🕌 दूसरा बाब 🕋

किन मसाइल में तक़्लीद की जाती है किन में नहीं
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तक़्लीदे शरई में कुछ तफ़्सील है, शरई मसाइल तीन तरह के हैं~

(1). अकाइद,

(2). वह अहकाम जो साफ़, साफ़ कुरआन पाक या हदीस शरीफ़ से साबित हों इत्जिहाद को उनमें दख़ल न हो,

(3). वह अहकाम जो कुरआन या हदीस से ग़ौर व खोज करके निकाले जाए।

अकाइद में किसी की तक़्लीद जाइज़ नहीं,

तफ़्सीरे रुहुल_बयान आख़िर सूर_हूद ज़ेरे आयत नसीबहुम ग़ैरा मन्कूसिन में है~

तर्जमा अगर कोई हम से पूछे कि तौहीद व रिसालत वग़ैरह तुमने कैसे मानी, तो यह न कहा जाएगा कि हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा रज़ि अल्लाहु अन्हु के फरमाने से या कि फ़िक़्हे अकबर से बल्कि दलाइले तौहीद व रिसालत से क्योंकि अकाइद में तक़्लीद नहीं होती।

मुक़द्दमा शामी बहसु तक़्लीदुल, मफ़्ज़ूल मअल, अफ़्ज़ल में है~

तर्जमा यानी जिनका हम एतकाद रखते हैं फ़रई मसाइल के अलावा कि जिनका एतकाद रखना हर मुकल्लफ पर बग़ैर किसी की तक़्लीद के वाजिब है वह अकाइद वही हैं जिन पर अहले सुन्नत व जमाअत हैं, वह अहले
सुन्नत अशाइरह और मा तुरीदिया हैं

और तफ़्सीरे कबीर पारा दस ज़ेरे आयत,
फ़अजिरहु हत्ता यस्मआ कलामल्लाहे में है~

ज़ाहिरी अहकाम में भी किसी की तक़्लीद जाइज़ नहीं, पांच नमाज़ें नमाज़ की रकअतें, तीस रोज़े, रोजे़ में खाना पीना हराम होना, यह वह मसाइल हैं जिनका सुबूत नस से सराहतन है इसलिए यह न कहा जाएगा कि नमाज़ें पाँच इसलिए हैं या रोज़े एक माह के इसलिए हैं कि फ़िक्ह, अकबर में लिखा है या इमाम अबू हनीफ़ा ने फरमाया है बल्कि इसके लिए कुर आन व हदीस से दलाइल दिए जाएंगे।

जो मसाइल कुरआन व हदीस या इज्मा_ए_उम्मत से इज्तिहाद व इस्तिंबात करके निकाले जाएं उनमें ग़ैर मुज्तहिद पर तक़्लीद करना वाजिब है ।

मसाइल की जो हमने तक़्सीम कर दी और बता दिया कि कौन से मसाइल तक़्लीद यह हैं और कौन से नहीं, इसका बहुत लिहाज़ रहे ।

बहुत से मौका पर ग़ैर मुक़ल्लिद एतराज करते हैं कि मुक़ल्लिद को हक़ नहीं होता कि दलाइल से मसाइल निकाले, फिर तुम लोग नमाज़ व रोज़े के लिए कुरआनी आयतें या अहादीस क्यों पेश करते हो इसका जवाब भी इस बात में आ गया कि रोज़ा व नमाज़ की फ़र्ज़ीयत तक़्लीदी मसाइल से नहीं, यह भी मालूम हुआ कि सिवाए अहकामे खबर वग़ैरह में तक़्लीद न होगी जैसे कि मसलए कुफ्रे यजीद वग़ैरह, और क़्यासी मसाइल में फुकहा का कुरआन व हदीस से दलाइल पेश करना सिर्फ माने हुए मसाइल की ताईद के लिए होता है, वह मसाइल पहले ही से क़ौले इमाम से माने हुए होते हैं, तो बिला नजर फ़िद्दलील के यह मानी नहीं कि मुक़ल्लिद दलाइल देखे ही नहीं, बल्कि यह दलाइल से मसाइल हल न करे।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०-21-22

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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