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〽️ हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़तह मक्का के बाद एक दिन मक्का मोअज़्ज़मा की एक क़ाफिरा औरत के मकान की दीवार से तकिया लगाकर किसी अपने गुलाम से गुफ्तगू फ़रमा रहे थे।

उस माकन वाली क़ाफिरा को जब पता चला के मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे मकान की दीवार से तकिया लगाए खड़े हैं तो बुग्ज़ व अदावत से उसने अपने मकान की सब खिड़कियाँ बन्द कर डाली ताकी हुज़ूर ﷺ की आवाज़ ना सुन पाए।

उसी वक्त जिब्राईले अमीन हाज़िर हुए और अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाहﷺ! ख़ुदा फ़रमाता है की अगरचे यर औरत काफ़िरा है मगर आपकी शान बड़ी अरफ़अ व बुलंद है।

चूँकि उस काफिरा के मकान की दीवार के साथ आपकी पुश्ते अनवर लग गई है इस लिए मैं नहीं चाहता के ये अब जहन्नम में जले। उस औरत ने अपने मकान की खिड़कियों को बन्द किया है मगर मैंने उसके दिल की खिड़की खोल दी है और ये सिर्फ ये उसकी दीवार से आपके तकिया
लगा कर खड़े होने की बर्कत से है।

इतने में वो औरत बेचैन होकर घर से निकली और हुज़ूरﷺ के कदमों पर गिर गई और सच्चे दिल से पुकार उठी- अशहद-अन-ला इलाहा इल-लल्लाह व अशहद अन्नका रसूल अल्लाह।

#(नुजहत-उल-मजालिस, सफा- 78, जिल्द- 2)


🌹सबक ~
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जिस औरत के मकान की दीवार से हुज़ूर ﷺ की पुश्ते अनवर लग गयी वो औरत आग से बच गई तो जिस खुश किस्मत और मुकद्दस ख़ातून हज़रते आमिना रादिअल्लाहु अन्हा के शिकम अनवर में हुज़ूर ﷺ ने क़याम फ़रमाया हो वो मुकद्दस खातून क्यों जन्नत की मालिक ना होगी फिर किस कद्र बदबख्त हैं वो लोग जो हुज़ूरﷺ के वालिदैन मोअज़मीन के मुतअल्लिक कुछ का कुछ बकते हैं।

“रदिअल्लाहु तआला अन व अलदीयह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम”

_*📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 50-51, हिकायत नंबर- 30*_

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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