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〽️ हजरत सिद्दीके अक्कर (रादिअल्लाहु अन्हु) क़ब्ले अज़ इस्लाम एक बहुत बड़े ताजिर थे, आप तिजारत के सिलसिले में मुल्के शाम में तशरीफ फ़रमा थे के एक रात ख्वाब में देखा के चाँद और सूरज आसमान से उतर कर उनकी गोद में आ पड़े हैं, हज़रते सिद्दीके अक्बर (रादिअल्लाहु अन्हु) ने अपने हाथ से चाँद और सूरज को पकड़ कर अपने सीने से लगाया और उन्हें अपनी चादर के अन्दर कर लिया सुबह उठे तो एक इसाई राहिब के पास पहुँचे और उससे इस ख़्वाब की ताबीर पूछी।
राहिब ने पूछा आप कौन हैं❓ आपने फ़रमाया मैं अबु बक्र हूँ और मक्का का रहने वाला हूँ ।
राहिब ने पूछा कौन से कबीले से हैं आप❓ फ़रमाया-बनू हाशिम से, और ज़रियाऐ मआश क्या है❓ फ़रमाया- तिजारत।
राहिब ने कहा तो फिर गौर से सुन लो - नबी आखिर-उज्ज़माँ हज़रते मोहम्मद रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम) तशरीफ ले आए हैं वो भी इसी कबीले बनी हाशिम से हैं और वो आख़री नबी हैं और अगर वो ना होते तो खुदाऐ तआला जमीन व आसमान को पैदा ना फ़रमाता, वो अव्वलीन व आख़रीन के सरदार हैं और ऐ अबु बक्र! तुम उनके दीन में शामिल होगे और उनके वज़ीर और उनके बाद उनके खलीफा बनोगे ये है तुम्हारे ख्वाब की ताबीर और ये भी सुन लो मैंने उस पाक नबी की तारीफ व नाअत तौरात व इंजील में पढ़ी है और मैं
उन पर ईमान ला चुका हूँ और मुसलमान हूँ लेकिन इसाईयों के खौफ से अपने ईमान का इज़हार नहीं किया।
हज़रते सिद्दीक अक्बर रदिअल्लाहु अन्हु ने जब अपने ख्वाब की ये ताबीर सुनी तो इश्के रसूल का जज्बा बैदार हुआ और आप फौरन मक्क़ा मोअज्जमा में वापस आए और हुज़ूर ﷺ की तलाश करके बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए और दीदारे पुर अनवार से अपनी आँखों को ठंडा किया।
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, अबु बक्र! तुम आ गए, लो अब जल्दी करो और दीने हक में दाखिल हो जाओ। सिद्दीके अक्बर ने अर्ज किया बहुत अच्छा हुज़ूर! मगर कोई मौजज़ा तो दिखाईये। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, वो ख्वाब जो शाम में देख कर आए हो और उसकी ताबीर जों उस राहिब से सुनकर आए हो मेरा ही तो मौजज़ा है, सिद्दीके अक्बर ने ये सुन कर अर्ज किया : सदकता या रसूलल्लाही! अना अशहदअन्नाका रसूलल्लाह सच फ़रमाया ऐ अल्लाह के रसूल आपने और मैं गवाही देता हूँ के आप वाकई अल्लाह के सच्चे रसूल हैं।
#(जामऐ अलमोजज़ात, सफा- 4)
🌹सबक ~
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हज़रत अबु बक्र सिद्दीक रदीअल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वज़ीर और खलीफा बरहक हैं और हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई बात छुपी नहीं रहती आप दानाऐ गयूब हैं और ये भी मालूम हुआ के तमाम मख्लूक हमारे हुज़ूर के ही सदके में पैदा की गई है अगर हुज़ूरﷺ ना होते तो कुछ ना होता।
वो जो ना थे तो कुछ ना था, वो जो ना हों तो कुछ ना हो।
जान हैं वो जहान की, जान है तो जहान है।।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 30-31, हिकायात नंबर- 06
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
