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〽️एक आलिम ने एक बुढ़िया को चर्खा कातते देख कर फरमाया के बुढ़िया! सारी उम्र चर्खा ही काता या कुछ अपने खुदा की भी पहचान की❓

बुढ़िया ने जवाब दिया के बेटा सब कुछ इसी चर्खें में देख लिया, फ़रमाया- बड़ी बी! ये तो बताओ के खुदा मौजूद है या नहीं❓

बुढ़िया ने जवाब दिया के हाँ हर घड़ी और रात दिन हर वक्त खुदा मौजूद है, आलिम ने फरमाया मगर इसकी दलील❓

बुढ़िया बोली, दलील ये मेरा चर्खा, आलिम ने पूछा ये कैसे❓

वो बोली वो ऐसे के जब तक मैं इस चर्खे को चलाती रहती हुँ ये बराबर चलता रहता है और जब मैं इसे छोड़ देती हुँ तब ये ठहर जाता है, तो जब इस छोटे से चर्खे को हर वक्त चलाने वाले की ज़रूरत है तो ज़मीन व आसमान, चाँद सूरज के इतने बड़े चर्खा को किस तरह चलाने वाले की ज़रूरत ना होगी❓ पस जिस तरह जमीन व आसमान के चर्खे को एक चलाने वाला चाहिए जब तक वो चलाता रहेगा ये सब चर्खे चलते रहेंगे और जब वो
छोड़ देगा तो ये ठहर जाऐंगे मगर हम ने कभी ज़मीन व आसमान, चाँद सूरज को ठहरे नहीं देखा तो जान लिया के उनका चलाने वाला हर घड़ी मौजूद है।

मौलवी साहब ने सवाल किया, अच्छा ये बताओ के आसमान व जमीन का चर्खा चलाने वाला एक है या दो❓

बुढ़िया ने जवाब दिया के एक है और इस दावे की दलील भी यही मेरा चर्खा है क्यों के जब इस चर्खे को मैं अपनी मर्जी से एक तरफ को चलाती हूँ ये चर्खा मेरी मर्जी से एक ही तरफ़ को चलता है अगर कोई दूसरी चलाने वाली भी होती फिर या तो वो मेरी मददगार होकर मेरी मर्जी के मुताबिक चर्खा चलाती तब तो चर्खा की रफ्तार तेज़ हो जाती और इस चर्खे की रफ्तार में फर्क आकर नतीजा हासिल ना होता और अगर वो मेरी मर्जी के खिलाफ और मेरे चलाने की मुखालिफ जहेत पर चलाती तो ये चर्खा चलने से ठहर जाता या टूट जाता मगर ऐसा नहीं होता इस वजह से के कोई दूसरी चलाने वाली नहीं है।

इसी तरह आसमान व जमीन का चलाने वाला अगर कोई दूसरा होता तो जरूर आसमानी चर्खा की रफ्तार तेज़ होकर दिन रात के निजाम में फर्क आ जाता या चलने से ठहर जाता या टूट जाता जब ऐसा नहीं है तो ज़रूर आसमान व जमीन के चर्खे को चलाने वाला एक ही है।
#(सीरत-उल-सालेहीन स०:3)


🌹सबक ~
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दुनिया की हर चीज़ अपने खालिक के वजूद और उसकी यक्ताई पर शाहिद है मगर अक्ले सलीम दरकार है।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 25-26, हिकायात नंबर- 03

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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