे अ़क़ीदे के खिलाफ है वह मुशरिक है,
इसलिए उन्होंने अहले सुन्नत वल जमाअत का कत्ल जाइज़ समझा और उनके उलमा को क़त्ल किया, यहाँ तक कि अल्लाह ने वहाबियों की शौकत तोड़ी और उनके 🌆 शहरों को वीरान कर दिया, और इस्लामी लश्करों को उन पर फ़तह दी,
यह वाक़या 1233,हिजरी में हुआ,
सैफुल, जब्बार वग़ैरह में उनके ज़ुल्म बे, शुमार ब्यान फरमाए कि मक्का मुकर्रमा व मदीना तैयबा में बेगुनाहों को बे, दरेग़ क़त्ल किया और हरमैन शरीफ़ैन के रहने वालों की औरतों और लड़कियों से ज़िना किया, उनको ग़ुलाम बनाया उनकी औरतों को अपनी लौंडिया, सादाते किराम को बहुत क़त्ल व ग़ारत किया, मस्जिदे नबवी शरीफ़ के
तमाम क़ालीन और झाड़ व फ़ानूस उठा कर नज्द ले गए, तमाम सहाब-ए-किराम और अहले बैते इज़ाम की क़ब्रों को गिरा कर ज़मीन से मिला दिया,
यहाँ तक कि यह भी इरादा किया कि खा़स गुंबदे ख़ज़रा जिसके गिर्द रोज़ना सुबह व शाम मलाइका सलात व सलाम पढ़ते हैं उसको भी गिरा दिया जाए मगर जो शख़्स इस बुरी नीयत से रौज़-ए-पाक पर गया उस पर ख़ुदा-ए-पाक ने एक साँप मुक़र्रर फरमा दिया, जिसने उसको हलाक किया, और रब्बुल आलमीन ने अपने नबी की इस आख़िरी आरामगाह को उन से महफ़ूज़ रखा,
ग़र्ज़कि उनके ज़ुल्म बेहद तकलीफ़देह हैं जिनके ब्यान से कलेजा मुँह को आता है, यज़ीद ने अहले बैत की दुश्मनी उनकी ज़िन्दगी में ही की मगर तेरह सौ 💯 बरस के बाद सहाब-ए-किराम और अहले बैते इज़ाम को उनकी क़ब्रों में सताना उन वहाबियों के हाथ से हुआ,
अब भी जो कुछ इब्ने सऊद ने हरमैन शरीफ़ैन में किया वह हर हाजी पर रौशन है, कि मक्का मुकर्रमा में मैंने खुद अपनी आँखों से देखा कि किसी सहाबी की क़ब्र शरीफ़ का निशान भी नहीं मिलता कि कोई फ़ातिहा भी पढ़ ले, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जाए विलादत में मैंने एक शामियाना लगा हुआ देखा जहाँ कि कुत्ते और गधे बेतकल्लुफ़ फिर रहे थे।
--------------------------------------------------------
📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
सफ़हा न०-10
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस. अली. औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
📌 इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/ja-alhaq-hindi.html
--------------------------------------------------------
इस फरमाने आली के मुताबिक बारहवीं सदी में नज्द से मुहम्मद बिन अब्दुलवह्हाब पैदा हुआ, उसने क्या, क्या अहले हरमैन व दीगर मुसलमानों पर ज़ुल्म किए, उसकी दास्तान तो सैफुल, जब्बार और बवारिक़े मुहम्मदिया अला अरग़मातुन्नजदीया वग़ैरह कुतुबे तवारीख़ में देखा, उनके कुछ ज़ुल्म अल्लामा शामी ने अपनी किताब रद्दुल, मुख़्तार जिल्द सोम बाबुल, बुग़ात के शुरू में इस तरह ब्यान फरमाए हैं-
तरजमा जैसे कि हमारे ज़माना में अब्दुलवहाब के मानने वालों का वाक़या हुआ कि यह लोग नज्द से निकले और मक्का व मदीना शरीफ़ पर उन्होंने ग़ल्बा कर लिया ।
अपने को हंबली मज़हब की तरफ़ मन्सूब करते थे, लेकिन उनका अ़क़ीदा यह था कि सिर्फ़ हम ही मुसलमान हैं, और जो हमारे अ़क़ीदे के खिलाफ है वह मुशरिक है,
इसलिए उन्होंने अहले सुन्नत वल जमाअत का कत्ल जाइज़ समझा और उनके उलमा को क़त्ल किया, यहाँ तक कि अल्लाह ने वहाबियों की शौकत तोड़ी और उनके 🌆 शहरों को वीरान कर दिया, और इस्लामी लश्करों को उन पर फ़तह दी,
यह वाक़या 1233,हिजरी में हुआ,
सैफुल, जब्बार वग़ैरह में उनके ज़ुल्म बे, शुमार ब्यान फरमाए कि मक्का मुकर्रमा व मदीना तैयबा में बेगुनाहों को बे, दरेग़ क़त्ल किया और हरमैन शरीफ़ैन के रहने वालों की औरतों और लड़कियों से ज़िना किया, उनको ग़ुलाम बनाया उनकी औरतों को अपनी लौंडिया, सादाते किराम को बहुत क़त्ल व ग़ारत किया, मस्जिदे नबवी शरीफ़ के
तमाम क़ालीन और झाड़ व फ़ानूस उठा कर नज्द ले गए, तमाम सहाब-ए-किराम और अहले बैते इज़ाम की क़ब्रों को गिरा कर ज़मीन से मिला दिया,
यहाँ तक कि यह भी इरादा किया कि खा़स गुंबदे ख़ज़रा जिसके गिर्द रोज़ना सुबह व शाम मलाइका सलात व सलाम पढ़ते हैं उसको भी गिरा दिया जाए मगर जो शख़्स इस बुरी नीयत से रौज़-ए-पाक पर गया उस पर ख़ुदा-ए-पाक ने एक साँप मुक़र्रर फरमा दिया, जिसने उसको हलाक किया, और रब्बुल आलमीन ने अपने नबी की इस आख़िरी आरामगाह को उन से महफ़ूज़ रखा,
ग़र्ज़कि उनके ज़ुल्म बेहद तकलीफ़देह हैं जिनके ब्यान से कलेजा मुँह को आता है, यज़ीद ने अहले बैत की दुश्मनी उनकी ज़िन्दगी में ही की मगर तेरह सौ 💯 बरस के बाद सहाब-ए-किराम और अहले बैते इज़ाम को उनकी क़ब्रों में सताना उन वहाबियों के हाथ से हुआ,
अब भी जो कुछ इब्ने सऊद ने हरमैन शरीफ़ैन में किया वह हर हाजी पर रौशन है, कि मक्का मुकर्रमा में मैंने खुद अपनी आँखों से देखा कि किसी सहाबी की क़ब्र शरीफ़ का निशान भी नहीं मिलता कि कोई फ़ातिहा भी पढ़ ले, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जाए विलादत में मैंने एक शामियाना लगा हुआ देखा जहाँ कि कुत्ते और गधे बेतकल्लुफ़ फिर रहे थे।
--------------------------------------------------------
📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
सफ़हा न०-10
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस. अली. औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
📌 इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/ja-alhaq-hindi.html