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हुज़ूरﷺ की पूरी ज़िन्दगी रहम व करम और अमन पसन्दी की आईनादार है। एक मर्तबा आप से अर्ज़ किया गया कि मुशरिकों की हलाकत की दुआ फरमा दें। आप ने फरमाया "मैं लानत करने और हलाकत के लिये नहीं भेजा गया हूँ बल्कि मैं तो सरापा रहमत बनाकर भेजा गया हूँ"।

जब आप लोगों को नमाज़ पढ़ाते और नमाज़ के दौरान किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ जाती तो आप नमाज़ को मुख़्तसर (छोटा) फरमा देते कि बच्चे की माँ परेशान न हो जाये।

मक्का फतह होने का वाक़या किसे याद न होगा। हिजरत से पहले मक्का के काफिरों ने आपको हर तरह से सताने की कोशिश की आप पर कूड़ा करकट फैंका, रास्ते में कांटे विछाये, जुल्म व सितम करने में कोई कसर न छोड़ी लेकिन सन 8 हिजरी में जब मक्का फतह हुआ तो आप ने अपने सख्त से सख्त दुश्मन को बुलवाया और फरमाया "बताओ मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूँ?" जवाव मिला कि हम आपसे रहम की उम्मीद करते है। आपने फरमाया "जाओ तुम को आज़ाद किया जाता है आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नही"।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

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