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〽️ हज़रत मौला अली रादिअल्लाहु अन्हु एक बार घर तशरीफ लाए तो हजरत फ़ातिमा रादिअल्लाहु अन्हा ने कहा मैंने ये सूत काता है आप इसे बाजार ले जाईए और बेच कर आटा ले आईये ताकि हसन व हुसैन ( रादिअल्लाहु अन्हुमा) को रोटी खिलाएं।
हज़रत अली (रादिअल्लाहु अन्हु) वो सूत बाज़ार ले गए और उसे छः रुपये पर बेच दिया, फिर उन रुपयों का कुछ खरीदना चाहते थे की एक सायल ने सदा की मन्युक़रिज़ु- उल्लाहा क़रज़न हसाना।
हज़रत अली ने वो रुपये उस सायल को दे दिये, थोड़ी देर के बाद एक आराबी आया जिसके पास बड़ी फ़रबा एक ऊँटनी थी वो बोला ऐ अली ! ये ऊँटनी खरीदोगे❓ फ़रमाया पैसे पास नहीं, आराबी ने कहा उधार देता हूँ ये कह कर ऊँटनी की मिहार हज़रत अली के हाथ में दे दी और खुद चला गया।
इतने में एक दूसरा आराबी नमूदार हुआ और कहा अली! ऊँटनी देते हो❓फ़रमाया ले लो।
आराबी ने कहा तीन सौ नक़द देता हूँ ये कहा और तीन सौ नक़द हज़रत अली को दे दिए और ऊँटनी लेकर चला
गया। उसके बाद हज़रत अली ने पहले आराबी को तलाश किया मगर वो ना मिला आप घर आये और देखा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत फातिमा के पास तशरीफ़ फ़रमा हैं । हुज़ूरﷺ ने मुसकुरा कर फरमाया, अली! ऊँटनी का किस्सा तुम खुद सुनाते हो या मैं सुनाऊँ❓
हज़रत अली ने अर्ज़ किया हुज़ूर आप ही सुनाएँ फरमाया पहला आराबी जिब्राईल था और दूसरा आराबी ईसराफील था और ऊँटनी जन्नत की वो ऊँटनी थी जिस पर जन्नत में फातिमा सवार होगी। खुदा को तुम्हारा ईसार जो तुम ने छः रुपये सायल को दिए पसंद आया और उसके सिले में दुनिया में भी उसने तुम्हें उसका अज्र ऊँटनी की ख़रीद व फरोख्त के बहाने दिया।
#(जामों अलमोजज़ात, सफा- 4)
🌹सबक ~
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अल्लाह वाले खुद भूके रहकर भी मोहताजों को खाना
खिलाते हैं ये भी मालूम हुआ के हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दानाऐ ग़यूब हैं आपसे कोई बात मख़फ़ी नहीं।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 48-49, हिकायत नंबर- 28
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
📌 हिंदी हिकायात पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
〽️ हज़रत मौला अली रादिअल्लाहु अन्हु एक बार घर तशरीफ लाए तो हजरत फ़ातिमा रादिअल्लाहु अन्हा ने कहा मैंने ये सूत काता है आप इसे बाजार ले जाईए और बेच कर आटा ले आईये ताकि हसन व हुसैन ( रादिअल्लाहु अन्हुमा) को रोटी खिलाएं।
हज़रत अली (रादिअल्लाहु अन्हु) वो सूत बाज़ार ले गए और उसे छः रुपये पर बेच दिया, फिर उन रुपयों का कुछ खरीदना चाहते थे की एक सायल ने सदा की मन्युक़रिज़ु- उल्लाहा क़रज़न हसाना।
हज़रत अली ने वो रुपये उस सायल को दे दिये, थोड़ी देर के बाद एक आराबी आया जिसके पास बड़ी फ़रबा एक ऊँटनी थी वो बोला ऐ अली ! ये ऊँटनी खरीदोगे❓ फ़रमाया पैसे पास नहीं, आराबी ने कहा उधार देता हूँ ये कह कर ऊँटनी की मिहार हज़रत अली के हाथ में दे दी और खुद चला गया।
इतने में एक दूसरा आराबी नमूदार हुआ और कहा अली! ऊँटनी देते हो❓फ़रमाया ले लो।
आराबी ने कहा तीन सौ नक़द देता हूँ ये कहा और तीन सौ नक़द हज़रत अली को दे दिए और ऊँटनी लेकर चला
गया। उसके बाद हज़रत अली ने पहले आराबी को तलाश किया मगर वो ना मिला आप घर आये और देखा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत फातिमा के पास तशरीफ़ फ़रमा हैं । हुज़ूरﷺ ने मुसकुरा कर फरमाया, अली! ऊँटनी का किस्सा तुम खुद सुनाते हो या मैं सुनाऊँ❓
हज़रत अली ने अर्ज़ किया हुज़ूर आप ही सुनाएँ फरमाया पहला आराबी जिब्राईल था और दूसरा आराबी ईसराफील था और ऊँटनी जन्नत की वो ऊँटनी थी जिस पर जन्नत में फातिमा सवार होगी। खुदा को तुम्हारा ईसार जो तुम ने छः रुपये सायल को दिए पसंद आया और उसके सिले में दुनिया में भी उसने तुम्हें उसका अज्र ऊँटनी की ख़रीद व फरोख्त के बहाने दिया।
#(जामों अलमोजज़ात, सफा- 4)
🌹सबक ~
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अल्लाह वाले खुद भूके रहकर भी मोहताजों को खाना
खिलाते हैं ये भी मालूम हुआ के हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दानाऐ ग़यूब हैं आपसे कोई बात मख़फ़ी नहीं।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 48-49, हिकायत नंबर- 28
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