〽️ हजरत सिद्दीके अक्कर (रादिअल्लाहु अन्हु) क़ब्ले अज़ इस्लाम एक बहुत बड़े ताजिर थे, आप तिजारत के सिलसिले में मुल्के शाम में तशरीफ फ़रमा थे के एक रात ख्वाब में देखा के चाँद और सूरज आसमान से उतर कर उनकी गोद में आ पड़े हैं, हज़रते सिद्दीके अक्बर (रादिअल्लाहु अन्हु) ने अपने हाथ से चाँद और सूरज को पकड़ कर अपने सीने से लगाया और उन्हें अपनी चादर के अन्दर कर लिया सुबह उठे तो एक इसाई राहिब के पास पहुँचे और उससे इस ख़्वाब की ताबीर पूछी।
राहिब ने पूछा आप कौन हैं❓ आपने फ़रमाया मैं अबु बक्र हूँ और मक्का का रहने वाला हूँ ।
राहिब ने पूछा कौन से कबीले से हैं आप❓ फ़रमाया-बनू हाशिम से, और ज़रियाऐ मआश क्या है❓ फ़रमाया- तिजारत।
राहिब ने कहा तो फिर गौर से सुन लो - नबी आखिर-उज्ज़माँ हज़रते मोहम्मद रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम) तशरीफ ले आए हैं वो भी इसी कबीले बनी हाशिम से हैं और वो आख़री नबी हैं और अगर वो ना होते तो खुदाऐ तआला जमीन व आसमान को पैदा ना फ़रमाता, वो अव्वलीन व आख़रीन के सरदार हैं और ऐ अबु बक्र! तुम उनके दीन में शामिल होगे और उनके वज़ीर और उनके बाद उनके खलीफा बनोगे ये है तुम्हारे ख्वाब की ताबीर और ये भी सुन लो मैंने उस पाक नबी की तारीफ व नाअत तौरात व इंजील में पढ़ी है और मैं
उन पर ईमान ला चुका हूँ और मुसलमान हूँ लेकिन इसाईयों के खौफ से अपने ईमान का इज़हार नहीं किया।
हज़रते सिद्दीक अक्बर रदिअल्लाहु अन्हु ने जब अपने ख्वाब की ये ताबीर सुनी तो इश्के रसूल का जज्बा बैदार हुआ और आप फौरन मक्क़ा मोअज्जमा में वापस आए और हुज़ूर ﷺ की तलाश करके बारगाहे रिसालत में हाजिर हुए और दीदारे पुर अनवार से अपनी आँखों को ठंडा किया।
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, अबु बक्र! तुम आ गए, लो अब जल्दी करो और दीने हक में दाखिल हो जाओ। सिद्दीके अक्बर ने अर्ज किया बहुत अच्छा हुज़ूर! मगर कोई मौजज़ा तो दिखाईये। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, वो ख्वाब जो शाम में देख कर आए हो और उसकी ताबीर जों उस राहिब से सुनकर आए हो मेरा ही तो मौजज़ा है, सिद्दीके अक्बर ने ये सुन कर अर्ज किया : सदकता या रसूलल्लाही! अना अशहदअन्नाका रसूलल्लाह सच फ़रमाया ऐ अल्लाह के रसूल आपने और मैं गवाही देता हूँ के आप वाकई अल्लाह के सच्चे रसूल हैं।
#(जामऐ अलमोजज़ात, सफा- 4)
🌹सबक ~
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हज़रत अबु बक्र सिद्दीक रदीअल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वज़ीर और खलीफा बरहक हैं और हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई बात छुपी नहीं रहती आप दानाऐ गयूब हैं और ये भी मालूम हुआ के तमाम मख्लूक हमारे हुज़ूर के ही सदके में पैदा की गई है अगर हुज़ूरﷺ ना होते तो कुछ ना होता।
वो जो ना थे तो कुछ ना था, वो जो ना हों तो कुछ ना हो।
जान हैं वो जहान की, जान है तो जहान है।।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 30-31, हिकायात नंबर- 06
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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