Pahli Rakat Kaa Ruku Mil Gayaa To........

Mas'alaa:- Pahli Rakat Kaa Ruku Mil Gayaa To Takbire-ulaa Yaa'ni Takbire-tahrimaa Ki Phajilat Mil Gayi.

#(Aalamgiri; Bahaare Shariat)
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🖌️Post Credit ~ Shakir Ali Barelwi Razvi  wa  Ahliya Mohtarma

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Gunge Shakhs Ke Liye Taqbire-tahrimaa Kaa Hukm

Mas'alaa:- Jo Shakhs Takbir Ke Talaphphuz Par Kaadir Na Ho, Maslan Gungaa (Mungaa-dumb) Ho Yaa Kisi Wajah Se Jubaan Bandh Ho Gayi Ho, Us Par Talaphphuz Yaa'ni Munh Se Bolnaa waajib Nahin. Dil Me iraadaa Kaafi Hai, Yaa'ni Dil Men Kah Le.

#(Durre Mukhtaar)
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Nafl Namaz Me Taqbire-tahrimaa Kaa Hukm

Mas'alaa:- Nafl Namaz Ke Liye Taqbire-tahrimaa Ruku Me Kahi To Namaz Na Huyi Aur Agar Baith Kar Kahi To Ho Gayi.

#(Raddul Mohtaar)
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Jhukne Ki Haalat Me Taqbire-Tahrimaa Par Namaz Kaa Hukm

Masalaa:- Baa'z (Kuchh) Log Imaam Ko Ruku Me Paa Lene Ki Garaj Se Jaldi-jaldi Ruku Me Jaate Hua Taqbire-tahrimaa Kahte Hain Aur Jakne Ki Haalat Me Tqbire-tahrimaa Kahte Hain, Unki Namaz Nahin Hoti.

Unko Apni Namaz Phir Se Dobaaraa Padhni Chaahiye.

#(Fataawaa Rizviyaa, Jild-3, Safaa-393)
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Imaam Ruku Me Ho To Muqatdi Taqbire-tahrimaa Kaise Kahe

Masalaa:- Imaam Ko Ruku Me Paayaa Aur Muqatdi Taqbire Tahrimaa Kahtaa Huaa Ruku Me Gayaa Aur Taqbire-tahrimaa Us Wakt Khatm Kee Ki Agar Haath Badhaaa (Lambaa Kare) To Ghutne Tak Pahunch Jaaye, To Uski Namaz Na Huyi.

#(Raddul Mohtaar)
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Kis Namaz Me Baith Ke, Kis Namaz Me Khade Hokar Taqbire-Tahrima Kahnaa Chaahiye

Masalaa:- Jin Namazon Me Qayaam (Khadaa Honaa) Pharz Hai, Unme Taqbire-tahrima Ke Liye Bhi Qayaam Pharz Hai.

Agar Kisi Ne Baithakar 'Allahu Akabar' Kahaa, Phir Khadaa Ho Gayaa, To Uski Namaz Shuru Hee Na Huyi.

#(Durre Mukhtaar; Aalamgiri)
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तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर को कैसे रखना चाहिए

मस्अला:- तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर न झुकाना बल्कि सीधा रखना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीर कहने से पहले हाथ को उठाना

मस्अला:- दोनों हाथों को तकबीर कहने से पहले उठाना सुन्नत है।
#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा कहते वक्त हथेलियों का रुख किधर होना चाहिये

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा कहते वक्त हथेलियों और ऊंगलियों के पेट किब्ला रु होना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा में हाथ कैसे रखना चाहिये

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा में हाथ उठाते वक्त ऊंगलियों को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिये या'नी ऊंगलियों को बिल्कुल मिलाना भी न चाहिये और ब:तकल्लुफ (तकलीफ उठाकर-Inconvenient) कुशादा (खुली-Opened) भी न रखना चाहिये और येह सुन्नत तरीका है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे तहरीमा में हाथ उठाना

मस्अला:- तकबीरे तहरीमा के लिये दोनों हाथों को कानों तक उठाना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा कहना वाजिब

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा में अल्लाहो अकबर का जुमला (वाक्य) कहना वाजिब है।

#(बहारे शरीअत)
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पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो....

मस्अला:- पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो तकबीरे-उला या'नी तकबीरे-तहरीमा की फजीलत मिल गई।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत)
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गूंगे शख्स के लिए तकबीरे-तहरीमा का हुक्म

मस्अला:- जो शख्स तकबीर के तलफ्फुज़ पर कादिर न हो, मस्लन गूंगा (मूंगा-Dumb) हो या किसी वजह से जुबान बंध हो गई हो, उस पर तलफ्फुज या'नी मुंह से बोलना वाजिब नहीं। दिल में इरादा काफी है, या'नी दिल में कह ले।

#(दुर्रे मुख़्तार)
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नफ़्ल नमाज़ में तकबीरे-तहरीमा का हुक्म

मस्अला:- नफ्ल नमाज़ के लिये तकबीरे-तहरीमा रुकूअ में कही तो नमाज़ न हुई और अगर बैठ कर कही तो हो गई।

#(रद्दुल मोहतार)
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झुकने की हालत में तकबीरे-तहरीमा पर नमाज़ का हुक्म


मस्अला:-  बा'ज़ (कुछ) लोग इमाम को रुकूअ में पा लेने की गरज से जल्दी-जल्दी रुकूअ में जाते हुए तकबीरे-तहरीमा कहते हैं और ज़कने की हालत में तकबीरे-तहरीमा कहते हैं, उनकी नमाज़ नहीं होती।

उनको अपनी नमाज़ फिर से दोबारा पढ़नी चाहिये।

#(फतावा रिज़वीया, जिल्द-3, सफ़ा-393)
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इमाम रुकू में हो तो मुक़तदी तकबीरे-तहरीमा कैसे कहे

मस्अला:- इमाम को रुकूअ में पाया और मुक़तदी तकबीरे तहरीमा कहता हुआ रुकूअ में गया और तकबीरे-तहरीमा उस वक्त ख़त्म की कि अगर हाथ बढ़ाए (लम्बा करे) तो घुटने तक पहुँच जाए, तो उसकी नमाज़ न हुई।

