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〽️ किताब-उल-मुसतज़रफ़ और हज्जतुल्लाह अली अलआलमीन और तारीखे इब्ने असाकर में है के हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से एक हजार साल पैश्तर यमन का बादशाह तुब्बऐ अव्वल हमेरी था।
एक मर्तबा वो अपनी सल्तनत के दौरे को निकला, बारह हजार आलिम और हकीम और एक लाख बत्तीस हजार सवार और एक लाख तेरह हज़ार पियादे अपने हमराह लिए और इस शान से निकला के जहाँ भी पहुँचता उसकी शान व शौकते शाही देखकर मख्लूके खुदा चारों तरफ से नजारे को जमा हो जाती थी।
ये बादशाह जब दौरा करता हुआ मक्का पहुँचा तो अहले मक्का से कोई उसे देखने ना आया, बादशाह हैरान हुआ और अपने वज़ीरे आज़म से इसकी वजह पूछी तो उसने बताया के इस शहर में एक घर है जिसे बैत-उल्लाह कहते हैं, उसकी और उसके खादिमों की जो यहाँ के बाशिन्दे हैं तमाम लोग बेहद तअज़ीम करते हैं और जितना आपका लश्कर है उससे कहीं ज्यादा दूर और नज़दीक के लोग उस घर की जियारत को आते हैं और यहाँ के बाशिन्दों की खिदमत करके चले जाते हैं, फिर आपका लश्कर उनके ख़याल में क्यों आए।
ये सुन कर बादशाह को गुस्सा आया और कसम खा कर कहने लगा के मैं उस घर को खुदवा दूंगा और यहाँ के बाशिन्दों को क़त्ल करवाऊँगा, ये कहना था के बादशाह के नाक, मुंह और आँखों से खून बहना शुरू हो गया और ऐसा बदबूदार माद्दा बहने लगा के उसके पास बैठने की भी किसी को ताक़त ना रही, इस मर्ज का इलाज किया गया मगर अफाका ना हुआ।
शाम के वक्त बादशाह के हमराही उलमा में से एक आलिम रब्बानी तशरीफ़ लाए और नब्ज़ देख कर फ़रमाया,
मर्ज आसमानी है और इलाज ज़मीन का हो रहा है, ऐ बादशाह! आपने अगर कोई बुरी नीयत की है तो फौरन उससे तौबा कीजिए, बादशाह ने दिल ही दिल में बैत-उल्लाह शरीफ और खुद्दामेकअबा के मुतअल्लिक अपने इरादे से तौबा की, तौबा करते ही उसका वो खून और माद्दा बहना बन्द हो गया और फिर सेहत की खुशी में उसने बैत-उल्लाह शरीफ को रेशम गिलाफ चढ़ाया और शहर के हर बशिन्दे को सात-सात अशर्फी और सात-सात रेशमी जोड़े नज्र किए।
फिर यहाँ से चल कर जब मदीना मुनव्वरह पहुँचा तो हमराही उल्मा ने जो कुतुब समाविया के आलिम थे वहाँ की मिट्टी को सुंघा और कंकरियों को देखा और नबी आख़िर-उज्ज़माँ की हिज़रतगाह की जो अलामतें उन्होंने पढी थीं, उनके मुताबिक उस सरज़मीन को पाया तो बाहम अहेद कर लिया के यहाँ ही मर जाऐंगे मगर इस सर जमीन को ना छोड़ेंगे, अगर हमारी किस्मत ने यावरी की तो कभी ना कभी जब नबी आख़िर-उज्ज़माँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यहाँ तशरीफ़ लायेंगे हमें भी जियारत का शर्फ हासिल हो जाएगा, वरना हमारी कब्रों पर तो ज़रूर ही कभी ना कभी उनकी जूति की मुकद्दस खाक उड़कर पड़ जाएगी जो हमारी निजात के लिए काफी है।
ये सुनकर बादशाह ने उन आलिमों के वास्ते चार सौ मकान बनवाये और इस बड़े आलिमे रब्बानी के मकान पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खातिर एक दो मंजिला उम्दा मकान तैयार कराया और वसीयत कर दी के जब आप तशरीफ लायें तो ये मकान आपकी अरामगाह होगी और उन चार सौ उल्मा की काफी माली इम्दाद भी की और कहा, तुम हमेशा यहीं रहो और फिर इस बड़े आलिमे रब्बानी को एक ख़त लिख दिया और कहा के मेरा ये ख़त इस नबी आखिर-उज्ज़माँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक्दस में पेश कर देना और अगर ज़िन्दगी भर तुम्हें सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज्यारत का मौका ना मिले तो अपनी औलाद को वसीयत कर देना के नस्लन बाद नस्ल मेरा ये खत महफूज़ रखें हत्ता के सरकारे अब्दकरार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पेश किया जाए, ये कहकर बादशाह वहाँ से चल दिया।
