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नबुव्वत के पांचवे या छठे साल हुज़ूरﷺ के चाचा हज़रत हमज़ा ने इस्लाम कबूल कर लिया, वह इस तरह कि जब आपको मालूम हुआ कि रसूलﷺ का दुश्मन अबु जहल ने हुज़ूरﷺ को गालियां दी हैं, उस वक्त आपके हाथ में एक तीर कमान था उसको अबु जहल के सर पर इतनी ज़ोर से मारा कि उसका सर फट गया और हज़रत हमज़ा खुद मुसलमान हो गये।
हज़रत हमज़ा के मुसलमान होने का गम मक्का के काफिरों के दिलों से अभी दूर भी न हुआ था कि आपके मुसलमान होने के तीसरे दिन हज़रत उमर बिन खत्ताब भी मुसलमान हो गये। मुसलमानों ने खुशी से तकबीर का नारा लगाया जो पूरे मक्के में गूंज गया हज़रत उमर फारूक-ए-आजम ने अर्ज़ किया "या रसूलल्लाह! क्या हम हक़ पर और काफिर बातिल पर नहीं?" हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया- "खुदा की कसम तुम हक़ पर हो"अर्ज किया "तो फिर हम छिपते क्यों हैं?" इसके बाद मुसलमान दो सफों मे निकले एक सफ में हज़रत हमज़ा और दूसरी सफ में हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म थे और सारे मुसलमानों ने हरमे पाक के अन्दर जाकर नमाज़ अदा की।
बायकाट:-
इन दोनो हज़रात के मुसलमान हो जाने के बाद मक्का के काफिरों के गुस्से की आग और भड़क उठी। उन्होने
ठान लिया कि जब तक माआज़ अल्लाह हुज़ूरﷺ को उनके हवाले नहीं किया जाता तब तक आपके खानदान का बायकाट किया जाये, और इस अहदनामें को लिखकर काबे के अन्दर लटका दिया।
काफिरों के इस अहद के बाद हुज़ूरﷺ अपने खानदान वालों को साथ लेकर मक्का की एक घाटी में तशरीफ ले गये वहां आप ने अपने खानदान वालों के साथ बड़े सख्त दिन गुज़ारे। यह बायकाट तीन साल तक रहा।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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नबुव्वत के पांचवे या छठे साल हुज़ूरﷺ के चाचा हज़रत हमज़ा ने इस्लाम कबूल कर लिया, वह इस तरह कि जब आपको मालूम हुआ कि रसूलﷺ का दुश्मन अबु जहल ने हुज़ूरﷺ को गालियां दी हैं, उस वक्त आपके हाथ में एक तीर कमान था उसको अबु जहल के सर पर इतनी ज़ोर से मारा कि उसका सर फट गया और हज़रत हमज़ा खुद मुसलमान हो गये।
हज़रत हमज़ा के मुसलमान होने का गम मक्का के काफिरों के दिलों से अभी दूर भी न हुआ था कि आपके मुसलमान होने के तीसरे दिन हज़रत उमर बिन खत्ताब भी मुसलमान हो गये। मुसलमानों ने खुशी से तकबीर का नारा लगाया जो पूरे मक्के में गूंज गया हज़रत उमर फारूक-ए-आजम ने अर्ज़ किया "या रसूलल्लाह! क्या हम हक़ पर और काफिर बातिल पर नहीं?" हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया- "खुदा की कसम तुम हक़ पर हो"अर्ज किया "तो फिर हम छिपते क्यों हैं?" इसके बाद मुसलमान दो सफों मे निकले एक सफ में हज़रत हमज़ा और दूसरी सफ में हज़रत उमर फारूक-ए-आज़म थे और सारे मुसलमानों ने हरमे पाक के अन्दर जाकर नमाज़ अदा की।
बायकाट:-
इन दोनो हज़रात के मुसलमान हो जाने के बाद मक्का के काफिरों के गुस्से की आग और भड़क उठी। उन्होने
ठान लिया कि जब तक माआज़ अल्लाह हुज़ूरﷺ को उनके हवाले नहीं किया जाता तब तक आपके खानदान का बायकाट किया जाये, और इस अहदनामें को लिखकर काबे के अन्दर लटका दिया।
काफिरों के इस अहद के बाद हुज़ूरﷺ अपने खानदान वालों को साथ लेकर मक्का की एक घाटी में तशरीफ ले गये वहां आप ने अपने खानदान वालों के साथ बड़े सख्त दिन गुज़ारे। यह बायकाट तीन साल तक रहा।
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