हदीस - मेरी उम्मत का एक गिरोह क़यामत आने तक हक़ पर रहेगा और दुश्मन उसका कुछ ना बिगाड़ सकेंगे।.

📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 61

कहीं मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये फरमाते हैं कि मेरी उम्मत 73 फिरकों में बट जायेगी तो कहीं आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ये फरमाते हैं कि मेरी उम्मत का एक ही गिरोह हक़ पर रहेगा तो मानना पड़ेगा कि उम्मत तो फिरको में बटेगी और उनमे 1 ही हक़ पर होगा बाक़ी सब जहन्नमी और उस एक का नाम अहले सुन्नत व जमाअत है, इस बात की दलील मैं पिछली पोस्ट में दे चुका हूं फिर भी कुछ और मुलाहज़ा फरमा लें~

हदीस - हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मेरी उम्मत गुमराही पर जमा ना होगी और जब तुम इख्तिलाफ देखो तो बड़ी जमाअत को लाज़िम पकड़ो।

📕 इब्ने माजा, सफह 283


अब बड़ी जमाअत से क्या मुराद है और कौन बड़ी जमाअत है वो भी इसी हदीस के मातहत इसी इब्ने माजा शरीफ के हाशिये में लिखा है कि~

फुक़्हा - बा वजूद तमाम 72 फिरकों के अगर वो मिलाकर भी तुम देखो तो वो अहले सुन्नत के दसवें हिस्से को भी नहीं पहुंचते ।

📕 इब्ने माजा, हाशिया 1, सफह 292


बाक़ायदा नाम के साथ फरमाया गया है कि बड़ी जमाअत अहले सुन्नत व जमाअत ही है लिहाज़ा इसमें ज़र्रा बराबर भी शक व शुबह की गुंजाइश नहीं कि अहले सुन्नत ही हक़ पर है, अब रही इसकी बात कि
हर फिरका ही अपने को हक़ पर बता रहा है तो कैसे पता चलेगा कि वाक़ई हक़ पर कौन है तो ये मसअला तो मुसलमानों की जमाअत का है यानि ये फिरके नाम निहाद मुसलमान ही होंगे काफिरो में से नहीं क्योंकि उनकी गिनती 73 फिरको में नहीं है, ये इसलिए बता रहा हूँ कि अगर वहाबी कहता है कि वो हक़ पर है तो हिन्दू भी तो कहता है कि वो हक़ पर है अगर देवबन्दी कहता है कि वो हक़ पर है तो ईसाई भी तो कहता है कि वो हक़ पर है अगर शिया कहते है कि वो हक़ पर है तो यहूदी भी तो यही कहता है कि वो हक़ है, मतलब ये कि हक़ पर होने का दावा तो सब कर रहे हैं मगर सिर्फ कहने भर से कोई हक़ पर नहीं हो जायेगा उसके लिए दलील व सबूत की ज़रूरत पड़ेगी और बेशुमार दलीलों से साबित है कि हक़ पर सिर्फ अहले सुन्नत व जमाअत ही है, गैरों के मुक़ाबले मुसलमान हक़ पर है इसका ज़िक्र क़ुर्आन में है जैसा कि मौला तआला इरशाद फरमाता है कि~

कंज़ुल ईमान - बेशक अल्लाह के यहां इस्लाम ही दीन है।

📕 पारा 3, सूरह आले इमरान, आयत 19


और मुसलमानों की बात की जाये तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक जितने भी अम्बियाये किराम गुज़रे हैं उन सबमें सबसे अफज़ल उम्मत उम्मते मुहम्मदिया है इसका भी तज़किरा क़ुर्आन में युं है~

कंज़ुल ईमान - और बात यूंही है कि हमने तुम्हे किया सब उम्मतों में अफज़ल ताकि तुम लोगों पर गवाह हो और ये रसूल तुम्हारे निगेहबान और गवाह।

📕 पारा 2, सूरह बक़र, आयत 143


हदीस - एक मर्तबा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने से एक जनाज़ा गुज़रा तो सहाबये किराम ने उसकी तारीफ की तो सरकार अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि वाजिब हो गयी फिर एक दूसरा जनाज़ा गुज़रा जिसकी उन लोगों ने बुराई बयान की तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वाजिब हो गयी, तो हज़रते उमर फारूक़े आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पूछा कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम क्या चीज़ दोनों पर वाजिब हो गयी तो आप सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिसकी तुम लोगों ने तारीफ की उस पर जन्नत वाजिब हो गयी और जिसकी तुम लोगों ने बुराई बयान की उस पर जहन्नम वाजिब हो गयी क्योंकि तुम ज़मीन पर अल्लाह के गवाह हो।

📕 बुखारी, जिल्द 1, सफह 555


इस आयत से और हदीसे पाक से साफ ज़ाहिर होता है कि अल्लाह वाले अगर किसी को काफिर कहते हैं तो वो अल्लाह के नज़दीक भी काफिर ही है और अगर वो किसी को गुमराह कहते हैं तो यक़ीनन वो खुदा के नज़दीक भी गुमराह ही है लिहाज़ा उसको चाहिए कि सामने वाले को गाली देने की बजाये अपने गुनाहों की माफी मांगे और तौबा करे तो ये ज़्यादा बेहतर होता

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)

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