वो ख़त नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक हजार साल बाद पेश हुआ कैसे हुआ और खत में क्या लिखा था? सुनिए और अज़मते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एत्राफ फरमाईए, खत का मज़मून ये थाः
(तर्जुमह) “कमतरीन मख्लूक़ तब्बऐ अव्वल हमेरी की तरफ से, शफीअ-उलमुज़नबीन सय्यद-उलमुर्सलीन मोहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अम्मा बादः ऐ अल्लाह के हबीब मैं आप पर ईमान लाता हूँ और जो किताब आप पर नाज़िल होगी उस पर ईमान लाता हूँ और आपके दीन पर हूँ, पस अगर मुझे आपकी ज्यारत का मौका मिल गया तो बहुत अच्छा व गनीमत और अगर मैं आपकी ज्यारत ना कर सका तो मेरी शफाअत फरमाना और कयामत के रोज़ मुझे फरामोश न करना, मैं आपकी पहली उम्मत में से हूँ और आपके साथ आपकी आमद से पहले ही बैत करता हुँ, मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह एक है और आप उसके सच्चे रसूल हैं।”
शाहे यमन का ये खत नस्लन बाद नस्ल उन चार सौ उल्मा के अन्दर हर्जेजान की हैसियत से महफूज़ चला आया यहाँ तक के एक हजार साल का अर्सा गुज़र गया, उन उल्मा की औलाद इस कसरत से बढ़ी के मदीने की आबादी में कई गुना इज़ाफा हो गया और ये खत दस्त ब दस्त मअ वसीयत के उस बड़े आलिमे रब्बानी की औलाद में से हज़रत अबु अय्युब अनसारी रदिअल्लाहु अन्हु के पास पहुँचा और आपने वो ख़त अपने गुलामे खास अबु लैला की तहवील में रखा और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का-ए-मोअज्जमा से हिज्रत फरमा कर मदीना मुनव्वरह पहुँचे और मदीना मुनव्वरह की अलविदाई घाटी सनियात की घाटियों से आपकी ऊँटनी नमूदार हुई और मदीने के खुश नसीब लोग महबूबे खुदा का इस्तकबाल करने को जूक़ दर जूक़ आ रहे थे और कोई अपने मकानों का सजा रहा था तो कोई गलियों और सड़कों को साफ़ कर रहा था कोई दावत का इन्तेज़ाम कर रहा था और सब यही इसरार कर रहे थे के हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे घर तशरीफ फरमा हों।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के मेरी ऊँटनी की नकेल छोड़ दो जिस घर में ये ठहरेगी और बैठ जाएगी वही मेरी कयामगाह होगी, चुनाँचे जो दो मंजिला मकान शाहे यमन तब्बऐ ने हुज़र की खातिर बनवाया था वो उस वक्त हज़रत अबु अय्युब अनसारी रदीअल्लाहु अन्हु की तहवील में था, उसी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊँटनी जाकर ठहर गई।
लोगों ने अबु लैला को भेजा के जाओ हुज़ूर को शाहे यमन तब्बऐ का खत दे आओ जब अबु लैला हाजिर हुआ तो हुज़ूर ने उसे देखते ही फ़रमाया तू अबु लैला है? ये सुनकर अबु लैला हैरान हो गया हुजर ने फिर फ़रमाया, मैं मोहम्मद रसूल अल्लाह हूँ, शाहे यमन का जो मेरा खत तुम्हारे पास है लाओ वो मुझे दो चुनाँचे अबु लैला ने वो खत दिया और और हुजूर ने पढ़ कर फरमाया, सालेह भाई तब्बऐ को आफ़रीन व शाबास है।
#(मेज़ान-उल-दयान, सफा- 171)
🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हर ज़माने में चर्चा रहा और खुश किस्मत अफ्राद ने हर दौर में हुज़ूर से फैज़ पाया और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अगली पिछली तमाम बातें जानते हैं और ये भी मालूम हुआ के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद-आमद की खुशी में मकानात और बाजारों को सजाना और मुजय्यन करना सहाबाइक्राम की सुन्नत है, फिर आज अगर हुज़ूर की आमद की खुशी में बाज़ारों को सजाया जाए घरों को मुजय्यन किया जाए और जलूस निकाला जाए तो उसे बिदअत कहने वाला खुद क्यों बिदअती ना होगा।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 27-29, हिकायात नंबर- 05
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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〽️ किताब-उल-मुसतज़रफ़ और हज्जतुल्लाह अली अलआलमीन और तारीखे इब्ने असाकर में है के हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से एक हजार साल पैश्तर यमन का बादशाह तुब्बऐ अव्वल हमेरी था।
एक मर्तबा वो अपनी सल्तनत के दौरे को निकला, बारह हजार आलिम और हकीम और एक लाख बत्तीस हजार सवार और एक लाख तेरह हज़ार पियादे अपने हमराह लिए और इस शान से निकला के जहाँ भी पहुँचता उसकी शान व शौकते शाही देखकर मख्लूके खुदा चारों तरफ से नजारे को जमा हो जाती थी।
ये बादशाह जब दौरा करता हुआ मक्का पहुँचा तो अहले मक्का से कोई उसे देखने ना आया, बादशाह हैरान हुआ और अपने वज़ीरे आज़म से इसकी वजह पूछी तो उसने बताया के इस शहर में एक घर है जिसे बैत-उल्लाह कहते हैं, उसकी और उसके खादिमों की जो यहाँ के बाशिन्दे हैं तमाम लोग बेहद तअज़ीम करते हैं और जितना आपका लश्कर है उससे कहीं ज्यादा दूर और नज़दीक के लोग उस घर की जियारत को आते हैं और यहाँ के बाशिन्दों की खिदमत करके चले जाते हैं, फिर आपका लश्कर उनके ख़याल में क्यों आए।
ये सुन कर बादशाह को गुस्सा आया और कसम खा कर कहने लगा के मैं उस घर को खुदवा दूंगा और यहाँ के बाशिन्दों को क़त्ल करवाऊँगा, ये कहना था के बादशाह के नाक, मुंह और आँखों से खून बहना शुरू हो गया और ऐसा बदबूदार माद्दा बहने लगा के उसके पास बैठने की भी किसी को ताक़त ना रही, इस मर्ज का इलाज किया गया मगर अफाका ना हुआ।
शाम के वक्त बादशाह के हमराही उलमा में से एक आलिम रब्बानी तशरीफ़ लाए और नब्ज़ देख कर फ़रमाया,
मर्ज आसमानी है और इलाज ज़मीन का हो रहा है, ऐ बादशाह! आपने अगर कोई बुरी नीयत की है तो फौरन उससे तौबा कीजिए, बादशाह ने दिल ही दिल में बैत-उल्लाह शरीफ और खुद्दामेकअबा के मुतअल्लिक अपने इरादे से तौबा की, तौबा करते ही उसका वो खून और माद्दा बहना बन्द हो गया और फिर सेहत की खुशी में उसने बैत-उल्लाह शरीफ को रेशम गिलाफ चढ़ाया और शहर के हर बशिन्दे को सात-सात अशर्फी और सात-सात रेशमी जोड़े नज्र किए।
फिर यहाँ से चल कर जब मदीना मुनव्वरह पहुँचा तो हमराही उल्मा ने जो कुतुब समाविया के आलिम थे वहाँ की मिट्टी को सुंघा और कंकरियों को देखा और नबी आख़िर-उज्ज़माँ की हिज़रतगाह की जो अलामतें उन्होंने पढी थीं, उनके मुताबिक उस सरज़मीन को पाया तो बाहम अहेद कर लिया के यहाँ ही मर जाऐंगे मगर इस सर जमीन को ना छोड़ेंगे, अगर हमारी किस्मत ने यावरी की तो कभी ना कभी जब नबी आख़िर-उज्ज़माँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यहाँ तशरीफ़ लायेंगे हमें भी जियारत का शर्फ हासिल हो जाएगा, वरना हमारी कब्रों पर तो ज़रूर ही कभी ना कभी उनकी जूति की मुकद्दस खाक उड़कर पड़ जाएगी जो हमारी निजात के लिए काफी है।