#(रद्दुल मोहतार)
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किस नमाज़ में बैठ के, किस नमाज़ में खड़े होकर तकबीरे-तहरीमा कहना चाहिए

मस्अला:- जिन नमाज़ों में कयाम (खड़ा होना) फर्ज़ है, उनमें तकबीरे-तहरीमा के, लिये भी कयाम फर्ज है।

अगर किसी ने बैठकर 'अल्लाहो अकबर' कहा, फिर खड़ा हो गया, तो उसकी नमाज़ शुरु ही न हुई।

#(दुर्रे मुख़्तार; आलमगीरी)
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बेवजह नमाज़ की निय्यत तोड़ना

मस्अला:- बे सबब (बिना कारण) निय्यत तौड़ देना या'नी नमाज़ शुरू करने के बाद बिला शरई वजह से नमाज़ तोड़ देना हराम है।
#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3, सफ़ा-414)
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नमाज़ में अज़ान का जवाब देने का हुक्म

मस्अला:- कोई शख्स नमाज़ पढ़ रहा था और का'दा की हालत में अत्तहिय्यात पढ़ रहा था। जब 'कल्म-ए-तशह्हुद' के करीब पहुंचा, तब मोअज्जिन ने अज़ान में 'शहादतैन' (दो शहादतें) कहीं, उस नमाजी ने 'अत्तहिय्यात' की किरअत के बजाए (बदले) अज़ान का जवाब देने की निय्यत से 'अश्हदो-अल-ला-इलाहा-इल्लल्लाहो-व-अशहदो-अन्ना-मुहम्मदन-अब्दोहु-व-रसूलोहु' कहा, तो उसकी नमाज़ फासिद हो गई।

#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-406)
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नमाज़ में "सदकल्लाहो-व-सदका रसूलोहु" कहना

मस्अला:- मुक्तदी ने इमाम की किरअत सुनकर "सदकल्लाहो-व-सदका रसूलोहु'' कहा, तो नमाज़ फासिद हो गई।
#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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वो मुक्तदी जिसकी कुछ रकअतें छूट गयी, वो बाकी नमाज़ कैसे अदा करे

मस्अला:- मस्बूक या'नी वोह मुक्तदी जो जमाअत में शामिल हुआ मगर उस की एक या ज्यादा रकअतें छूट गई हैं, वोह मुक्तदी इमाम के सलाम फैरने के बाद अपनी फौत शुदा (छुटी हुई) रकअतें पढ़ेगा।

उस मस्बूक मुक्तदी ने येह खयाल कर के कि इमाम के साथ सलाम फैरना चाहिये, और उसने इमाम के साथ सलाम फैर दिया, तो उसकी नमाज़ फासिद हो गई।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-149)
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नमाज़ में तस्बीहात को ज़बान से गिनना

मस्अला:- हालते नमाज़ में आयतों, सूरतों और तस्बीहात को ज़बान से गिनना (गिनती करना-Countings) मुफसिदे नमाज़ है।

#(बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-171)
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बेहोश हो जाने पर नमाज़ का हुक्म

मस्अला:- बेहोश (बेभान-Unconcious) हो जाने से या वुजू या गुस्ल टूट जाने से नमाज़ फासिद हो जाती है।

#(बहारे शरीअत)
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नमाज़ में ऐसी दुआ करना कि जिसका सवाल बंदे से भी किया जा सकता है

मस्अला:- नमाज़ में ऐसी दुआ करना कि जिसका सवाल बंदे से भी किया जा सकता है, मुफसिदे-नमाज़ है।

मस्लन येह दुआ की कि- 'अल्लाहुम्मा-अत्इमनी' या'नी ए अल्लाह ! मुजे खाना खिला', या 'अल्लाहुम्मा-ज़व्विजनी' या'नी ए अल्लाह ! मेरा निकाह करा दे, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(आलमगीरी; बहारे-शरीअत हिस्सा-3, सफ़ा-151)
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सज्दा करने की जगह पाँव रखने की जगह से ऊंची होने पर नमाज़ का हुक्म

मस्अला:- अगर सजदा की जगह पांव की जगह से चार गिरह से ज़यादा उंची हो तो सिरे से (प्रारम्भ-Origin) नमाज़ ही नहीं होगी और अगर चार (4) गिरह या कम (Less) बुलन्दी मुम्ताज़ (विशिष्ट-Eminent) हुई, तो नमाज़ कराहत से खाली नहीं।

या'नी पांव रखने की जगह से सजदा करने की जगह एक (1) बालिश्त (बेंत/Span) भर उंची हो, तो नमाज ही नहीं होगी।

#(दुर्रे मुख्तार; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-42/438)


नोट :-

◆एक गिरह = तीन (3) ऊंगल चौड़ाई (Wide)

नमाज़ में जुयें मारने का हुक्म

मस्अला:- पै-दर-पै (लगातार-Successively) तीन (3) बाल (Hair) उखेड़े या तीन जुयें (जू-Lice) मारी या एक ही 'जू' को तीन मरतबा मारा (प्रहार किया) तो नमाज़ फासिद हो जाएगी

और अगर 'पै-दर-पै' न हों, तो नमाज़ फासिद नहीं होगी, अलबत्ता मकरूह ज़रूर होगी।

#(आलमगीरी; गुन्या; बहारे-शरीअत)
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नमाज़ में सांप वगैरह को मारना

मस्अला:- हालते-नमाज़ में सांप (सर्प-Snake) या बिच्छू (Scorpion) को मारने से नमाज फासिद नहीं होती, जबकि मारने के लिये तीन (3) कदम (Step) चलना न पड़े या तीन ज़र्ब (प्रहार-Beeting) की हाजत न हो।

इस तरह हालते नमाज़ में सांप या बिच्छू मारने की इजाज़त है और नमाज भी फासिद न होगी और अगर मारने में तीन (3) कदम चलना पड़े या तीन (3) ज़र्ब की हाजत हो, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी, मगर मारने की फिर भी इजाजत है, अगरचे नमाज़ फासिद हो जाए।

