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मुस्तफ़ा जाने रहमतﷺ को अल्लाह तआला ने हर तरह की खूबियों से नवाज़ा और हर खूबी सारे इन्सानों से बढ़कर अता की, इस लिये आपका अखलाक (व्यवहार)भी सबसे बेहतर कि अल्लाह तआला ने खुद आपके अच्छे अख़लाक की तारीफ की जैसा कि फरमाया "बेशक आप बुलन्द अखलाक़ पर हैं।" बल्कि अगर यह कहा जाये कि अरब के लोग आपके मोजिज़ों से ज्यादा आपके अख़लाक़ से मुतअस्सिर (प्रभावित) हुये तो गलत न होगा। यही वजह है कि आपके बुलन्द अख़लाक़ को देखकर ही न जाने कितनों को ईमान की दौलत नसीब हो गयी।
हुज़ूरﷺ बच्चों के पास गुज़रते तो उन्हें भी सलाम करते, सलाम में हमेशा पहल फरमाते, हर अच्छे काम की शुरूआत सीधे हाथ से फरमाते, बात करते तो साफ-साफ ठहर-ठहर कर तीन बार दोहराते कि हर शख्स अच्छी तरह समझ लेता, ज्यादा तर मुस्कुराते रहते यानि सिर्फ दाँत मुबारक ज़ाहिर होते पूरी ताकत से कभी न हँसे, खाने से पहले और बाद में हाथ मुबारक धोते लेकिन खाने से पहले धोकर पोछते न थे, गुस्से की हालत में चेहरे मुबारक फेर लेते, अपने काम खुद कर लिया करते बल्कि दूसरों के भी काम फरमा देते, आराम फरमाते तो दाहिनी करबट के बल सीधा हाथ ख़्सार (गाल) मुबारक के नीचे रख लेते, मजलिस में जहाँ जगह मिल जाती वहीं तशरीफ फरमा हो जाते, चलते तो ऐसा लगता जैसे ढलवान से उतर रहे, खुश्बू खूब इस्तेमाल फरमाते, दूध
बहुत पसन्द फरमाते, पानी तीन सांस में चूस कर पीते, इमामा शरीफ जेबतन फरमाते जिस में शिमला भी होता, सफेद रंग की टोपी भी पहनना साबित है।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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मुस्तफ़ा जाने रहमतﷺ को अल्लाह तआला ने हर तरह की खूबियों से नवाज़ा और हर खूबी सारे इन्सानों से बढ़कर अता की, इस लिये आपका अखलाक (व्यवहार)भी सबसे बेहतर कि अल्लाह तआला ने खुद आपके अच्छे अख़लाक की तारीफ की जैसा कि फरमाया "बेशक आप बुलन्द अखलाक़ पर हैं।" बल्कि अगर यह कहा जाये कि अरब के लोग आपके मोजिज़ों से ज्यादा आपके अख़लाक़ से मुतअस्सिर (प्रभावित) हुये तो गलत न होगा। यही वजह है कि आपके बुलन्द अख़लाक़ को देखकर ही न जाने कितनों को ईमान की दौलत नसीब हो गयी।
हुज़ूरﷺ बच्चों के पास गुज़रते तो उन्हें भी सलाम करते, सलाम में हमेशा पहल फरमाते, हर अच्छे काम की शुरूआत सीधे हाथ से फरमाते, बात करते तो साफ-साफ ठहर-ठहर कर तीन बार दोहराते कि हर शख्स अच्छी तरह समझ लेता, ज्यादा तर मुस्कुराते रहते यानि सिर्फ दाँत मुबारक ज़ाहिर होते पूरी ताकत से कभी न हँसे, खाने से पहले और बाद में हाथ मुबारक धोते लेकिन खाने से पहले धोकर पोछते न थे, गुस्से की हालत में चेहरे मुबारक फेर लेते, अपने काम खुद कर लिया करते बल्कि दूसरों के भी काम फरमा देते, आराम फरमाते तो दाहिनी करबट के बल सीधा हाथ ख़्सार (गाल) मुबारक के नीचे रख लेते, मजलिस में जहाँ जगह मिल जाती वहीं तशरीफ फरमा हो जाते, चलते तो ऐसा लगता जैसे ढलवान से उतर रहे, खुश्बू खूब इस्तेमाल फरमाते, दूध
बहुत पसन्द फरमाते, पानी तीन सांस में चूस कर पीते, इमामा शरीफ जेबतन फरमाते जिस में शिमला भी होता, सफेद रंग की टोपी भी पहनना साबित है।
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