दौरे हाज़ा में एक जमाअत ऐसी भी पाई जाती है जो कि 73 फिरकों वाली हदीसे पाक का पूरा मफहूम ही बदलने पर उतर आई है, जैसा कि खुद मेरे साथ गुज़रा इलाहाबाद में मदरसा गरीब नवाज़ के एक मौलवी साहब हैं उनसे मेरी बात हुई तो कहने लगे कि 72 फिरकों में वहाबी, देवबंदी, शिया वगैरह शामिल नहीं हैं बल्कि इनके कुफ्र करने से ही ये उम्मते इजाबत से निकलकर उम्मते दावत में शामिल हो गये यानि काफिरों की जमाअत में खड़े हो गए तो मैंने पूछा कि फिर 73 फिरकों में कौन होगा तो बोले इससे मुसलमानों की अंदरूनी जमाअत जैसे क़ादिरी, चिश्ती, नक़्शबंदी, अबुल ओलाई, नियाज़ी, वारिसी, साबरी वग़ैरह मुराद हैं और ये सब के सब जन्नती हैं, मुझे बड़ी हैरत हुई मैंने कहा कि आज तक तो पूरी उम्मते मुस्लिमा यही अक़ीदा रखती है कि 72 फिरकों से मुराद वहाबी देवबंदी वगैरह ही हैं ये आज आपसे एक नई बात सुनने को मिली है तो क्या आज तक हमारे सारे आलिम गलत बयानी कर रहे थे तो कहने लगे कि हमारे उल्मा से इस हदीस को समझने में गलती हुई, खैर मुझे अल्लाह के फज़्ल से इतना इल्म तो था ही कि वो गलत बोल रहे हैं इसलिए मैं वहां से चला आया ये मुआमला 2012 में मेरे साथ पेश आया और उसके बाद से लेकर आज तक कभी उनके पास नहीं गया मगर उनका मुंह बंद करने के लिए मैंने बरैली शरीफ से एक इस्तिफता किया तो वहां से जवाब आया कि ऐसा शख्स गुमराह है और तौबा व तज्दीदे ईमान का हुक्म दिया गया (फतवे के लिए इमेज देखें), जब मैंने इसकी और तहक़ीक़ की तो मुझे पता चला कि ऐसा कहने वाला वो अकेला शख्स नहीं है बल्कि इसके पीछे पूरी एक लॉबी काम कर रही है और इनका मक़सद यही है कि ये खुद तो सुलह कुल्ली टाइप के लोग हैं और कुफ्रो इर्तिदाद की जो तलवार वहाबियों बदअक़ीदों पर लटक रही है उसी तलवार की ज़द में ये लोग खुद भी हैं लिहाज़ा ऐसी सूरत में ये चाहते हैं कि 72 फिरकों की हदीस का इन्कार कर दिया जाये यानि मायने ही बदल दिया जाये ताकि इस सूरत में अगर कोई इनको अहले  सुन्नत व जमाअत से खारिज भी कर देगा तब भी ये अपने आपको 72 फिरकों में गिनकर जन्नती होने का परवाना हासिल कर लेंगे मगर ये शायद भूल गये कि क़ुर्आनो हदीस का जो मायने हमारे अस्लाफ कर गए हैं वो क़यामत तक के लिए हमारे लिए पत्थर की लकीर है और वही हुक्म अल्लाह के नज़दीक भी है लिहाज़ा इनकी अपनी मन घड़न्त बातो से ये अपने आपको बहला तो सकते हैं मगर हमेशा के लिए जहन्नम में जाने से बचा नहीं सकते, इनके लिए बस एक ही रास्ता है या तो फौरन अपने किये पर शर्मिंदा होकर तौबा करें और पूरे तरीके से अक़ायदे अहले सुन्नत पर क़ायम हो जायें वरना जहन्नम में जाने के लिए तैयार रहे, एक और बात बअज़ जाहिल किस्म के लोग कुर्आन की एक आयत पेश करते हैं पहले वो आयत मुलाहज़ा करें~
 
 
कंज़ुल ईमान - और अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो सब मिलकर और आपस में फट ना जाना (फिरकों में ना बट जाना)।

📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 103


इस आयत को पेश करके वो ये बताना चाहते हैं कि फिरके में बटने के लिए मौला तआला ने मना फरमाया है तो जो लोग फिरका-फिरका कर रहे हैं वो गलत राह पर हैं तो इसका जवाब ये है कि बेशक
मौला तआला ने फिरकों में बटने से मना फरमाया है मगर ये भी बताईये कि ये फिरकों में बाट कौन रहा है आखिर वो कौन लोग हैं जो अलग फिरका बनाकर अपनी अलग रविश इख्तियार करते हैं, हम अहले सुन्नत व जमाअत तो 1400 साल से उसी अक़ीदे पर क़ायम है जो अक़ीदा हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें दिया और जिसकी तालीम सहाब-ए किराम, ताबईने किराम, अइम्मये मुजतहिदीन, उल्मा-ए कामेलीन हमको देते चले आये हैं हम तो अल्हम्दुलिल्लाह आज भी उसी राह पर चल रहे हैं जिस पर हमारे नबी ने हमको छोड़ा था, तो इस आयत पर अमल करने का सबसे पहला हक़ उन बदअक़ीदों का है जो अहले सुन्नत व जमाअत से अलग होकर एक नया फिरका बनाते हैं सुन्नी तो सिर्फ उस फिरके की निशान देही करता है, ये तो वही बात हो गयी कि "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" मतलब ये कि कुछ हराम खोर सुन्नियों से अलग होकर बातिल अक़ीदों के साथ एक गुमराह कुन जमाअत बना डालते हैं, मुसलमानों में तफरका डालते हैं मगर वो गलत नहीं करते लेकिन अगर कोई सुन्नी अपने मुसलमान भाई के ईमान की हिफाज़त के लिए उस बातिल फिरके की पहचान बता दे तो सुन्नी फितने बाज़ हो गया, वाह रे मन्तिक ऐसी अहमकाना और बे सर पैर की बातें तो सिर्फ बदअक़ीदों की डिक्शनरी में ही पाई जाती हैं और कहीं नहीं मिलती।

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)

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