🕌 दीबाचा 🕋
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उस जगह पहले एक कुब्बा बना हुआ था जहाँ लोग जाकर नमाज़ें पढ़ते थे और उसकी ज़ियारत करते थे, यह हज़रत आमिना ख़ातून का मकान था और उसी जगह इस्लाम का आफ़ताब चमका, मगर अब उसकी यह बेहुरमती की गई ।
यह तो थे अरब के वाक़ियात लेकिन हमको इस वक़्त हिन्दुस्तान से गुफ़्तगू करनी है दिल्ली में एक शख्स पैदा हुआ जिसका नाम था मौलवी इस्माईल, उसने मुहम्मद बिन अब्दुल, वहाब नज्दी की किताबुत्तौहीद का उर्दू में खुलासा किया, जिसका नाम रखा तक्वियतुल_ईमान और उसकी हिन्दुस्तान में इशाअत की,
वहाबी भी उन्हें शहीद कहते हैं क्योंकि यह हज़रत इसी तक्वियतुल_ईमान की बदौलत सरहदी पठानों के हाथों कत्ल हुए, देखो अनवारे आफ़ताब सदाक़त, मगर मशहूर किया कि सीखों के हाथों मरे।
आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया~
वह वहाबिया ने जिसे दिया है लक़ब शहीद व ज़बीह का,
वह शहीद लैल-ए-नज्द था वह ज़बीहे तेग़े ख़्यार है।
अगर सिखों के हाथों कत्ल हुए होते तो अमृतसर या मशिरक़ी पंजाब के किसी और 🌆 शहर में मारे जाते
क्योंकि यही जगह सिखों का मरकज़ था,
सरहद तो पठानों का मुल्क है वहाँ यह मारे गए, मालूम हुआ कि उन्हें मुसलमानों ने कत्ल किया और उनकी लाश भी गा़यब कर दी, इसीलिए उनकी क़ब्र ही नहीं।
इस्माईल के मोतकेदीन दो गरोह बने, एक तो वह जिन्होंने इमामों की तक़्लीद का इंकार किया, जो ग़ैर मुक़ल्लिद या वहाबी कहलाते हैं, दूसरे वह जिन्होंने देखा कि इस तरह अपने को जा़हिर करने से मुसलमान हम से नफ़रत करते हैं उन्होंने अपने को हन्फ़ी जा़हिर किया, नमाज़ रोज़े में हमारी तरह हमारे सामने आए उनको कहते हैं गुलाबी वहाबी या देवबन्दी ।
भला मेरे आक़ा व मौला महबूबे किब्रिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मोजज़ा तो देखो कि हुजूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया था कि वहां से क़रनुश्शैतान यानी शैतानी गरोह निकलेगा, उर्दू में क़रनुश्शैतान का तरजमा है देवबन्द, उर्दू में देव कहते हैं शैतान को और बन्द का मतलब गिरोह ताबेदार, या यह इजा़फ़त मक़्लूबी है यानी बन्द देव शैतान की जगह यानी लेकिन इन दोनों फ़िर्कों के अक़ीदे बिल्कुल एक हैं, आमाल में कुछ जा़हिरी इख़्तिलाफ़ है दोनों मुहम्मद बिन अब्दुलवहाब को अच्छा जानते हैं, उसके अका़इद के हामी,
चुनांचे देवबन्दियों के पेशवा मौलवी रशीद अहमद गंहोही अपने फ़तावा रशीदिया जिल्द अव्वल किताबुत्तक़्लीद सफा़_119, में लिखते हैं~
" मुहम्मद इब्ने अब्दुलवहाब के मुक़्तदीयों को वहाबी कहते हैं, उनके अका़इद उम्दा थे और मज़हब उनका हंबली था अल्बत्ता उनके मिजा़ज में शिद्दत थी, और उसके मुक़्तदी अच्छे हैं मगर हाँ जो हद से बढ़ गए उनमें फ़साद आ गया है और अका़इद सबसे मुत्तहीद हैं, आमाल में फ़र्क़ हन्फ़ी, शाफ़ई ,मालिकी, हंबली है।
(रशीद अहमद)
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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
सफ़हा न०-11
