-------------------------------------------------------
हर तरफ अंधेरा था! सिर्फ अंधेरा!! कैसा अंधेरा? कुफ्र व शिर्क का अंधेरा! बुत परस्ती का अंधेरा! जुल्म व सितम का अंधेरा ! लोग इंसानियत, शराफत, हमदर्दी, अमानत व दयानत जैसे अल्फाज़ को जानते न थे। इंसानी खून की कोई कीमत न थी, ज़रा सी बात पर तलवारें निकल आतीं और खून की होली खेली जाती, फिर यह जंग नस्लों तक चलती रहती और खून के दरिया बहते रहते। कमज़ोरों को दबाना, गरीबों को सताना, जिनाकारी, बदकारी और शराबनोशी आम थी। औरत की हालत सबसे ज्यादा बुरी थी, उसके साथ जानवरों से बदतर सुलूक किया जाता था। एक खुदा को छोड़कर सैकड़ों अपने बनाये हुए खुदाओं की इबादत की जाती थी। यहां तक कि खुद काबा शरीफ के अन्दर 360 बुत रख दिये गये थे।

ऐसे संगीन और होश उड़ाने वाले हालात में 12 रबीउल अव्वल, 20 अप्रैल सन् 571 ई0 बरोज़ पीर सुबह सादिक के वक़्त एक नूर चमका और उसकी रोशनी बढ़ती गयी। देखते ही देखते उसकी किरणें पूरी दुनिया में फैल गयीं, यानि मुस्तफ़ा जाने रहमत शम्ए बज़्मे हिदायत जनाबे मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह ﷺ इस दुनिया में तशरीफ ले आये।

जब आपकी विलादत हुई तो एक हज़ार साल से रौशन फारसियों के आतिश कदे की आग बुझ गई। काबे में रखे हुए बुत औंधे हो गये। किसरा के महल के 14 कंगूरे ढह गये। शैतान रंज व गम में मारा-मारा फिरा।

हज़रते जिबरील तीन झण्डे लेकर आये एक पूरब दूसरा पश्चिम तीसरा काबे की छत पर लगा दिया तमाम फरिश्तों ने एक दूसरे को मुबारक बाद दी और सूरज को बड़ी रोशनी अता की गयी। #(शिफा शरीफ)

आपकी विलादत के वक्त एक नूर ज़ाहिर हुआ जिससे आपकी वालिदा हज़रत आमिना ने शाम के महल देख लिये हज़रत आमना के पास हज़राते अम्बिया (अलैहिमुस्सलाम) तशरीफ लाये और फरमाया जब हुज़ूर ﷺकी
विलादत हो जाये तो उनका नाम मोहम्मद ﷺ रखना।

आपकी वालिदा फरमाती हैं कि जब आपकी विलादत हो गयी तो मैंने देखा कि आपके सुर्मा और तेल लगा हुआ है। आप ख़तनाशुदा हैं और रेशम से ज्यादा मुलायम कपड़े में लिपटे हुये हैं। इसी बीच तीन शख्स आये उनके चेहरे चाँद की तरह चमक रहे थे एक के हाथ में चाँदी का लोटा दूसरे के हाथ में ज़बरजद (एक कीमती पत्थर) की तश्त तीसरे के हाथ में एक सफेद रेशम था, जिसमें एक मुहर चमक रही थी उनमें से एक शख्स ने चाँदी के लोटे से आपको सात बार गुस्ल दिया फिर आपके दोनो कांधों के बीच में मोहरे नबुव्वत लगा दी।

आपकी विलादत के सातवें दिन आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिव ने आपकी तरफ से कुर्बानी की और कुरैश को खाने पर बुलाया।

सबसे पहले आपने हज़रत सुवैबा का दूध पिया फिर अपनी हज़रत आमिना का, इसके बाद बाकी तमाम अर्सा हज़रत हलीमा के दूध से सैराब होते रहे।

-------------------------------------------------------
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

📌 इस किताब के दूसरे पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/chand.html