#(आलमगीरी; गुन्या; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा/156)
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नमाज़ के हालत में बदन का कोई हिस्सा खुजलाये तो क्या करना चाहिए

मस्अला:- अगर हालते नमाज़ में बदन के किसी मकाम पर खुजली आए, तो बेहतर येह है कि जब्त (संयम-Control) करे और अगर ज़ब्त न हो सके और उसके सबब (कारण) से नमाज में दिल परेशान हो, तो खुजा ले मगर एक रूक्न मस्लन कयाम, या कुउद या रूकूअ या सुज़ुद में तीन (3) मरतबा न खुजाए, सिर्फ दो (2) मरतबा तक खुजाने की इजाज़त है।

#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-446)
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नमाज़ में बदन के किसी हिस्से को खुजलाना का हुक्म

मस्अला:- एक रूकन में तीन (३) मरतबा खुजाने (खुजलाना-itching) से नमाज फासिद हो जाएगी या'नी इस तरह खुजाया कि एक मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया, फिर दूसरी मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया, फिर तीसरी मरतबा खुजाया तो नमाज़ फासिद हो जाएगी

और अगर सिर्फ एक बार हाथ रखकर चन्द मरतबा हरकत दी, तो एक ही मरतबा खुजाना कहा जाएगा।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-156)
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नमाज़ में अमले-कलील करना


मस्अला:- अमले-कलील करने से नमाज़ फासिद न होगी।

अमले-कलील से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले-नमाज़ से या नमाज़ की इस्लाह के लिये न हो और उस काम के करने वाले नमाजी को देखकर देखने वाले को गुमान गालिब न हो कि येह आदमी नमाज़ में नहीं, बल्कि शक व शुब्ह (आशंका) हो कि नमाज़ में है या नहीं? तो एसा काम अमले-कलील है।

#(दुर्रे मुख़्तार)

नोट:- बा'ज़ लोग हालते-नमाज़ में कौमा से सजदा में जाते वक्त दोनों हाथों से पाजामा उपर की तरफ खींचते हैं या का'दा में बैठते वक्त कुर्ता या कमीज (शट) का दामन सीधा करके गोद में बिछाते हैं।

इस हरकत (आचरण) से नमाज़ फासिद हो जाने का अंदेशा है, क्योंकि येह काम दोनों हाथों से किया

नमाज़ में पाजामा पहनना

मस्अला:- हालते-नमाज़ में कुर्ता या पाजामा पहना या उतारा, या तहेबन्द बांधा, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।
#(गुन्या शरहे मुन्या)
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नमाज़ में अमले-कसीर करना

मस्अला:- नमाज़ में अमले-कसीर करना मुफसिदे नमाज़ है।
अमले-कसीर से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले-नमाज़ (नमाज के कामों) से न हो और न ही वोह अमल नमाज़ की इस्लाह के लिये हो।

अमले -कसीर की मुख़्तसर और जामे अ तारीफ (संक्षिप्त तथा सुस्पष्ट,Comprehensive व्याख्या) येह है कि ऐसा अमल करना कि उस काम को करने वाले नमाज़ी को दूर से देखकर देखने वाले को गालिब, गुमान हो कि येह शख्स नमाज़ में नहीं, तो वोह काम 'अमले कसीर' है।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3, सफ़ा-153)
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नमाज़ में ऐसे क़ुरान पढ़ना जिसके माना कुछ का कुछ हो जाए

मस्अला:- कुरआने मजीद को नमाज में पढ़ने में ऐसी गलती करना कि जिसकी वजह से फसादे-मा' ना (अर्थ का अनर्थ-Depravity of Meaning) हो तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।
#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-135)
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तकबीरे तहरीमा कहते वक़्त ख्याल रखें

मस्अला:- तकबीराते-इन्तेकाल में 'अल्लाहो-अकबर' के 'अलिफ' को दराज़ किया, या'नी 'आल्लाहो अकबर' या 'अल्लाहो आकबर' कहा,

या 'बे' के बाद 'अलिफ' बढ़ाया, या'नी 'अल्लाहो अकबार' कहा,

या 'अल्लाहो-अकबर' की 'रे' को 'दाल' पढ़ा, या'नी 'अल्लाहो अकबद' कहा, तो नमाज फासिद हो गई, और अगर 'तकबीरे तहरीमा' के वक्त ऐसी गलती हुई, तो नमाज़ शुरू ही न हुई।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-121/136)
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नमाज़ में नापाक जगह पर सज्दा करना


मस्अला:- नापाक जगह पर बगैर हाइल (आड-intervene) सजदा किया, तो नमाज़ फासिद हो गई।

इसी तरह हाथ या घुटने सजदा में नापाक जगह पर रखे, तो भी नमाज़ फासिद हो गई।

#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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नमाज़ में सीना को किब्ला शरीफ से हटाना

मस्अला:- सीना को किब्ला से फैरना मुफसिदे-नमाज़ है या'नी सीना किब्ला की खास जहत (दिशा) से पैंतालीस (४५) दर्जा (डिग्री) हट जाए।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-154; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-116)
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नमाज़ की हालत में अल्फ़ाज़/शब्द लिखना

मस्अला:- नमाज़ की हालत में तीन कल्मे (अलफाज़/शब्द-Words) इस तरह लिखे कि हुरूफ (अक्षर) जाहिर हों, तो नमाज फासिद हो जाएगी।

मस्लन रैत (बालू-Sand) या मिट्टी पर लिखे और अगर हुरूफ जाहिर न हों, तो नमाज फासिद नहीं होगी, मस्लन पानी पर या हवा में लिखा, तो अबस है और नमाज मकरूहे-तहरीमी होगी।

#(गुन्या शरहे मुन्या; बहारे-शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-155)
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ईदे मीलादुन्नबी पर मुसलमानाने अहले सुन्नत से दो बातें

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माहे रबीउल अव्वल की बारह तारीख़ को हमारे प्यारे आक़ाﷺ इस दुनिया में तश्ररीफ़ लाये और दुनिया भर के मुसलमान क़दीम ज़माने से आप की विलादत की ख़ुशी मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से मनाते चले आये हैं। माहे रबीउल अव्वल की बारहवीं तारीख़ जश्न मनाना, एक दूसरे को मुबारकबाद देना, चराग़ां करना वगैरा खैर व बरकत के काम हैं उनकी अस्ल कुरआन व हदीस से साबित है। इन बातों की मुखालफ़त करने वाला यक़ीनन राहे हक़ से भटका हुआ है।

