🕌 पांचवा बाब 🕋

तक़्लीद पर एतराज़ात और जवाबात के बयान में
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मसलए तक़्लीद पर मुख़ालिफ़ीन के एतराज़ात दो तरह के हैं, एक वाहियात ताने और तमस्खुर उनके जवाबात ज़रूरी तो नहीं, दूसरे वह जिन से मुक़ल्लेदीन को ग़ैर मुक़ल्लिद धोखा देते हैं, और आम मुक़ल्लेदीन धोखा खा लेते हैं, वह हस्बे ज़ैल हैं।

सवाल (1) ~ सहाब_ए_किराम को किसी की तक़्लीद की ज़रूरत न थी, वह तो हुजूर अलैहिस्सलाम की सोहबत की बरकत से तमाम मुसलमानों के इमाम और पेशवा हैं कि अइम्म_ए_दीन इमाम अबू हनीफ़ा व शाफ़ई वग़ैरह रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुमा उनकी पैरवी करते हैं।

मिश्कात बाब फ़ज़ाइलुस्सहाबा सफ़ा- 554, में है ~

अस्हाबी कन्नुजूमे फ़बेअय्यिहिम इक़्तदैतुम इहतदैतूम
मेरे सहाबा सितारों की तरह हैं तुम जिनकी पैरवी करोगे हिदायत पा लोगे

अलैकुम बिसुन्नती व सुन्नतिल_ख़ुलफ़ाए अर्राशिदीन मिश्कात यही बाब,, तुम लाज़िम पकड़ो मेरी और मेरे ख़ुलफ़ा_ए_राशिदीन की सुन्नत को।

यह सवाल तो एसा है जैसे कोई कहे कि हम किसी के उम्मती नहीं, क्योंकि हमारे नबी अलैहिस्सलाम किसी के उम्मती न थे, तो उम्मती न होना सुन्नते रसूलुल्लाह है, इससे यही कहा जाएगा कि हुजूर अलैहिस्सलाम ख़ुद नबी
हैं, सब आपकी उम्मत हैं, वह किस के उम्मती होते, हमको उम्मती होना ज़रूरी है, ऐसे ही सहाब_ए_किराम तमाम मुसलमानों के इमाम हैं, उनका कौन मुसलमान इमाम होता।

नहर से पानी उस खेत को दिया जाएगा जो दरिया से दूर हो।

मुकब्बेरीन की आवाज़ पर वही नमाज़ पड़ेगा जो इमाम से दूर हो, लबे दरिया के खेतों को नहर की ज़रूरत नहीं, सफ़े अव्वल के मुक़्तदियों को मुकब्बेरीन की ज़रूरत नहीं

सहाब_ए_किराम सफ़े अव्वल के मुक़्तदी हैं वह बिला वास्ता सीनए पाक मुस्तफा अलैहिस्सलाम से फ़ैज़ लेने वाले हैं, हम चूंकि इस दरिया से दूर हैं, लिहाज़ा नहर के हाजत मन्द हैं, फिर समुन्दर से भी हज़ारहा दरिया जारी होते हैं जिन सब में पानी तो समुन्दर ही का है, मगर इन सब के नाम और रास्ते जुदा हैं, कोई गंगा कहलाता है कोई जमुना ।

ऐसे ही हुजूर अलैहिस्सलाम, आप रहमत के समुन्दर हैं, इस सीना में से जो नहर इमाम अबू हनीफ़ा के सीना से होती हुई आई उसे हन्फ़ी कहा गया जो इमाम मालिक के सीना से आई, वह मज़हब मालकी कहलाया, पानी सबका एक है मगर नाम जुदागाना, और इन नहरों की हमें ज़रूरत पड़ी, न कि सहाब_ए_किराम को । जैसे कि हदीस की सनदें हमारे लिए है सहाब_ए_किराम के लिए नहीं।

सवाल (2) रहबरी के लिए कुरआन व हदीस का़फी़ हैं, इनमें क्या नहीं जो कि फ़िक़्ह से हासिल करें कुरआन फ़रमाता है व ला रतबिन वला याबिसिन इल्ला फ़ी किताबिम मुबीन और न है कोई तर और ख़ुश्क चीज़ जो एक रौशन 📖 किताब में लिखी न हो, और बेशक़ हमने कुरआन याद करने के लिए आसान फरमा दिया तो है कोई याद करने वाला, इन आयतों से मालूम हुआ कि कुरआन में सब है और कुरआन सब के लिए आसान भी है, फिर किस लिए मुज्तहिद के पास जावें।

जवाब कुरआन व हदीस बेशक़ रहबरी के लिए का़फ़ी हैं और इन में सब कुछ है मगर इन से मसाइल निकालने की क़ाबलियत होना चाहिए। समुन्दर में मोती हैं मगर उनको निकालने के लिए ग़ोता ख़ोर की ज़रूरत है। अइम्मा दीन इस समुन्दर के ग़ोता ज़न हैं, तिब की 📚 किताबों में सब कुछ लिखा है, मगर हम को हकीम के पास जाना और उससे नुस्ख़ा मुकर्रर कराना ज़रूरी है ।

अइम्म_ए_दीन तबीब हैं, वलक़द यस्सरनल कुरआन में फ़रमाया है कि हमने कुरआन को हिफ़्ज़ करने के लिए आसान किया है न कि इससे मसाइल निकालने के लिए, मगर मसाइल निकालना आसान है तो फिर हदीस की भी क्या ज़रुरत है, कुरआन में सब कुछ है और कुरआन आसान है और फिर कुरआन सिखाने के लिए नबी क्यों आए, कुरआन में है और वह नबी उनको किताबुल्लाह और हिक्मत की बातें सिखाते हैं, कुरआन व हदीस रुहानी दवाएं हैं इमाम रुहानी तबीब।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-31-32

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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