🕌 बहस इल्मे ग़ैब 🕋
चौथी फ़स्ल
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जब इल्मे ग़ैब का मुन्किर अपने दावा पर दलील क़ायम करे तो चार बातों का ख्याल रखना ज़रूरी है (इज़ाहतुल_ग़ैब, सफ़ा :4) ~

1). वह आयत क़तईयुद्दलालह हो, जिसके माना में चन्द शक्लें न निकल सकती हों और हदीस हो तो मुतवातिर हो।

2). इस आयत या हदीस से इल्म के अता की नफ़ी हो कि हमने नहीं दिया, या हुजूर अलैहिस्सलाम फ़रमाएं मुझको यह इल्म नहीं दिया गया ।

3). सिर्फ किसी बात का ज़ाहिर न फ़रमाना काफ़ी नहीं, मुम्किन है कि हुजूर अलैहिस्सलाम को इल्म तो हो मगर किसी मस्लेहत से ज़ाहिर न किया हो, इसी तरह हुजूर अलैहिस्सलाम का यह फ़रमाना कि ख़ुदा ही जाने, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता, या मुझे क्या मालूम, वग़ैरह काफ़ी नहीं, कि यह कलिमात कभी इल्मे ज़ाती की नफ़ी और मुख़ातब को ख़ामोश करने के लिए होते हैं।

4). जिसके लिए इल्म की नफ़ि,, इंकार,, की गई हो वह वाक़या हो और क़्यामत तक का हो, वरना कुल सिफ़ाते
इलाहिया और बाद क़्यामत के तमाम वाक़यात के इल्म का हम भी दावा नहीं करते, यह चार फस्लें ख़ूब ख्याल में रखी जाएं।

पहला बाब
इल्मे ग़ैब के सुबूत के बयान में

इसमें छ:फ़स्लें हैं। पहली फ़स्ल में आयाते कुरआनिया से सुबूत, दूसरी में अहादीस से सुबूत, तीसरी में अहादीस के शारेहीन के,, चौथी में उलमा_ए_उम्मत और फ़ुक़हा के अक़वाल, पाँचवें में खुद मुन्केरीन की 📚 किताबों से सुबूत, छठी में अक़्ली दलाइल और औलिया अल्लाह के इल्मे ग़ैब का बयान।।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-44

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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