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〽️ हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक मर्तबा सहाबाइक्राम अलैहिम अर्रीजवान में तशरीफ फ़रमा थे की एक मुशरिका औरत जिसकी गोद में दो माह का शीरख्वार बच्चा था उस तरफ से गुज़री उस बच्चे ने हुज़ूरﷺ की तरफ नज़र की तो यकदम बज़बाने फसीह पुकार उठाः अस्सलाम अलैका या रसूल व या अक्-रमा ख़ल्कीअल्लाह।

माँ ने जब देखा के मेरा दो माह का बच्चा कलाम करने लगा है तो हैरान रह गई और बोली बेटा! ये कलाम करना तुझे किस ने सिखा दिया❓ और ये अल्लाह के रसूल हैं, ये तुझे किस ने बता दिया❓

बच्चा अब अपनी माँ से मुखातिब होकर कहने लगा ऐ माँ! ये कलाम करना मुझे उसी अल्लाह ने सिखाया है जिसने सब इंसानों को ये ताक़त दी है और ये देख मेरे सर पर जिब्राईले अमीन खड़े हैं जो मुझे बता रहे हैं के ये अल्लाह के रसूल हैं।

माँ ने ये ऐजाज़ देखा तो झट कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गई, मौलाना रूमी अलैह अर्रहमत मसनवी शरीफ में
फ़रमाते हैं की फिर हुज़ूर ﷺ ने उस बच्चे को मुखातिब फ़रमाया और दरयाफ्त फ़रमाया के तुम्हारा नाम क्या है❓ तो वो बोला-

अब्द ईज्ज़ा पेश एँ यकमश्त चीज़।
लेक नामम पेशे हक़ अब्दुल अज़ीज़।।

यानी या रसूलल्लाहﷺ! इस मुश्ते खाक माँ के नज़दीक तो मेरा नाम अब्दे ईज्ज़ा है लेकिन अल्लाह के नज़दीक मेरा नाम अब्दुल अज़ीज़ है।

#(नुजहत-उल-मजालिस, सफा- 78, जिल्द- 2)


🌹सबक ~
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एक दो माह का बच्चा तो हुज़ूर ﷺ को जान और मान ले और अपनी माँ को भी जन्नत में ले जाए मगर अफ्सोस उन उम्र रसीदा बदबख्तों पर जिन्होंने हुज़ूर ﷺ को ना जाना ना माना और अपनी जहालत व गुस्ताखियों से खुद भी डूबे और दूसरों को भी ले डूबे।।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 51-52, हिकायत नंबर- 31

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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