🔆 जो
लोग सुन्नियों से ये कहते नज़र आते हैं कि मुसलमानो को फिरकों में क्यों
उलझा रखा है दर असल वो जाहिल अहमक़ और बे ईमान किस्म के लोग हैं वरना
आफताब रौशन दलीलों से रद्द गरदानी ना करते क्योंकि फिरका सुन्नी नहीं बनाते
बल्कि कुछ बे ईमान लोग अहले सुन्नत व जमाअत से निकलकर एक अलग गुमराह जमाअत
बना डालते हैं सुन्नी बस उसी गुमराह जमाअत की निशान देही कराता है, और रही
फिरक़ा बनने की बात तो ये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़मानये
मुबारक में ही शुरू हो गया था कुछ बे ईमान मुसलमानों से अलग एक जमाअत बना
चुके थे जिसे मुनाफिक़ कहा गया और उन मुनाफिक़ों के हक़ में कई आयतें नाज़िल
हुई और कई हदीसे पाक मरवी है, मुलाहज़ा फरमायें ~
कंज़ुल ईमान - मुनाफेक़ीन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो, और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफिक़ ज़रूर झूठे हैं........इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों के लिए है मगर मुनाफिकों को खबर नहीं ।
📕 पारा 28, सूरह मुनाफिक़ून,आयत 1/8
कंज़ुल ईमान - कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना, फिर कुछ उनमें से उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुसलमान नहीं ।
📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 47
कंज़ुल ईमान - ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाये तुम फरमा दो कि तुम ना लाये हां युं कहो कि हम मुतीउल इस्लाम हुए, ईमान अभी तुम्हारे दिलो में कहां दाखिल हुआ।
📕 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 14
कंज़ुल ईमान - तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुनकिर हो, तो जो कोई तुममें से ऐसा करे तो उसका बदला दुनिया की ज़िन्दगी में रुस्वाई और क़यामत के दिन सबसे ज़्यादा अज़ाब की तरफ पलटे जायेंगे, और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से बे खबर नहीं । यही लोग हैं जिन्होंने अक़्ल बेचकर दुनिया खरीदी, तो ना उन पर से कुछ अज़ाब हल्का हो और न उनको मदद पहुंचे।
📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 85-86
इन आयतों को ग़ौर से पढ़िये और बताइये कि वो कौन लोग थे जो अल्लाह पर ईमान लाते थे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नुबूवत की गवाही देते थे, ज़ाहिर सी बात है कि काफिर तो ऐसा करते नहीं हैं क्योंकि वो तो सिरे से मुनकिर हैं तो मानना पड़ेगा कि ये वही लोग थे जो बज़ाहिर तो दाढ़ी रखते, टोपी लगाते, नमाज़ पढ़ते रोज़ा रखते, हज करते, ज़कात देते, मगर फिर भी दिल से ईमान नहीं लाते थे और ये वही लोग थे जो क़ुर्आन की वो आयतें मानते जो इनके लिए नफा बख्श होती और जो इनके हक़ में ना होती यानि जिनसे अम्बिया व औलिया की शान बयान होती उसका फौरन इंकार कर देते, मुनाफिक़ की यही खसलत वहाबी, देवबंदी, क़ादियानी, खारजी, राफ्ज़ी, अहले हदीस, जमाअते इस्लामी और तमाम बदमज़हबो के अंदर पाई जाती है कि क़ुर्आन की जो आयत इनके हक़ में है उस पर फौरन ईमान ले आये और जो इनके हक़ में नहीं
उससे इंकार कर दिया मगर याद रहे कि क़ुर्आन की एक भी आयत का इन्कार कुफ्र है, बहर हाल ऐसी सैकड़ों आयतें पेश की जा सकती है मगर उन सबको ना लिखकर सिर्फ उनका हवाला लिखा, जिनको शौक हो वो क़ुर्आन खोलकर देख सकता है।
📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 39
📕 पारा 26, सूरह मुहम्मद, आयत 34
📕 पारा 26, सूरह फतह,आयत 26/29
📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 55
📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 115
📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 110
📕 पारा 28, सूरह मुजादिला,आयत 22
📕 पारा 20, सूरह अंकबूत,आयत 2
📕 पारा 10, सूरह तौबा,आयत 23
📕 पारा 28, सूरह मुमतहिना, आयत 1-2
📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 51
📕 पारा 9, सूरह ऐराफ, आयत 179
📕 पारा 25, सूरह जाशिया, आयत 23
📕 पारा 28, सूरह जुमा, आयत 5
कंज़ुल ईमान - और बीच की राह ठीक अल्लाह तक है और कुछ राहें टेढ़ी है।
📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 9
कंज़ुल ईमान - ये है मेरा सीधा रास्ता तो इस पर चलो और राहें ना चलो कि तुम्हें उसकी राह से जुदा कर देगी।
📕 पारा 8, सूरह इनआम, आयत 153
इन दोनों आयतों की तशरीह इस हदीसे पाक से होती है,मुलाहज़ा फरमायें~