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस. अली. औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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उस जगह पहले एक कुब्बा बना हुआ था जहाँ लोग जाकर नमाज़ें पढ़ते थे और उसकी ज़ियारत करते थे, यह हज़रत आमिना ख़ातून का मकान था और उसी जगह इस्लाम का आफ़ताब चमका, मगर अब उसकी यह बेहुरमती की गई ।
यह तो थे अरब के वाक़ियात लेकिन हमको इस वक़्त हिन्दुस्तान से गुफ़्तगू करनी है दिल्ली में एक शख्स पैदा हुआ जिसका नाम था मौलवी इस्माईल, उसने मुहम्मद बिन अब्दुल, वहाब नज्दी की किताबुत्तौहीद का उर्दू में खुलासा किया, जिसका नाम रखा तक्वियतुल_ईमान और उसकी हिन्दुस्तान में इशाअत की,
वहाबी भी उन्हें शहीद कहते हैं क्योंकि यह हज़रत इसी तक्वियतुल_ईमान की बदौलत सरहदी पठानों के हाथों कत्ल हुए, देखो अनवारे आफ़ताब सदाक़त, मगर मशहूर किया कि सीखों के हाथों मरे।
आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया~
वह वहाबिया ने जिसे दिया है लक़ब शहीद व ज़बीह का,
वह शहीद लैल-ए-नज्द था वह ज़बीहे तेग़े ख़्यार है।
अगर सिखों के हाथों कत्ल हुए होते तो अमृतसर या मशिरक़ी पंजाब के किसी और 🌆 शहर में मारे जाते
क्योंकि यही जगह सिखों का मरकज़ था,
सरहद तो पठानों का मुल्क है वहाँ यह मारे गए, मालूम हुआ कि उन्हें मुसलमानों ने कत्ल किया और उनकी लाश भी गा़यब कर दी, इसीलिए उनकी क़ब्र ही नहीं।
इस्माईल के मोतकेदीन दो गरोह बने, एक तो वह जिन्होंने इमामों की तक़्लीद का इंकार किया, जो ग़ैर मुक़ल्लिद या वहाबी कहलाते हैं, दूसरे वह जिन्होंने देखा कि इस तरह अपने को जा़हिर करने से मुसलमान हम से नफ़रत करते हैं उन्होंने अपने को हन्फ़ी जा़हिर किया, नमाज़ रोज़े में हमारी तरह हमारे सामने आए उनको कहते हैं गुलाबी वहाबी या देवबन्दी ।
भला मेरे आक़ा व मौला महबूबे किब्रिया सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मोजज़ा तो देखो कि हुजूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया था कि वहां से क़रनुश्शैतान यानी शैतानी गरोह निकलेगा, उर्दू में क़रनुश्शैतान का तरजमा है देवबन्द, उर्दू में देव कहते हैं शैतान को और बन्द का मतलब गिरोह ताबेदार, या यह इजा़फ़त मक़्लूबी है यानी बन्द देव शैतान की जगह यानी लेकिन इन दोनों फ़िर्कों के अक़ीदे बिल्कुल एक हैं, आमाल में कुछ जा़हिरी इख़्तिलाफ़ है दोनों मुहम्मद बिन अब्दुलवहाब को अच्छा जानते हैं, उसके अका़इद के हामी,
चुनांचे देवबन्दियों के पेशवा मौलवी रशीद अहमद गंहोही अपने फ़तावा रशीदिया जिल्द अव्वल किताबुत्तक़्लीद सफा़_119, में लिखते हैं~
" मुहम्मद इब्ने अब्दुलवहाब के मुक़्तदीयों को वहाबी कहते हैं, उनके अका़इद उम्दा थे और मज़हब उनका हंबली था अल्बत्ता उनके मिजा़ज में शिद्दत थी, और उसके मुक़्तदी अच्छे हैं मगर हाँ जो हद से बढ़ गए उनमें फ़साद आ गया है और अका़इद सबसे मुत्तहीद हैं, आमाल में फ़र्क़ हन्फ़ी, शाफ़ई ,मालिकी, हंबली है।
(रशीद अहमद)
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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
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