लेकिन मौजूदा दौर में ईद मीलादुन्नबीﷺ के मौके पर लोग हद से बढ़ चुके हैं। जुलूसों में डी.जे. और ढोल जैसी आवाज़ों वाली नातें पढ़ी जाती हैं, उन की धुनों पर नौजवान डांस करते, कूदते-थिरकते हैं। कहीं छतों से खाने पीने का सामान फेंक कर रिज़्क़ की बेहुरमती की जाती है। गुम्बदे ख़ज़रा वगैरा के मुजस्समे तो जाने दीजिये अब तो ऐसी चीज़ों के मुजस्समे बनाकर घुमाये जाने लगे हैं जिनका इस्लाम से कोईतअल्लुक़ नहीं।

खुलासा यह कि अब इसमें बहुत सारीगैर शरईबातें दाखिल हो गयीं हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर इन के ख़ातमे की कोशिश करें और जहां तक हो सके सादगी, अदब व एहतराम के साथ, शरीअत के

ईदे मीलादुन्नबी के मुबारक मौके परः-

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    क्या करें ?   

☑️ नातिया महफ़िलें मुनअकिद करें जिसमें हुज़ूरﷺ के फ़ज़ाइल व मनाकिब बयान किये जायें।

☑️ अपने घर मुहल्ले, कूचे व बाजार को सजायें और झण्डे लगायें।

☑️ एक दूसरे को मुबारकबाद दें और दोस्तों को इत्र व दीगर तोहफ़ों से नवाजें। रोज़ा रखें जैसा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद पीर शरीफ़ के दिन रोज़ा रखा करते थे।

☑️ निहायत अदब व ऐहतराम सुकून व विक़ार के साथ जुलूसे मुहम्मदी में शिरकत करें।

☑️ इस्लामी बुक स्टाल लगायें, और इस्लामी किताबें बिला कीमत या कम कीमत पर तक़सीम करें।

☑️ अपने घरों में चरागां करें और बच्चों को ईदी तक़सीम करें।

☑️ इस दिन कसरत से दुरूदे पाक का विर्द करें।

☑️ सुबह सादिक के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस्तक़बाल में नज़रानये दुरूदो सलाम पेश करें और फ़ातेहा ख्वानी करें।

☑️ जुलूस के दरमियान नमाज़ का वक्त आने पर नमाज़ पहले अदा करें।


     क्या न करें?    

❎ मीलादुन्नबी के मौके पर खुशी में कोई भी गैर शरई काम हरगिज़ न करें जैसे आतिशबाज़ी, ढोल ताशा वगैरह।

❎ गानों की तर्ज पर नाते न पढ़ें न सुनें न कैसेट वगैरह में बजायें।

❎ खाने पीने की अशिया को हाथों में अदब के साथ दें। लुटाकर बर्बाद न करें कि रिज़्क की बेअदबी अल्लाह को

-: फ़रमाने रसूलल्लाह ﷺ :-

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1). मेरी बातें लोगो तक पहुंचाओ, चाहे एक ही आयत हो।

2). पाकी आधा ईमान है।

3). जन्नत की चाबी नमाज़ है और नमाज़ की चाबी वुजू।

4). एक दौर ऐसा आयेगा कि लोग मस्जिद में बैठकर दुनिया की बातें करेगें अगर तुम ऐसा दौर पाओ तो उनके पास न बैठना।

5). भूखों को खाना खिलाओ, मरीज़ को देखने जाओ और कैदी को कैद से छुड़ाओ।

6). जुमा की नमाज़ के लिये कोई भी शख्स अपने भाई को उठाकर उसकी जगह न बैठे।

7). मोमिन को मौत इस तरह आ जाती है जिस तरह माथे पर पसीना।

8). जिन्दगी में एक दिरहम सदका करना मरते वक्त सौ दिरहम सदक करने से बेहतर है।

9). तीन दुआओं के क़बूल होने में कोई शक नहीं (1) बाप की दुआ औलाद के लिये, (2) मुसाफिर की दुआ, (3) उसकी दुआ जिस पर जुल्म किया जाये।

10). जन्नत में मक्कार, कंजूस और एहसान जताने वाले न जायेंगे।

11). मज़दूर को उसका पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दिया करो।

12). शैतान उस खाने को अपने लिये हलाल समझता है जिस पर अल्लाह का नाम नहीं लिया जाता।

13). अल्लाह तआला छींक को पसन्द फ़रमाता है और जमाही को नापसन्द फरमाता है।

14). वह मोमिन नहीं जो अपना पेट भरे और उसका पड़ोसी भूखा हो।

15). दुनिया मोमिन के लिये कैदखाना है।

16). मैने जन्नत में झांका तो उसमें ज़्यादातर गरीबो को देखा और मैंने दोज़ख़ में झांका तो ज़्यादातर

हुज़ूरﷺ की पूरी ज़िन्दगी एक नज़र में

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आपका नाम-- मोहम्मदﷺ

वालिद का नाम-- हज़रत अब्दुल्लाह

वालिदा का नाम-- हज़रत आमिना

दादा का नाम-- हज़रत अब्दुल मुत्तलिब

नाना का नाम-- वहब

विलादत (पैदाइश)-- 12 रबीउल अव्वल, 20 अप्रैल सन् 571 ई0, दिन पीर सुबह सादिक के वक्त

