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सन् 11 हिजरी में सफर महीने के आखिरी दिनों में आपकी अलालत की शुरूआत हुई, आपने हज़रत अबू बकर को नमाज़ पढ़ाने हुक्म दिया। हज़रत अबू बकर ने आपके हुक्म के मुताबिक़ नमाजें पढ़ाई।

12 रबीउल अव्वल पीर के दिन फज्र की नमाज के वक़्त आपकी तबीयत कुछ ठीक हुई तो आपने अपने हुजरे से पर्दा हटाकर देखा कि हज़रत अबू बकर नमाज़ पढ़ा रहे है। सबको नमाज़ पढ़ते देखकर खुशी की वजह से आप मुस्कुराने लगे। मुसलमानों की भी खुशी का कोई ठिकाना न रहा, हज़रत अबू बकर ने चाहा कि अपनी जगह से हट जायें लेकिन आप ने इशारा फरमाया कि अपनी जगह पर रहें और नमाज़ पूरी करें और आपने पर्दा गिरा दिया, इसी दिन आपका विसाल हो गया।

विसाल के बाद आपके हुक्म के मुताबिक़ आपके ख़ानदान वालों ने गुस्ल दिया और बगैर जमात के नमाज़ अदा की गयी क्योंकि आप तो अपनी ज़िन्दगी और वफात दोनो में सबके इमाम हैं। जिस जगह पर आपका विसाल हुआ उसी जगह पर बुद्ध की रात सहरी के वक्त आपकी तदफीन की गयी, कब्रे मुबारक के अन्दर आपके होठों पर यह अलफाज थे “ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत! मेरी उम्मत !" यानी मेरी उम्मत की बख्शिश फरमा।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

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