🕌 दीबाचा 🕋
--------------------------------------------------------
लेकिन मौजूदा ज़माना में ब-मुकाबला ग़ैर मुकल्लेदीन के ज़्यादा ख़तरनाक देवबन्दी हैं, क्योंकि आम मुसलमान उनको पहचान नहीं सकते, उन लोगों ने अपनी किताबों में हुजूर अलैहिस्सलाम की ऐसी तौहीनें की कि कोई खुला हुआ मुशरिक भी नहीं कर सकता, मगर फिर भी मुसलमानों के पेशवा बनते हैं, और इस्लाम के अकेले ठेकेदार ।
मौलवी अशरफ़ अली साहब थानवी ने हिफ्जुल_ईमान में हुजूर अलैहिस्सलाम के इल्म को जानवरों के इल्म की तरह बताया,
मौलवी ख़लील अहमद साहब अंबेठी ने अपनी किताब 📖 बराहीने क'आतेआ में शैतान और मलकुल, मौत का इल्म हुजूर अलैहिस्सलाम के इल्म से ज़्यादा बताया,
मौलवी इस्माईल साहब देहलवी ने नमाज़ में हुजूर अलैहिस्सलाम के ख़्याल को गधे और बैल 🐂 के ख़्याल से बदतर लिखा,
मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी ने, तहज़ीरुन्नास में हुजूर अलैहिस्सलाम को खा़तमुन्नबीयीन यानी आख़िरी नबी मानने से इंकार किया और कहा कि हुजूर अलैहिस्सलाम के बाद अगर और भी नबी आ जाएं तब भी
खा़तमीयत में कुछ फ़र्क़ न आएगा।
खा़तम के माना हैं असल नबी, दीगर नबी हैं नबी आर्ज़ी, यही मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी ने कहा कि मैं बरोज़ी नबी हूँ,
ग़र्ज़ेकि मिर्ज़ा गुलाम अहमद इस मसला में उनका शागिर्दे रशीद हुआ,
इन साहिबों के यहाँ तौहीद के माना हैं अंबिया की तौहीन जैसे कि रवाफ़िज़ के यहाँ हुब्बे अली के माना हैं बुग्ज़ सहाब_ए_किराम, हालांकि यह तौहीद तो शैतानी तौहीद है, उसने हज़रत आदम की अज़मत से इंकार किया ग़ैरे खुदा के सामने न झुका, फिर जो उसका हश्र हुआ वह आज तक लोग देख रहे हैं कि हर जगह उसकी ला हौला से खा़तिर की जाती है।
इस्लामी तौहीद है अल्लाह तआला को एक जानना, उसके महबूबों की इज़्ज़त व अज़मत करना जिसकी तालीम है ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह पहले हिस्से में अल्लाह की वहदानियत का इक़रार है, दूसरे में अज़्मते मुस्ताफ़ा का इज़्हार,
आजकल जिस जगह भी देखा गया मुसलमानों में अहले सुन्नत और देवबन्दियों में झगड़े पढ़े हुए हैं, हर जगह खाना जंगी है हर कारे ख़ैर को रोकने की कोशिश, कहीं इल्मे ग़ैब पर बहस हैं तो कहीं हुजूर अलैहिस्सलाम के हाज़िर व नाज़िर होने पर तकरार, कहीं महफिले मीलाद व फ़ातिहा पर बहस कहीं मज़ाराते औलिया अल्लाह पर कुब्बा बनाने पर मुनाज़रा, अगरचे उनमें से हर एक मसाइल में अहले सुन्नत ने आला दरजा की किताबें 📚 शाए फ़रमाई जैसे मसलए तक़्लीद में इंतिसारुल_हक़ मुसन्निफ़ हजरत मौलाना इर्शाद हुसैन साहब रहमतुल्लाह अलैहि।
--------------------------------------------------------
📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
सफ़हा न०-12
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस. अली. औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
📌 इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/ja-alhaq-hindi.html
