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〽️ मदीना मुनव्वरह में एक मर्तबा बारिश नहीं हुई थी कहेत का सा आलम था और लोग बड़े परेशान थे एक जुमे के रोज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब के वाज़ फरमा रहे थे एक आराबी उठा और अर्ज़ करने लगा या रसूलल्लाहﷺ! माल हलाक हो गया और औलाद फ़ाक़ह करने लगी दुआ फरमाईये बारिश हो।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसी वक्त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए, रावी का बयान है आसमान बिलकुल साफ था अब्र का नाम व निशान तक ना था मगर मदनी सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे के पहाड़ों की मानिंद अब्र छा गए और छाते ही मिनह् बरसने लगा, हुज़ूरﷺ मिंबर पर ही तशरीफ फरमा थे के मिनह् शुरू हो गया, इतना बरसा के छत टपकने लगी और हुज़ूर ﷺ की रैश अनवर से पानी के कतरे गिरते हमने देखे फिर ये मिनह् बन्द नह हुआ बल्के हफ्ते को बरसता रहा फिर अगले दिन भी और फिर उससे अगले दिन भी हत्ता के लगातार अगले जुमे तक बरसता ही रहा और हुज़ूरﷺ जब दूसरे जुमे का वाज़ फरमाने उठे तो वही आराबी जिसने पहले जुमे में बारिश ना होने की तकलीफ अर्ज़ की थी उठा और अर्ज़ करने लगा या रसूलल्लाहﷺ! अर्ब तो माल ग़र्क़ होने लगा और मकान गिरने लगे अब फिर हाथ उठाईये के ये बारिश बन्द भी
हो।

चुनाँचे हुज़ूरﷺ ने फिर उसी वक्त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए और अपनी उंगली मुबारक से इशारा फरमा कर दुआ फरमाई के ऐ अल्लाह! हमारे इर्दगिर्द बारिश हो, हम पर ना हो, हुज़ूरﷺ का ये इशारा करना ही था के जिस-जिस तरफ हुज़ूरﷺ की उंगली गई उस तरफ से बादल फटता गया और मदीना मुनव्वरह के ऊपर ऊपर सब आसमान साफ हो गया।
#(मिश्कात शरीफ़, सफा- 528)


🌹सबक ~
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सहाबा इक्राम मुश्किल के वक्त हुज़ूर ﷺ ही की बारगाह में फरियाद लेकर आते थे और उनका यकीन था के हर मुश्किल यहीं हल होती है और वाकई वहीं हल होती रही है। इसी तरह आज भी हम हुज़ूरﷺ ही के मोहता हैं और बगैर हुज़ूरﷺ के वसीले के हम अल्लाह से कुछ भी नहीं पा सकते और सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हुकुमत बादलों पर भी जारी है।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 42, हिकायत नंबर- 18

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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