हदीस - हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें समझाने के लिए एक सीधी लकीर खींची और फरमाया कि ये अल्लाह का रास्ता है फिर उसी लकीर के दायें बायें चन्द और लकीरें खींचकर फरमाया कि ये भी रास्ते हैं इनमे से हर एक रास्ते पर शैतान बैठा हुआ है जो अपनी तरफ बुलाता है फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये आयत पढ़ी (जो ऊपर दर्ज है)
📕 मिश्कात, बाबुल सुन्नह, सफह 30
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ नौशाद अहमद ज़ेब रज़वी (ज़ेब न्यूज़)
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कंज़ुल ईमान - मुनाफेक़ीन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो, और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफिक़ ज़रूर झूठे हैं........इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मुसलमानों के लिए है मगर मुनाफिकों को खबर नहीं ।
📕 पारा 28, सूरह मुनाफिक़ून,आयत 1/8
कंज़ुल ईमान - कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना, फिर कुछ उनमें से उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुसलमान नहीं ।
📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 47
कंज़ुल ईमान - ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाये तुम फरमा दो कि तुम ना लाये हां युं कहो कि हम मुतीउल इस्लाम हुए, ईमान अभी तुम्हारे दिलो में कहां दाखिल हुआ।
📕 पारा 26, सूरह हुजरात, आयत 14
कंज़ुल ईमान - तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुनकिर हो, तो जो कोई तुममें से ऐसा करे तो उसका बदला दुनिया की ज़िन्दगी में रुस्वाई और क़यामत के दिन सबसे ज़्यादा अज़ाब की तरफ पलटे जायेंगे, और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से बे खबर नहीं । यही लोग हैं जिन्होंने अक़्ल बेचकर दुनिया खरीदी, तो ना उन पर से कुछ अज़ाब हल्का हो और न उनको मदद पहुंचे।
📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 85-86
इन आयतों को ग़ौर से पढ़िये और बताइये कि वो कौन लोग थे जो अल्लाह पर ईमान लाते थे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नुबूवत की गवाही देते थे, ज़ाहिर सी बात है कि काफिर तो ऐसा करते नहीं हैं क्योंकि वो तो सिरे से मुनकिर हैं तो मानना पड़ेगा कि ये वही लोग थे जो बज़ाहिर तो दाढ़ी रखते, टोपी लगाते, नमाज़ पढ़ते रोज़ा रखते, हज करते, ज़कात देते, मगर फिर भी दिल से ईमान नहीं लाते थे और ये वही लोग थे जो क़ुर्आन की वो आयतें मानते जो इनके लिए नफा बख्श होती और जो इनके हक़ में ना होती यानि जिनसे अम्बिया व औलिया की शान बयान होती उसका फौरन इंकार कर देते, मुनाफिक़ की यही खसलत वहाबी, देवबंदी, क़ादियानी, खारजी, राफ्ज़ी, अहले हदीस, जमाअते इस्लामी और तमाम बदमज़हबो के अंदर पाई जाती है कि क़ुर्आन की जो आयत इनके हक़ में है उस पर फौरन ईमान ले आये और जो इनके हक़ में नहीं
उससे इंकार कर दिया मगर याद रहे कि क़ुर्आन की एक भी आयत का इन्कार कुफ्र है, बहर हाल ऐसी सैकड़ों आयतें पेश की जा सकती है मगर उन सबको ना लिखकर सिर्फ उनका हवाला लिखा, जिनको शौक हो वो क़ुर्आन खोलकर देख सकता है।
📕 पारा 1, सूरह बक़र, आयत 39
📕 पारा 26, सूरह मुहम्मद, आयत 34
📕 पारा 26, सूरह फतह,आयत 26/29
📕 पारा 18, सूरह नूर, आयत 55
📕 पारा 5, सूरह निसा, आयत 115
📕 पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 110
📕 पारा 28, सूरह मुजादिला,आयत 22
📕 पारा 20, सूरह अंकबूत,आयत 2
📕 पारा 10, सूरह तौबा,आयत 23
📕 पारा 28, सूरह मुमतहिना, आयत 1-2
📕 पारा 6, सूरह मायदा, आयत 51
📕 पारा 9, सूरह ऐराफ, आयत 179
📕 पारा 25, सूरह जाशिया, आयत 23
📕 पारा 28, सूरह जुमा, आयत 5
कंज़ुल ईमान - और बीच की राह ठीक अल्लाह तक है और कुछ राहें टेढ़ी है।
📕 पारा 14, सूरह नहल, आयत 9
कंज़ुल ईमान - ये है मेरा सीधा रास्ता तो इस पर चलो और राहें ना चलो कि तुम्हें उसकी राह से जुदा कर देगी।
📕 पारा 8, सूरह इनआम, आयत 153
इन दोनों आयतों की तशरीह इस हदीसे पाक से होती है,मुलाहज़ा फरमायें~
हदीस - हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें समझाने के लिए एक सीधी लकीर खींची और फरमाया कि ये अल्लाह का रास्ता है फिर उसी लकीर के दायें बायें चन्द और लकीरें खींचकर फरमाया कि ये भी रास्ते हैं इनमे से हर एक रास्ते पर शैतान बैठा हुआ है जो अपनी तरफ बुलाता है फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये आयत पढ़ी (जो ऊपर दर्ज है)
📕 मिश्कात, बाबुल सुन्नह, सफह 30
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