🌹 हदीस
- हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर
ऐसा आयेगा जैसा कि बनी इस्राईल पर आया था बिल्कुल हु बहु एक दूसरे के
मुताबिक, यहां तक कि बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी मां के साथ
अलानिया बदफेअली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और
बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जायेगी
उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे
सहाबये किराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम वह
एक मज़हब वाले कौन होंगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया
कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिस पर मैं हूं और मेरे सहाबा
हैं ।
📕 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171
📕 अबु दाऊद,हदीस नं 4579
📕 इब्ने माजा,सफह 287
📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 30
💝 तशरीह - हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस हदीस शरीफ के तहत फरमाते हैं कि "निजात पाने वाला फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत का है अगर ऐतराज़ करे कि कैसे नाजिया फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत है और यही सीधी राह है और खुदाये तआला तक पहुंचाने वाली है और दूसरे सारे रास्ते जहन्नम के रास्ते हैं जबकि हर फिरक़ा दावा करता है कि वो राहे रास्त पर है और उसका मज़हब हक है तो इसका जवाब ये है कि ये ऐसी बात नहीं जो सिर्फ दावे से साबित हो जाये बल्कि इसके लिए ठोस दलील चाहिये, और अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत की दलील ये है कि ये दीने इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल होकर हम तक पहुंचा है और अक़ायदे इस्लाम मालूम करने के लिए सिर्फ अक़्ल का ज़रिया काफी नहीं है, जबकि हमें अखबारे मुतवातिर से मालूम हुआ और आसारे सहाबा और अहादीसे करीमा की तलाश से यक़ीन हुआ कि सल्फ सालेहीन यानि सहाबा ताबईन और उनके बाद के तमाम बुज़ुर्गाने दीन इसी अक़ीदा और इसी तरीक़े पर रहे और अक़्वाले मज़ाहिब में बिदअत व नफसानियत ज़मानये अव्वल के बाद पैदा हुई, सहाब-ए किराम और सल्फ मुताक़द्देमीन यानि ताबईन तबअ ताबईन व मुज्तहेदीन में से कोई भी उस नए मज़हब पर नहीं थे उससे बेज़ार थे बल्कि नए मज़हब के ज़ाहिर होने पर मुहब्बत और उठने बैठने का जो लगाओ पहले क़ौम के साथ था वो तोड़ लिया और ज़बानो क़लम से उसका रद्द फरमाया ।
सियाह सित्तह व हदीस की दूसरी मुसतनद किताबों की जिन पर अहकामे इस्लाम का मदार व मबनी हुआ उसके मुहद्देसीन और हनफी शाफई मालिकी व हंबली के फुक़्हा व अइम्मा और उनके अलावा दूसरे उल्मा जो उनके तबक़े में थे सब इसी मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर क़ायम थे, इसके अलावा अशारिया व मातुरीदिया जो उसूले कलाम के अइम्मा हैं उन्होंने भी सल्फ के मज़हब यानि अहले सुन्नत व जमाअत की ताईद व हिमायत फरमाई और दलायले अक़्लिया से इसे साबित फरमाया और जिन बातों पर सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और इजमाये सल्फ सालेहीन जारी रहा उसको ठोस क़रार दिया इसीलिए अशारिया
और मातुरीदिया का नाम अहले सुन्नत व जमाअत पड़ा, अगर चे ये नाम नया है मगर मज़हबो एतेक़ाद उनका पुराना है और उनका तरीक़ा अहादीसे नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इत्तेबा और सल्फ सालेहीन के अक़वाल व आमाल की इक़्तिदा करना है, सूफियाये किराम की निहायत क़ाबिल और एतेमाद किताब तअर्रुफ है जिसके बारे में सय्यदना शेख शहाब उद्दीन सुहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तअर्रुफ किताब ना होती तो हम लोग मसायल तसव्वुफ से नावाकिफ रह जाते, इस किताब में सूफियाये किराम के जो इजमाली अक़ायद बयान किये गए हैं वो सबके सब बिला कम वा कास्त अहले सुन्नत ही के अक़ायद हैं, हमारे इस बयान की सच्चाई ये है कि हदीस-तफ़्सीर-कलाम-फिक़ह-तसव्वुफ-सैर और तारीखे मोअतबर की किताबें जो भी मशरिक से लेकर मग़रिब तक के इलाके में मशहूर व मारूफ हैं उन सबको जमा किया जाये और उनकी छान-बीन की जाये और मुखालेफीन भी अपनी किताबें लायें ताकि आशकार हो जाये की हक़ीक़त हाल क्या है, खुलासये कलाम ये कि दीने इस्लाम में सवादे आज़म मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत ही है ।
📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 1,सफह 140
