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4 पोस्ट में आपने पढ़ ही लिया होगा कि इस उम्मत में 73 फिरके होंगे जिनमे 1
हक़ पर होगा और 72 जहन्नमी होंगे और इसके दलायल में मैं क़ुर्आनो हदीस और
फुक़्हा के क़ौल भी नकल कर चुका और ये भी बता चुका कि फिरकों में बांटना
सुन्नियों का काम नहीं बल्कि बातिल फिरकों का जनम खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु
तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने में यानि सहाब-ए किराम के दौर में हो चुका था,
तो चलिए कुछ बातिल फिरकों के अक़ायद और उनकी तफसील मुलाहज़ा करिये~
1). क़दरिया - इस बातिल फिरके का बानी बसरा का रहने वाला एक शख्स जिसका नाम मअबद जुहनी था और इसका अक़ीदा था कि इंसान खुद ही अपने अमल का ख़ालिक़ है जब वो कुछ करना चाहता है तब ही वो काम वजूद में आता है और तक़दीर कोई चीज़ नहीं यानि पहले से कुछ भी लिखा हुआ नहीं है और ये भी कि अल्लाह तआला को भी किसी काम का इल्म तब ही होता है जब बंदा कोई काम कर लेता है। मआज़ अल्लाह
हदीस - हज़रते यहया बिन मअमर से मरवी है कि सबसे पहले तक़दीर का जिसने इंकार किया वो मअबद जुहनी है यह्या कहते हैं की मैं और हुमैद बिन अब्दुर्रहमान हज के लिए मक्का मुअज़्ज़मा गए तो हमने कहा कि अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सहाबा में से हमें कोई मिला तो हम उनसे तक़दीर के बारे में मालूमात करेंगे, इत्तिफ़ाक से हमें अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मिल गए जो मस्जिद शरीफ में दाखिल हो रहे थे तो हम दोनों उनके दाएं और बाएं हो लिए, यह्या कहते हैं कि मैं जानता था कि हुमैद खुद बात ना करके मुझसे ही बात करवायेंगे लिहाज़ा मैंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से अर्ज़ किया कि हमारे यहां कुछ लोग हैं जो क़ुर्आन पढ़ते हैं इल्मे दीन हासिल करते हैं और भी कुछ उनकी तारीफ करके मैंने कहा कि वो लोग खयाल करते हैं कि उनका अक़ीदा है कि तक़दीर कोई चीज़ नहीं है और इंसान का करना ही सब कुछ है और इंसान अपने कामों का खुद ही ख़ालिक़ है, ये सब सुनकर हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि जब तुम लोग उनसे मुलाकात करना तो मेरी तरफ से कह देना कि वो मेरे नहीं और मैं उनका नहीं फिर उसके बाद आपने कसम खा कर फरमाया कि अगर कोई शख़्स उहद पहाड़ के बराबर सोना राहे ख़ुदा में खर्च करे तो अल्लाह तआला उसकी ख़ैरात को हरगिज़ क़ुबूल ना करेगा जब तक कि वो तकदीर पर ईमान ना लाये, इसके बाद हज़रत ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की एक तवील हदीस हमको सुनाई जिसका मफहूम ये था कि अच्छी बुरी तक़्दीर का अक़ीदा रखना ईमान के लिए ज़रूरी है।
📕 मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 27
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद इनके बारे में पहले से ही फरमा दिया था, मुलाहज़ा फरमायें~
हदीस - क़दरिया इस उम्मत के मजूसी हैं अगर वो बीमार हों तो उनकी इयादत ना करो और अगर वो मर जायें तो उनके जनाज़े में शरीक ना हो।
📕 मिश्कात, बाबुल ईमान, सफह 22
एक मुसलमान को यही अक़ीदा रखना चाहिये कि कायनात में जो कुछ होता है उन सबका ख़ालिक़ो मालिक सिर्फ अल्लाह ही है और जो भी अच्छे या बुरे काम होते हैं वो सब पहले से लिखा हुआ है और