वालिदा की वफात-- 06 साल की उम्र में

मुल्केशाम (सीरिया) का पहला सफर-- 12 साल की उम्र में

मुल्केशाम (सीरिया) का दूसरा सफर-- 25 साल की उम्र में

वही की शुरूआत-- 40 साल की उम्र में

आम एलान-- 44 साल की उम्र में

चाचा अबु तालिब का इन्तकाल-- 50 साल की उम्र में सन् 10 नबवी

हज़रत ख़दीजा का विसाल-- 50 साल की उम्र में सन् 10 नबवी

मदीना को हिजरत-- 53 साल की उम्र में सन् 13 नबवी

मस्जिदें नबवी का संगे बुनियाद-- 55 साल की उम्र में सन् 01 हिजरी

हुज़ूरﷺ के मोजिज़े

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अल्लाह तआला ने अपने सभी नबियों व रसूलों को मोजिज़े (वह ख़िलाफ़े आदत काम जो नबी से जाहिर हो) अता फरमायें लेकिन सबसे ज्यादा जाहिर और रोशन मोजिज़े हमारे नबीﷺ को अता किये। उन में से कुछ मोजिज़े पेश किये जाते हैं-

▫️एक बार मक्का के मुश्रिकों ने आप से चाँद के दो टुकड़े करने को कहा, आपने फरमाया कि अगर मैं ऐसा कर दूं तो तुम ईमान ले आओगे? उन्होने इकरार कर लिया। हुज़ूरﷺ ने इशारा फरमाया, चाँद के दो टुकड़े हो गये एक टुकड़ा पहाड़ के एक तरफ और दूसरा पहाड़ के दामन में आ गया।

▪️एक आराबी (अरब के देहाती) को आपने इस्लाम पेश किया, उसने निशानी तलब की आपने फरमाया कि अगर मैं उस खजूर के गुच्छे को बुला लूं तो तुम मुसलमान हो जाओगे? उसने इकरार कर लिया, आपने उस गुच्छे को बुलाया तो वह पेड़ से उतरने लगा और जमीन पर गिर पड़ा फिर उछलते हुये, आपकी बारगाह में हाजिर हो गया। आपने उसको इशारा किया वह फिर अपनी जगह लौट गया। यह देखकर वह फौरन मुसलमान हो गया।

▫️एक सहाबी हज़रत क़तादा की आँख जंग में ज़ख़्मी हो गयी और बाहर निकल आयी। वह आपकी बारगाह में हाज़िर हुये। आपने आँख का ढेला पकड़ कर उसकी जगह रख दिया, वह आँख बिल्कुल सही हो गयी, बल्कि

हुज़ूरﷺ का रहम व करम

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हुज़ूरﷺ की पूरी ज़िन्दगी रहम व करम और अमन पसन्दी की आईनादार है। एक मर्तबा आप से अर्ज़ किया गया कि मुशरिकों की हलाकत की दुआ फरमा दें। आप ने फरमाया "मैं लानत करने और हलाकत के लिये नहीं भेजा गया हूँ बल्कि मैं तो सरापा रहमत बनाकर भेजा गया हूँ"।

जब आप लोगों को नमाज़ पढ़ाते और नमाज़ के दौरान किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ जाती तो आप नमाज़ को मुख़्तसर (छोटा) फरमा देते कि बच्चे की माँ परेशान न हो जाये।

मक्का फतह होने का वाक़या किसे याद न होगा। हिजरत से पहले मक्का के काफिरों ने आपको हर तरह से सताने की कोशिश की आप पर कूड़ा करकट फैंका, रास्ते में कांटे विछाये, जुल्म व सितम करने में कोई कसर न छोड़ी लेकिन सन 8 हिजरी में जब मक्का फतह हुआ तो आप ने अपने सख्त से सख्त दुश्मन को बुलवाया और फरमाया "बताओ मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूँ?" जवाव मिला कि हम आपसे रहम की उम्मीद करते है। आपने फरमाया "जाओ तुम को आज़ाद किया जाता है आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नही"।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

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हुज़ूरﷺ की अख़लाक़ व आदतें

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मुस्तफ़ा जाने रहमतﷺ को अल्लाह तआला ने हर तरह की खूबियों से नवाज़ा और हर खूबी सारे इन्सानों से बढ़कर अता की, इस लिये आपका अखलाक (व्यवहार)भी सबसे बेहतर कि अल्लाह तआला ने खुद आपके अच्छे अख़लाक की तारीफ की जैसा कि फरमाया "बेशक आप बुलन्द अखलाक़ पर हैं।" बल्कि अगर यह कहा जाये कि अरब के लोग आपके मोजिज़ों से ज्यादा आपके अख़लाक़ से मुतअस्सिर (प्रभावित) हुये तो गलत न होगा। यही वजह है कि आपके बुलन्द अख़लाक़ को देखकर ही न जाने कितनों को ईमान की दौलत नसीब हो गयी।

हुज़ूरﷺ बच्चों के पास गुज़रते तो उन्हें भी सलाम करते, सलाम में हमेशा पहल फरमाते, हर अच्छे काम की शुरूआत सीधे हाथ से फरमाते, बात करते तो साफ-साफ ठहर-ठहर कर तीन बार दोहराते कि हर शख्स अच्छी तरह समझ लेता, ज्यादा तर मुस्कुराते रहते यानि सिर्फ दाँत मुबारक ज़ाहिर होते पूरी ताकत से कभी न हँसे, खाने से पहले और बाद में हाथ मुबारक धोते लेकिन खाने से पहले धोकर पोछते न थे, गुस्से की हालत में चेहरे मुबारक फेर लेते, अपने काम खुद कर लिया करते बल्कि दूसरों के भी काम फरमा देते, आराम फरमाते तो दाहिनी करबट के बल सीधा हाथ ख़्सार (गाल) मुबारक के नीचे रख लेते, मजलिस में जहाँ जगह मिल जाती वहीं तशरीफ फरमा हो जाते, चलते तो ऐसा लगता जैसे ढलवान से उतर रहे, खुश्बू खूब इस्तेमाल फरमाते, दूध

हुज़ूरﷺ हुलिया शरीफ

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आपका जिस्म चमकता, दमकता, महकता। रंग बहुत ही साफ ऐसा लगता जैसे आप चांदी से बनाये गये हैं। एक सहाबी फरमाते हैं कि मैने हर तरह के रेशम देखे लेकिन जो नरमी और नफासत आपके हाथ पाक में देखी वह कहीं नज़र न आयी।

चेहरा ऐसे चमकता जैसे चौहदवीं का चाँद। जिस्म शरीफ का साया न था। जब सूरज के सामने खड़े होते तो आपके चेहरे की चमक के आगे सूरज की चमक फीकी पड़ जाती।

