♥आज मुस्लमानों पर दिन-बा-दिन जुल्मो सितम की इन्तेहा देखकर अकसर लोगों के मुंह से ये बातें सुनने को मिलती है के"इस्लाम खतरे मे है"...
याद रखे जो लोग ये कहते है के इस्लाम खतरे मे है, ओ भुल जाईये के इस्लाम को कभी खतरा था न कभी होगा, बल्कि खतरे मे ओ मुस्लमान है जो इस दीन को छोड़कर अपने नफ्स की ताबेदारी कर रहे है,
*जबकी इस दीन की फितरत है के ये हर हाल मे इंसानियत तक पहुंचकर रहेगा....*
▪️और इसी बात को अल्लाह के रसुल (सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम) ने वाजेह फरमाया और कहा :-
"ये दीन तो हर घर मे दाखिल होकर रहेगा, चाहे कच्चा मकान हो या पक्का, या बन्द किले हो, या खुली वादियां हो ।
दीन-ए-इस्लाम सारे आलम-ए-इंसानियत तक पहुंचकर रहने वाला है.."
📚 मुस्नाद अहमद, हदीस-16998
अब हमे तय करना है के हमे साथ रहना है या नही रहना ,....
-जबकी अल्लाह ने तो अपना काम करना है,
-अपने दीन को इंसानों पर वाजेह करना है,
-दीन के साथ चलने वालो को आजमाना और उसका बदला देना है,
-और दीन को छोड़ने वालो को दुनियां और आखिरत मे इबरत बनाना और अजाब देना है,
याद रखीये इस्लाम की पहचान मुस्लमानों से नही, बल्कि मुस्लमानों की पहचान इस्लाम से है,
तो बहरहाल हमे चाहीये के अल्लाह के दीन को थाम ले,
-अल्लाह की किताब और रसुलल्लाह (सलल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम) की इत्तेबा को लाजीम और फर्ज जाने,
अगर ये हम करेंगे तो दुनिया मे भी सुरखुरु होंगे और इन्शा अल्लाह तआला आखिरत मे तो जरुर सुरखुरु होंगे,
अल्लाह के पास कामीयाब कहलायेंगे,
और खुब अज्र पायेंगे अपने अमाल का, इन्शा अल्लाह तआला....
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⚠नोट :- पोस्ट ज़रूर शेअर करें और हमेशा जारी रहने वाले सवाब ए जारीया के हक़दार बने,
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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http://www.MjrMsg.blogspot.com/p/hindi-hadees.html
याद रखे जो लोग ये कहते है के इस्लाम खतरे मे है, ओ भुल जाईये के इस्लाम को कभी खतरा था न कभी होगा, बल्कि खतरे मे ओ मुस्लमान है जो इस दीन को छोड़कर अपने नफ्स की ताबेदारी कर रहे है,
*जबकी इस दीन की फितरत है के ये हर हाल मे इंसानियत तक पहुंचकर रहेगा....*
▪️और इसी बात को अल्लाह के रसुल (सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम) ने वाजेह फरमाया और कहा :-
"ये दीन तो हर घर मे दाखिल होकर रहेगा, चाहे कच्चा मकान हो या पक्का, या बन्द किले हो, या खुली वादियां हो ।
दीन-ए-इस्लाम सारे आलम-ए-इंसानियत तक पहुंचकर रहने वाला है.."
📚 मुस्नाद अहमद, हदीस-16998
अब हमे तय करना है के हमे साथ रहना है या नही रहना ,....
-जबकी अल्लाह ने तो अपना काम करना है,
-अपने दीन को इंसानों पर वाजेह करना है,
-दीन के साथ चलने वालो को आजमाना और उसका बदला देना है,
-और दीन को छोड़ने वालो को दुनियां और आखिरत मे इबरत बनाना और अजाब देना है,
याद रखीये इस्लाम की पहचान मुस्लमानों से नही, बल्कि मुस्लमानों की पहचान इस्लाम से है,
तो बहरहाल हमे चाहीये के अल्लाह के दीन को थाम ले,
-अल्लाह की किताब और रसुलल्लाह (सलल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम) की इत्तेबा को लाजीम और फर्ज जाने,
अगर ये हम करेंगे तो दुनिया मे भी सुरखुरु होंगे और इन्शा अल्लाह तआला आखिरत मे तो जरुर सुरखुरु होंगे,
अल्लाह के पास कामीयाब कहलायेंगे,
और खुब अज्र पायेंगे अपने अमाल का, इन्शा अल्लाह तआला....
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