🕌 पांचवा बाब 🕋

तक़्लीद पर एतराज़ात और जवाबात के बयान में
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क़्यास के माना लुग़त में अंदाज़ा लगाना और शरीअत में किसी फ़रई मसला को असल मसला से इल्लत और हुक्म में मिला देना यानी एक मसला ऐसा दर पेश आ गया जिसका सुबूत कुरआन व हदीस में नहीं मिलता तो उसकी तरह कोई वह मसला लिया जो कुरआन व हदीस में है, इसके हुक्म की वजह मालूम करके यह कहा कि चूंकि वह वजह यहाँ भी है लिहाज़ा उसका हुक्म यह है ।

जैसे किसी ने पूछा कि औरत के साथ इग़लाम करना कैसा है, हमने जवाब दिया कि हालते हैज़ में औरत से जिमा हराम है क्यों, गंदगी की वजह से, और इसमें भी गंदगी है, लिहाज़ा यह भी हराम है ।

किसी ने पूछा कि जिस औरत से किसी के बाप ने ज़िना किया वह उसके लिए हलाल है या नहीं, हमने कहा कि जिस औरत से किसी का बाप निकाह करे वह बेटे को हराम है, वती या जुज़्ईयत की वजह से, लिहाज़ा यह औरत भी हराम है ।

इसको क़्यास कहते हैं, मगर शर्त यह है कि क़्यास करने वाला मुज्तहिद हो, हर कस व नाकस का क़्यास मोतबर नहीं, क़्यास असल में हुक्मे शरीअत को ज़ाहिर करने वाला है, खुद मुस्तक़िल हुक्म का मुसीबत नहीं, यानी कुरआन व हदीस का ही हुक्म होता है, मगर क़्यास उसको यहाँ जा़हिर करता है, क़्यास का सुबूत कुरआन व हदीस व अफ़्आले सहाबा से है ।

कुरआन फरमाता है फ़ातबेरू या ऊलिल, अब्सार तो इबरत लो ऐ निगाह वालो, यानी कुफ़्फ़ार के हाल पर
अपने को क़्यास करो अगर तुमने ऐसी हरकात की तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।

और कुरआन ने क़्यामत के होने को नींद पर इसी तरह खेती के ख़ुश्क होकर सब सब्ज़ होने पर क़्यास फरमा कर बताया है, अव्वल से आख़िर तक कुफ़्फ़ार की मिसालें बयान फ़रमाई हैं यह भी क़्यास है।

बुखा़री किताबुल_ऐतसाम सफा- 1088, जिल्द दोम में एक बाब बांधा है, जो किसी मालूम शुदा क़ायदे को ऐसे क़ाइदे से तश्बीह दे जिसका हुक्म खुदा ने बयान फरमा दिया है ताकि पूछने वाला इससे समझ ले।

इसमें एक हदीस नक़्ल की जिस में हुजूर अलैहिस्सलाम ने एक औरत को क्यास से हुक्म फरमाया~

तर्जमा एक औरत हुजूर अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुई और अ़र्ज़ किया कि मेरी वालिदा ने हज की नज्ऱ मानी थी, क्या मैं उसकी तरफ से हज करूं, फरमाया वहाँ हज करो, कहा अगर तुम्हारी मां पर क़र्ज़ होता तो तुम उसको अदा करतीं, अ़र्ज़ किया हां। फ़रमाया वह क़र्ज़ भी अदा करो जो अल्लाह का है क्योंकि अल्लाह अदा_ए_क़र्ज़ का ज़्यादा मुस्तहिक़ है।

जिल्द दोम सफ़ा-1088

मिश्कात किताबुल_इमारत बाब मा अलल_विलाते सफ़:324, और तिर्मिज़ी जिल्द अव्वल शुरू अबवाबुल_अहकाम और दारमी में है कि जब हजरत मआज़ इब्ने जबल को हुजूर अलैहिस्सलाम ने यमन का हाकिम बना कर भेजा तो पूछा कि किस चीज़ से फ़ैसला करोगे,