पेशानी कुशादा और चमकदार, आँखे बहुत खूबसूरत ऐसा लगता जैसे सुर्मा लगाये हुये हैं जबकि आप सुर्मा लगाये हुये न होते। आगे, पीछे, दायें, बायें, ऊपर, नीचे हर तरफ एक सा देखते। नज़रें हमेश झुकी झुकी रहतीं, अबरू लम्बी-लम्बी पहली के चाँद की तरह बारीक। पलके मुबारक लम्बी, रूख़्सार मुबारक भरे हुये, नाक मुबारक ऊँची, दाँत मुबारक बहुत ही चमकदार मोती की तरह, मुस्कुरादें तो रोशनी हो जाये, दाढ़ी मुबारक घनी, गेसू मुबारक लम्बे और घने कभी कानों के नर्म हिस्से तक होते कभी कंधों को चूम लेते।

दोनों कंधो के बीच सुराही दार गर्दन और उसके पीछे नबुव्वत की मोहर, सीना मुबारक चौड़ा, हाथ मुबारक

हुज़ूरﷺ का विसाल

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सन् 11 हिजरी में सफर महीने के आखिरी दिनों में आपकी अलालत की शुरूआत हुई, आपने हज़रत अबू बकर को नमाज़ पढ़ाने हुक्म दिया। हज़रत अबू बकर ने आपके हुक्म के मुताबिक़ नमाजें पढ़ाई।

12 रबीउल अव्वल पीर के दिन फज्र की नमाज के वक़्त आपकी तबीयत कुछ ठीक हुई तो आपने अपने हुजरे से पर्दा हटाकर देखा कि हज़रत अबू बकर नमाज़ पढ़ा रहे है। सबको नमाज़ पढ़ते देखकर खुशी की वजह से आप मुस्कुराने लगे। मुसलमानों की भी खुशी का कोई ठिकाना न रहा, हज़रत अबू बकर ने चाहा कि अपनी जगह से हट जायें लेकिन आप ने इशारा फरमाया कि अपनी जगह पर रहें और नमाज़ पूरी करें और आपने पर्दा गिरा दिया, इसी दिन आपका विसाल हो गया।

विसाल के बाद आपके हुक्म के मुताबिक़ आपके ख़ानदान वालों ने गुस्ल दिया और बगैर जमात के नमाज़ अदा की गयी क्योंकि आप तो अपनी ज़िन्दगी और वफात दोनो में सबके इमाम हैं। जिस जगह पर आपका विसाल हुआ उसी जगह पर बुद्ध की रात सहरी के वक्त आपकी तदफीन की गयी, कब्रे मुबारक के अन्दर आपके होठों पर यह अलफाज थे “ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत! मेरी उम्मत !" यानी मेरी उम्मत की बख्शिश फरमा।

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मस्जिदे नबवी की तामीर

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हज़रत अबू अय्यूब के घर में ठहरने के बाद आपने सोचा कि मदीने में एक मस्जिद की तामीर होनी चाहिये, इसके लिये आपने बनू नज्जार के एक बगीचे की ज़मीन पसन्द की और तामीर शुरू हो गयी।

मस्जिदे नबवी की तामीर के बाद हुज़ूरﷺ ने अपने बाकी घर वालों को भी मदीने बुलवा लिया और उनके साथ मदीना शरीफ में ही रहने लगे।

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हुज़ूरﷺ की मदीना में जलवागरी

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मदीना वालों को आपके आने की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी यह लोग आपके आने का बड़ी बेसब्री से इन्तेज़ार कर रहे थे। रोजाना ऊँची जगह पर चढ़कर आपका रास्ता देखते। यहां तक कि हुज़ूरﷺ तशरीफ ले आये। सबने एक साथ तकबीर का नारा लगाया और आपके इस्तिकबाल (स्वागत) के लिये निकल पड़े। हर तरफ खुशी का समां था। मदीने की औरतें और बच्चे छतों पर चढ़कर इस नूरानी काफिले को देख रहे थे और मदीने की बच्चियां खुशी में शेर गुनगुना रही थीं।

मदीने में हर एक यही चाहता था कि हुज़ूरﷺ हमारे घर कयाम करें, यह हालत देखकर आपने फरमाया कि मेरी ऊँटनी की मुहार छोड़ दो उसे अल्लाह की तरफ से हुक्म मिल चुका है। ऊँटनी चलते-चलते वहां रूक गयी जहां आज मस्जिदे नबवी है, उसके सामने हज़रत अबु अय्यूब जो अंसारी का मकान था।

उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा उन्होनें आपका सारा सामान उतरवाया और आपको अपने घर ले आये उन्होने बहुत ही अदब व एहतराम के साथ आपकी मेज़बानी की। हज़रत अय्यूब के घर हुज़ूरﷺ ने सात महीने

हुज़ूरﷺ की हिजरत

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हुज़ूरﷺ की इजाज़त के बाद तमाम मुसलमान मदीना पहुँच गये सिर्फ वही लोग पीछे रह गये जिन्हें मक्का के काफिरों ने रोक लिया था या जो लोग जाने की ताकत नहीं रखते थे।

हुज़ूरﷺ तमाम मुसलमानों को रूख़्सत फरमाते रहें और खुद मक्के में ही रहे। कुरैश को अब लगा कि कहीं हुज़ूरﷺ भी मदीना न चले जायें और इसका अन्जाम उन्हें अच्छी तरह मालूम था इसलिये उन्होने जमा होकर आपके कत्ल की स्कीम बनाई।

इधर सरकारﷺ को अल्लाह तआला ने हिजरत का हुक्म दे दिया। रात को हुज़ूरﷺ ने अपने बिस्तर पर हज़रत अली को लिटा दिया और घर से बाहर आ गये। एक मुट्ठी मिट्टी ली और कुरआन की कुछ आयतें पढ़कर काफिरों की तरफ फेंक दी। किसी को पता भी न चला और हुज़ूरﷺ उनके बीच से

