🕌 मुक़द्देमा 🕋
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(3). तहरीफ़ यह है कि कुरआन के ऐसे माना या मतलब ब्यान करे जो कि इज्मा_ए_उम्मत या फिर अक़ीद_ए_इस्लामिया या इज्मा_ए_मुफ़स्सेरीन के खिलाफ हो, या खुद तफ़्सीरे कुरआन के खिलाफ हो, और कहे कि इस आयत के वह मानी नहीं हैं बल्कि यह मानी हैं कि जो मैंने कहे, यह खुला हुआ कुफ्र है

जैसे कि आयाते कुरआनिया और किराते मुतवातिरह का इंकार कुफ्र है, ऐसे ही कुरआन के मुतवातिर माना का इंकार कुफ्र जैसे कि मौलवी क़ासिम साहब ने ख़ातमुन्नबीयीन के माना किए असली नबी, और माना आख़िरी नबी को ख़्याले अवाम यानी ग़लत कहा, और नबुव्वत की दो किस्में कर डालीं, असली और आर्ज़ी हालांकि उम्मत का इज्मा और अहादीस का इत्तिफ़ाक़ इस पर है कि ख़ातमुन्नबीयीन के माना हैं आख़िरी नबी और हुजूर अलैहिस्सलाम के जमाना में या बाद कोई नया नबी नहीं आ सकता, यह तहरीफ़ है,

इसी तरह कुरआन की जिन आयातों में ग़ैरल्लाह को पुकारने की मुमानिअत की गई है वहाँ मुफ़स्सेरीन का
इत्तिफ़ाक़ है कि इससे मुराद ग़ैरे खुदा को पूजना है जैसे वला तदओ मिन दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़उका वला यजुर्रुका खुदा के सिवा उन को न पुकारो जो नफ़ा व नुक़्सान न पहुँचा सकें।

और कुरआने करीम खुद इसकी तफ़्सीर फरमाता है व मन यद ओ मअल्लाहे इलाहन आख़िरा जो शख्स खुदा के साथ दूसरे माबूद को पुकारे, अब इस तफ़्सीर और इज्मा मुफ़स्सेरीन के होते हुए जो कहे कि ग़ैरल्लाह को पुकारना मना है वह कुरआन में तहरीफ़ करता है इस बहस को खूब अच्छी तरह ख्याल में रखना चाहिए बहुत फ़ायदा मन्द है और आइंदा काम आएगी।

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📕 जा_अल_हक़ व ज़हक़ल_बातिल
       सफ़हा न०- 18

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~  एस. अली. औवैसी  &  शाकिर अली बरेलवी

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