अ़र्ज़ किया किताबुल्लाह से फरमाया कि अगर इसमें न पाओ तो अ़र्ज़ किया कि उसके रसूल की सुन्नत से, फरमाया कि अगर इसमें भी न पाओ तो अर्ज़ किया कि अपनी राय से इज्तिहाद करूंगा,

रावी ने फरमाया कि फिर हुजूर अलैहिस्सलाम ने उनके सीने पर हाथ मारा और फरमाया कि उस खुदा का शुक्र है जिसने रसूलुल्लाह के क़ासिद को उसकी तौफ़ीक़ दी जिससे रसूलुल्लाह राज़ी हैं, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम।

इससे क़्यास का पुर ज़ोर सुबूत हुआ, चुंकी हुजूर अलैहिस्सलाम की ज़ाहिरी हयात में इज्मा नहीं हो सकता इसलिए इज्मा का ज़िक्र हज़रत मआज़ रज़ि अल्लाहु अन्हु ने न किया, इसी तरह सहाब_ए_किराम ने बहुत से अहकाम अपने क़्यास से दिए।

हज़रत इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उस औरत को क़्यास फरमा कर महर मिस्ल दिलवाया जो बग़ैर महर निकाह में आई, और शौहर मर गया,, देखो नसाई जिल्द दोम सफा-88

अब वह एतराज़ जो ग़ैर मुक़ल्लिद करते हैं इज्तिनिबू कसीरन मिनज़्ज़न्ने कि बहुत ज़न से बचो, इसमें ज़न से मुराद बद गुमानियां हैं यानी मुसलमानों पर बद गुमानियां न किया करो, इसी लिए इस आयत में उसके बाद ग़ीबत वग़ैरह की मनाही है।

वरना क़्यास और ग़ीबत में क्या तअल्लुक़, जैसे कि रब तआला फरमाता है इन्नमन्नजवा मिनश्शैताने मशवरा करना शैतान की तरफ़ से है, तो क्या हर मशवरा शैतानी काम है, नहीं बल्कि जो इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ मशवरे हों वह शैतानी हैं, ऐसे ही यह है, और जो क़्यास की बुराइयां आई हैं, वह क़्यास है जो हुक्म ख़ुदा के मुका़बला में किया जाए जैसा कि शैतान ने हुक्म सज्दा पाकर क़्यास किया, और हुक्मे इलाही को रद कर दिया, यह कुफ्ऱ है।

ग़ैर मुक़ल्लिद यह भी कहते हैं कि कुरआन फरमाता है इन्नमा अत्तबेओ मा यूहा इलैया इन्नमा हस्र के लिए है, जिससे मालूम हुआ कि सिवाए वह्य के और किसी चीज़ की पैरवी न की जाए न इज्मा की न क़्यास की, सिर्फ कुरआन व हदीस की पैरवी हो, मगर उन्हें मालूम होना चाहिए कि इज्मा व क़्यास पर अमल भी कुरआन व हदीस पर ही अमल है कि क़्यास मज़्हर है।

आख़िर में मैं मुन्केरीन क़्यास से दरयाफ़्त करता हूँ कि जिन चीज़ों की तस्रीह कुरआन व हदीस में न मिले या बज़ाहिर अहादीस में तआर्रुज़ मौजूद हो वहाँ क्या करोगे ?

मसलन हवाई जहाज में नमाज़ पढ़ना कैसा है, इसी तरह अगर जुमा की नमाज़ में रकाअत अव्वल में जमाअत थी, रकाअत दोम में जमाअत पीछे से भाग गई, अब जुहर पढ़े या जुमा, इसी तरह दीगर मसाइले क़्यासिया में क्या जवाब होगा, इसलिए बेहतर है कि किसी इमाम का दामन पकड़ लो, अल्लाह तौफ़ीक़ दे।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-37-39

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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