✳️ अब आज जो लोग सुन्नियों से ये कहते नज़र आते हैं कि क्यों फिरकों में मुसलमानो को उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना ऐसी आफताब रौशन हदीस से रद्द गरदानी ना करते, ये फिरका सुन्नी नहीं बनाते बल्कि कुछ बे ईमान अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत बना डालते हैं सुन्नी उसी की निशान देही कराता है, और फिरक़ा बनना तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़मानये मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतें नाज़िल हुई और कई हदीसे पाक मरवी है।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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📕 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171
📕 अबु दाऊद,हदीस नं 4579
📕 इब्ने माजा,सफह 287
📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 30
💝 तशरीह - हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इस हदीस शरीफ के तहत फरमाते हैं कि "निजात पाने वाला फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत का है अगर ऐतराज़ करे कि कैसे नाजिया फिरक़ा अहले सुन्नत व जमाअत है और यही सीधी राह है और खुदाये तआला तक पहुंचाने वाली है और दूसरे सारे रास्ते जहन्नम के रास्ते हैं जबकि हर फिरक़ा दावा करता है कि वो राहे रास्त पर है और उसका मज़हब हक है तो इसका जवाब ये है कि ये ऐसी बात नहीं जो सिर्फ दावे से साबित हो जाये बल्कि इसके लिए ठोस दलील चाहिये, और अहले सुन्नत व जमाअत की हक़्क़ानियत की दलील ये है कि ये दीने इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मन्क़ूल होकर हम तक पहुंचा है और अक़ायदे इस्लाम मालूम करने के लिए सिर्फ अक़्ल का ज़रिया काफी नहीं है, जबकि हमें अखबारे मुतवातिर से मालूम हुआ और आसारे सहाबा और अहादीसे करीमा की तलाश से यक़ीन हुआ कि सल्फ सालेहीन यानि सहाबा ताबईन और उनके बाद के तमाम बुज़ुर्गाने दीन इसी अक़ीदा और इसी तरीक़े पर रहे और अक़्वाले मज़ाहिब में बिदअत व नफसानियत ज़मानये अव्वल के बाद पैदा हुई, सहाब-ए किराम और सल्फ मुताक़द्देमीन यानि ताबईन तबअ ताबईन व मुज्तहेदीन में से कोई भी उस नए मज़हब पर नहीं थे उससे बेज़ार थे बल्कि नए मज़हब के ज़ाहिर होने पर मुहब्बत और उठने बैठने का जो लगाओ पहले क़ौम के साथ था वो तोड़ लिया और ज़बानो क़लम से उसका रद्द फरमाया ।
सियाह सित्तह व हदीस की दूसरी मुसतनद किताबों की जिन पर अहकामे इस्लाम का मदार व मबनी हुआ उसके मुहद्देसीन और हनफी शाफई मालिकी व हंबली के फुक़्हा व अइम्मा और उनके अलावा दूसरे उल्मा जो उनके तबक़े में थे सब इसी मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर क़ायम थे, इसके अलावा अशारिया व मातुरीदिया जो उसूले कलाम के अइम्मा हैं उन्होंने भी सल्फ के मज़हब यानि अहले सुन्नत व जमाअत की ताईद व हिमायत फरमाई और दलायले अक़्लिया से इसे साबित फरमाया और जिन बातों पर सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और इजमाये सल्फ सालेहीन जारी रहा उसको ठोस क़रार दिया इसीलिए अशारिया
और मातुरीदिया का नाम अहले सुन्नत व जमाअत पड़ा, अगर चे ये नाम नया है मगर मज़हबो एतेक़ाद उनका पुराना है और उनका तरीक़ा अहादीसे नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इत्तेबा और सल्फ सालेहीन के अक़वाल व आमाल की इक़्तिदा करना है, सूफियाये किराम की निहायत क़ाबिल और एतेमाद किताब तअर्रुफ है जिसके बारे में सय्यदना शेख शहाब उद्दीन सुहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तअर्रुफ किताब ना होती तो हम लोग मसायल तसव्वुफ से नावाकिफ रह जाते, इस किताब में सूफियाये किराम के जो इजमाली अक़ायद बयान किये गए हैं वो सबके सब बिला कम वा कास्त अहले सुन्नत ही के अक़ायद हैं, हमारे इस बयान की सच्चाई ये है कि हदीस-तफ़्सीर-कलाम-फिक़ह-तसव्वुफ-सैर और तारीखे मोअतबर की किताबें जो भी मशरिक से लेकर मग़रिब तक के इलाके में मशहूर व मारूफ हैं उन सबको जमा किया जाये और उनकी छान-बीन की जाये और मुखालेफीन भी अपनी किताबें लायें ताकि आशकार हो जाये की हक़ीक़त हाल क्या है, खुलासये कलाम ये कि दीने इस्लाम में सवादे आज़म मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत ही है ।
📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 1,सफह 140
✳️ अब आज जो लोग सुन्नियों से ये कहते नज़र आते हैं कि क्यों फिरकों में मुसलमानो को उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना ऐसी आफताब रौशन हदीस से रद्द गरदानी ना करते, ये फिरका सुन्नी नहीं बनाते बल्कि कुछ बे ईमान अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत बना डालते हैं सुन्नी उसी की निशान देही कराता है, और फिरक़ा बनना तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़मानये मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतें नाज़िल हुई और कई हदीसे पाक मरवी है।
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