हुज़ूरﷺ का हज के दिनो में तबलीग़

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हुज़ूरे अक्दसﷺ हज के दिनों में अलग-अलग कबीलों के पास जाते और इस्लाम की तबलीग़ करते जिसके नतीजे में सन् 11 नबवी में मदीने के एक कबीले "खज़रज" के छः (6) लोग मुसलमान हुये।

अगले साल बारह लोगो ने आपके हाथ पर बैअत की उसके अगले साल 72 लोग इक्ट्ठा हुये और आपके हाथ पर इस बात का अहद किया कि वह इस्लाम की ख़ातिर अपनी जान की बाजी लगा देंगे।

जब यह सब लोग मदीना पहुँचे तो सब ने इस्लाम बड़ी तेजी से फैलाना शुरू कर दिया, जिससे मदीने में मुसलमानों की तादाद बढ़ने लगी और मदीना मुसलमानों के लिये एक पनाह बन गया। इसलिए हुज़ूरﷺ ने मुसलमानों को मदीना जाने की इजाज़त दे दी और

अबु तालिब की वफ़ात

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हुज़ूरﷺ और आपके खानदान के बायकाट ख़त्म होने के बाद नबुव्वत के दसवें साल अबु तालिब का इन्तेकाल हो गया, इसके कुछ दिनों के बाद हज़रत खदीज़ा का भी विसाल हो गया।

अबु तालिब के इन्तेकाल के बाद कुरैश ने जुल्म व सितम की सारी हदें पार कर दीं। आप तबलीग़ के इरादे से “ताएफ" तशरीफ़ ले गये वहां भी आपको सताया गया यहां तक कि आपकी जूतियां और मोज़े खून से भर गये।

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हज़रत उमर व हज़रत हमज़ा का मुसलमान होना

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नबुव्वत के पांचवे या छठे साल हुज़ूरﷺ के चाचा हज़रत हमज़ा ने इस्लाम कबूल कर लिया, वह इस तरह कि जब आपको मालूम हुआ कि रसूलﷺ का दुश्मन अबु जहल ने हुज़ूरﷺ को गालियां दी हैं, उस वक्त आपके हाथ में एक तीर कमान था उसको अबु जहल के सर पर इतनी ज़ोर से मारा कि उसका सर फट गया और हज़रत हमज़ा खुद मुसलमान हो गये।

हज़रत हमज़ा के मुसलमान होने का गम मक्का के काफिरों के दिलों से अभी दूर भी न हुआ था कि आपके मुसलमान होने के तीसरे दिन हज़रत उमर बिन खत्ताब भी मुसलमान हो गये। मुसलमानों ने खुशी से तकबीर का नारा लगाया जो पूरे मक्के में गूंज गया हज़रत उमर फारूक-ए-आजम ने अर्ज़ किया "या रसूलल्लाह! क्या हम हक़ पर और काफिर बातिल पर नहीं?" हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया- "खुदा की कसम तुम हक़ पर हो"अर्ज किया "तो फिर हम छिपते क्यों हैं?" इसके बाद मुसलमान दो सफों मे निकले एक सफ में हज़रत हमज़ा और दूसरी सफ में हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म थे और सारे मुसलमानों ने हरमे पाक के अन्दर जाकर नमाज़ अदा की।

बायकाट:-

इन दोनो हज़रात के मुसलमान हो जाने के बाद मक्का के काफिरों के गुस्से की आग और भड़क उठी। उन्होने

हुज़ूर ﷺ का आम एलान

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नबुव्वत को जब तीन साल हो गये तो अल्लाह तआला ने एक आयत नाज़िल की जिसमें आपको इस बात का हुक्म दिया गया कि आप खुल्लम खुल्ला इस्लाम की तबलीग़ करें।

आप कुफ्र व शिर्क और बुत परसती की खुल्लम खुल्ला बुराई बयान फ़रमाने लगे जब काफिरों ने अपने बुतों की खुल्लम खुल्ला बुराई सुनी तो वह आपके और मुसलमानों के जानी दुश्मन हो गये और हर तरह से मुसलमानों को सताने लगे।

जब काफिरों का जुल्म व सितम हद से बढ़ गया तो आपने मुसलमानों को "हब्शा'' हिजरत करने का हुक्म दिया वहाँ “नजाशी'' नाम का एक ईसाई बादशाह बहुत रहम दिल और इन्साफ पसन्द था उसने मुसलमानों को

हुज़ूरﷺ पर वही की शुरूआत

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जब आपकी उम्र शरीफ लगभग 40 वर्ष हो गयी तो आपकी तबीयत में कई बदलाव आये। आप सबसे अलग-थलग रहने लगे आप बस्ती से निकल कर एक पहाड़ की तरफ निकल जाते उसमें “हिरा" नाम की एक गार में अल्लाह की इबादत व मुजाहदे में मशगूल रहते। खाने पीने का सामान अपने साथ ले जाते और कभी हज़रत ख़दीजा दे आतीं कई-कई दिन तक आप उसी गार में रहते।

एक रात आप इसी गार में थे कि हज़रत जिबरील आये और अर्ज किया- "पढ़िये" आपने कहा “मैं नहीं पढ़ा" हज़रत जिबरील ने तीन बार इसी तरह कहा और तीनों बार आपने भी यही फरमाया चौथी बार हज़रत जिबरील ने कहा ''अपने रब के नाम से पढ़िये जिसने पैदा किया"*और सूरह इकरा की पांच आयतें पढ़कर सुनायीं यह "वही की शुरूआत" थी।

आप इन आयतों को लेकर घर तशरीफ लाये और हज़रत खदीजा से फरमाया- "मुझे चादर उढ़ाओ चादर उढ़ाओ।" आपने हज़रत खदीजा को पूरा वाक्या सुनाया और फरमाया मुझे अपनी जान का ख़तरा है। हज़रत खदीज़ा ने अर्ज़ किया “अल्लाह आपको कभी शर्मिन्दा न करेगा। आप तो रिश्तेदारों का पूरा हक़ अदा करते हैं, सच बोलते हैं बेसहारों की मदद करते हैं जरूरत वालो की जरूरत पूरी करते हैं।" हज़रत खदीज़ा की इन बातों से आपको काफी सुकून हासिल हुआ और ख़ौफ जाता रहा।

