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जब आपकी उम्र शरीफ लगभग 40 वर्ष हो गयी तो आपकी तबीयत में कई बदलाव आये। आप सबसे अलग-थलग रहने लगे आप बस्ती से निकल कर एक पहाड़ की तरफ निकल जाते उसमें “हिरा" नाम की एक गार में अल्लाह की इबादत व मुजाहदे में मशगूल रहते। खाने पीने का सामान अपने साथ ले जाते और कभी हज़रत ख़दीजा दे आतीं कई-कई दिन तक आप उसी गार में रहते।

एक रात आप इसी गार में थे कि हज़रत जिबरील आये और अर्ज किया- "पढ़िये" आपने कहा “मैं नहीं पढ़ा" हज़रत जिबरील ने तीन बार इसी तरह कहा और तीनों बार आपने भी यही फरमाया चौथी बार हज़रत जिबरील ने कहा ''अपने रब के नाम से पढ़िये जिसने पैदा किया"*और सूरह इकरा की पांच आयतें पढ़कर सुनायीं यह "वही की शुरूआत" थी।

आप इन आयतों को लेकर घर तशरीफ लाये और हज़रत खदीजा से फरमाया- "मुझे चादर उढ़ाओ चादर उढ़ाओ।" आपने हज़रत खदीजा को पूरा वाक्या सुनाया और फरमाया मुझे अपनी जान का ख़तरा है। हज़रत खदीज़ा ने अर्ज़ किया “अल्लाह आपको कभी शर्मिन्दा न करेगा। आप तो रिश्तेदारों का पूरा हक़ अदा करते हैं, सच बोलते हैं बेसहारों की मदद करते हैं जरूरत वालो की जरूरत पूरी करते हैं।" हज़रत खदीज़ा की इन बातों से आपको काफी सुकून हासिल हुआ और ख़ौफ जाता रहा।

पहले हुज़ूर ﷺ छुपकर इस्लाम की दावत देते रहे जब आयते करीमा (अपने करीबी रिश्तेदारों को डराओ) नाज़िल हुई तो इस आयत के बाद आप 'सफा' पहाड़ पर चढ़ गये और सारे कबीलों को पुकारा लोग जमा हुये तो आप ने फरमाया कि अगर मैं कहूं कि इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर है और तुम्हें कत्ल करना चाहता है तो
क्या तुम मेरी बात मानोगे❓ सब ने एक ज़बान होकर कहा "ज़रूर मानेंगे, क्योंकि हमने आपको हमेशा सच्चा और आमानत वाला ही पाया है।" इसके बाद आपने फरमाया “ऐ कुरैश! मैं तुम्हें सख्त अज़ाब से डराता हूँ, अख़िरत के अज़ाब से डराता हूँ"। यह सुनकर सब लोग जिन में आपका चाचा अबू लहब भी था नाराज़ होकर चले गये।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी  अह्-लिया मोहतरमा

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