--------------------------------------------------------
लेकिन मौजूदा ज़माना में ब-मुकाबला ग़ैर मुकल्लेदीन के ज़्यादा ख़तरनाक देवबन्दी हैं, क्योंकि आम मुसलमान उनको पहचान नहीं सकते, उन लोगों ने अपनी किताबों में हुजूर अलैहिस्सलाम की ऐसी तौहीनें की कि कोई खुला हुआ मुशरिक भी नहीं कर सकता, मगर फिर भी मुसलमानों के पेशवा बनते हैं, और इस्लाम के अकेले ठेकेदार ।
मौलवी अशरफ़ अली साहब थानवी ने हिफ्जुल_ईमान में हुजूर अलैहिस्सलाम के इल्म को जानवरों के इल्म की तरह बताया,
मौलवी ख़लील अहमद साहब अंबेठी ने अपनी किताब 📖 बराहीने क'आतेआ में शैतान और मलकुल, मौत का इल्म हुजूर अलैहिस्सलाम के इल्म से ज़्यादा बताया,
मौलवी इस्माईल साहब देहलवी ने नमाज़ में हुजूर अलैहिस्सलाम के ख़्याल को गधे और बैल 🐂 के ख़्याल से बदतर लिखा,
मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी ने, तहज़ीरुन्नास में हुजूर अलैहिस्सलाम को खा़तमुन्नबीयीन यानी आख़िरी नबी मानने से इंकार किया और कहा कि हुजूर अलैहिस्सलाम के बाद अगर और भी नबी आ जाएं तब भी
खा़तमीयत में कुछ फ़र्क़ न आएगा।
खा़तम के माना हैं असल नबी, दीगर नबी हैं नबी आर्ज़ी, यही मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी ने कहा कि मैं बरोज़ी नबी हूँ,
ग़र्ज़ेकि मिर्ज़ा गुलाम अहमद इस मसला में उनका शागिर्दे रशीद हुआ,
इन साहिबों के यहाँ तौहीद के माना हैं अंबिया की तौहीन जैसे कि रवाफ़िज़ के यहाँ हुब्बे अली के माना हैं बुग्ज़ सहाब_ए_किराम, हालांकि यह तौहीद तो शैतानी तौहीद है, उसने हज़रत आदम की अज़मत से इंकार किया ग़ैरे खुदा के सामने न झुका, फिर जो उसका हश्र हुआ वह आज तक लोग देख रहे हैं कि हर जगह उसकी ला हौला से खा़तिर की जाती है।
इस्लामी तौहीद है अल्लाह तआला को एक जानना, उसके महबूबों की इज़्ज़त व अज़मत करना जिसकी तालीम है ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह पहले हिस्से में अल्लाह की वहदानियत का इक़रार है, दूसरे में अज़्मते मुस्ताफ़ा का इज़्हार,
आजकल जिस जगह भी देखा गया मुसलमानों में अहले सुन्नत और देवबन्दियों में झगड़े पढ़े हुए हैं, हर जगह खाना जंगी है हर कारे ख़ैर को रोकने की कोशिश, कहीं इल्मे ग़ैब पर बहस हैं तो कहीं हुजूर अलैहिस्सलाम के हाज़िर व नाज़िर होने पर तकरार, कहीं महफिले मीलाद व फ़ातिहा पर बहस कहीं मज़ाराते औलिया अल्लाह पर कुब्बा बनाने पर मुनाज़रा, अगरचे उनमें से हर एक मसाइल में अहले सुन्नत ने आला दरजा की किताबें 📚 शाए फ़रमाई जैसे मसलए तक़्लीद में इंतिसारुल_हक़ मुसन्निफ़ हजरत मौलाना इर्शाद हुसैन साहब रहमतुल्लाह अलैहि।
--------------------------------------------------------
📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
सफ़हा न०-12
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस. अली. औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
📌 इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/ja-alhaq-hindi.html