पहले हुज़ूर ﷺ छुपकर इस्लाम की दावत देते रहे जब आयते करीमा (अपने करीबी रिश्तेदारों को डराओ) नाज़िल हुई तो इस आयत के बाद आप 'सफा' पहाड़ पर चढ़ गये और सारे कबीलों को पुकारा लोग जमा हुये तो आप ने फरमाया कि अगर मैं कहूं कि इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर है और तुम्हें कत्ल करना चाहता है तो

हुज़ूरﷺ की जवानी मुबारक

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जब आपने जवानी की मंज़िल में कदम रखा तो उन तमाम बुरे कामों से दूर रहे जो आम तौर से नौजावानों में पाये जाते हैं। सच्चाई, अमानत, दयानत और तमाम अच्छी बातें और बेहतरीन आदतें आपके अन्दर पायी जाती थीं। नौजवान आपको खेल कूद की तरफ बुलाते लेकिन आप उनके साथ कभी न जाते। कुरैश आपकी सच्चाई और अमानत को मानते थे। तिजारत (व्यापार) में आप अपना मामला बहुत साफ रखते झूठ कभी न बोलते हमेशा सच बोलते। इसी लिये लोग आपको "सादिक" यानि सच्चा और "अमीन" यानि अमानतदार कहने लगे।

मक्का की एक खातून हज़रत खदीजा बहुत मालदार और बहुत ही शरीफ और पाक दामन ख़ातून थीं उनकी दरख्वास्त पर आपने तिजारत के इरादे से मुल्के शाम (सीरिया) का दूसरा सफर किया और बहुत जल्द सारा सामान बेच कर मक्का वापस आ गये। आपकी अच्छी बातें और बेहतरीन आदतों को देखकर हज़रत खदीजा ने आपके पास निकाह का पैगाम भेजा आपने मंजूर कर लिया और हज़रत ख़दीजा का निकाह आपसे हो गया उस

हुज़ूरﷺ के बचपन के हालात

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दूसरे अह्वाल की तरह हुज़ूरﷺ का बचपन भी सबसे निराला और अनोखा था बचपन में आपने कभी कपड़ों में पाखाना पेशाब न किया और न कभी बर्हना हुये और अगर कभी अचानक कपड़ा उठ भी गया तो फरिश्ते सतर छुपा देते थे। आपके इशारे पर चाँद झुक जाता और आपको रोने से बहलाता था।

एक बार आप चारागाह में थे कि फरिश्तों के सरदार हज़रत जिबरील आये, आपके सीना-ए-मुबारक को चाक किया और कल्ब मुबारक (दिल) को धोकर इल्म व इरफान से भर दिया फिर आपके सीना-ए-मुबारक को सी दिया।

जब आप 6 वर्ष के हो गये तो आपकी वालिदा अपनी एक बांदी 'उम्मे एमन' को साथ लेकर आपको मदीना शरीफ ले आयी कुछ दिन वहां गुज़ार कर आपको लेकर मक्का शरीफ वापस आ रही थीं कि *'आबवा'* नामी जगह पर वालिदा का विसाल हो गया। वहां से उम्मे एमन आपको मक्का शरीफ ले आयीं।

हज़रत आमिना के इन्तेकाल के बाद आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने आपको अपनी ज़िम्मेदारी में ले लिया और अपनी औलाद से बढ़कर चाहा लेकिन दादा की गोद में रहते हुये दो वर्ष ही गुज़रे थे कि उनका भी इन्तेकाल हो गया।

दादा की वफात के बाद आप अपने चाचा अबु तालिब के यहां परवरिश पाने लगे, अबु तालिब ने भी किफालत

विलादत-ए-मुस्तफ़ाﷺ

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हर तरफ अंधेरा था! सिर्फ अंधेरा!! कैसा अंधेरा? कुफ्र व शिर्क का अंधेरा! बुत परस्ती का अंधेरा! जुल्म व सितम का अंधेरा ! लोग इंसानियत, शराफत, हमदर्दी, अमानत व दयानत जैसे अल्फाज़ को जानते न थे। इंसानी खून की कोई कीमत न थी, ज़रा सी बात पर तलवारें निकल आतीं और खून की होली खेली जाती, फिर यह जंग नस्लों तक चलती रहती और खून के दरिया बहते रहते। कमज़ोरों को दबाना, गरीबों को सताना, जिनाकारी, बदकारी और शराबनोशी आम थी। औरत की हालत सबसे ज्यादा बुरी थी, उसके साथ जानवरों से बदतर सुलूक किया जाता था। एक खुदा को छोड़कर सैकड़ों अपने बनाये हुए खुदाओं की इबादत की जाती थी। यहां तक कि खुद काबा शरीफ के अन्दर 360 बुत रख दिये गये थे।

ऐसे संगीन और होश उड़ाने वाले हालात में 12 रबीउल अव्वल, 20 अप्रैल सन् 571 ई0 बरोज़ पीर सुबह सादिक के वक़्त एक नूर चमका और उसकी रोशनी बढ़ती गयी। देखते ही देखते उसकी किरणें पूरी दुनिया में फैल गयीं, यानि मुस्तफ़ा जाने रहमत शम्ए बज़्मे हिदायत जनाबे मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ इस दुनिया में तशरीफ ले आये।

जब आपकी विलादत हुई तो एक हज़ार साल से रौशन फारसियों के आतिश कदे की आग बुझ गई। काबे में रखे हुए बुत औंधे हो गये। किसरा के महल के 14 कंगूरे ढह गये। शैतान रंज व गम में मारा-मारा फिरा।

हज़रते जिबरील तीन झण्डे लेकर आये एक पूरब दूसरा पश्चिम तीसरा काबे की छत पर लगा दिया तमाम फरिश्तों ने एक दूसरे को मुबारक बाद दी और सूरज को बड़ी रोशनी अता की गयी। #(शिफा शरीफ)

आपकी विलादत के वक्त एक नूर ज़ाहिर हुआ जिससे आपकी वालिदा हज़रत आमिना ने शाम के महल देख लिये हज़रत आमना के पास हज़राते अम्बिया (अलैहिमुस्सलाम) तशरीफ लाये और फरमाया जब हुज़ूर ﷺकी