ये सुनकर बादशाह ने उन आलिमों के वास्ते चार सौ मकान बनवाये और इस बड़े आलिमे रब्बानी के मकान पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खातिर एक दो मंजिला उम्दा मकान तैयार कराया और वसीयत कर दी के जब आप तशरीफ लायें तो ये मकान आपकी अरामगाह होगी और उन चार सौ उल्मा की काफी माली इम्दाद भी की और कहा, तुम हमेशा यहीं रहो और फिर इस बड़े आलिमे रब्बानी को एक ख़त लिख दिया और कहा के मेरा ये ख़त इस नबी आखिर-उज्ज़माँ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक्दस में पेश कर देना और अगर ज़िन्दगी भर तुम्हें सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज्यारत का मौका ना मिले तो अपनी औलाद को वसीयत कर देना के नस्लन बाद नस्ल मेरा ये खत महफूज़ रखें हत्ता के सरकारे अब्दकरार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पेश किया जाए, ये कहकर बादशाह वहाँ से चल दिया।
वो ख़त नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक हजार साल बाद पेश हुआ कैसे हुआ और खत में क्या लिखा था? सुनिए और अज़मते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एत्राफ फरमाईए, खत का मज़मून ये थाः
(तर्जुमह) “कमतरीन मख्लूक़ तब्बऐ अव्वल हमेरी की तरफ से, शफीअ-उलमुज़नबीन सय्यद-उलमुर्सलीन मोहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अम्मा बादः ऐ अल्लाह के हबीब मैं आप पर ईमान लाता हूँ और जो किताब आप पर नाज़िल होगी उस पर ईमान लाता हूँ और आपके दीन पर हूँ, पस अगर मुझे आपकी ज्यारत का मौका मिल गया तो बहुत अच्छा व गनीमत और अगर मैं आपकी ज्यारत ना कर सका तो मेरी शफाअत फरमाना और कयामत के रोज़ मुझे फरामोश न करना, मैं आपकी पहली उम्मत में से हूँ और आपके साथ आपकी आमद से पहले ही बैत करता हुँ, मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह एक है और आप उसके सच्चे रसूल हैं।”
शाहे यमन का ये खत नस्लन बाद नस्ल उन चार सौ उल्मा के अन्दर हर्जेजान की हैसियत से महफूज़ चला आया यहाँ तक के एक हजार साल का अर्सा गुज़र गया, उन उल्मा की औलाद इस कसरत से बढ़ी के मदीने की आबादी में कई गुना इज़ाफा हो गया और ये खत दस्त ब दस्त मअ वसीयत के उस बड़े आलिमे रब्बानी की औलाद में से हज़रत अबु अय्युब अनसारी रदिअल्लाहु अन्हु के पास पहुँचा और आपने वो ख़त अपने गुलामे खास अबु लैला की तहवील में रखा और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का-ए-मोअज्जमा से हिज्रत फरमा कर मदीना मुनव्वरह पहुँचे और मदीना मुनव्वरह की अलविदाई घाटी सनियात की घाटियों से आपकी ऊँटनी नमूदार हुई और मदीने के खुश नसीब लोग महबूबे खुदा का इस्तकबाल करने को जूक़ दर जूक़ आ रहे थे और कोई अपने मकानों का सजा रहा था तो कोई गलियों और सड़कों को साफ़ कर रहा था कोई दावत का इन्तेज़ाम कर रहा था और सब यही इसरार कर रहे थे के हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे घर तशरीफ फरमा हों।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के मेरी ऊँटनी की नकेल छोड़ दो जिस घर में ये ठहरेगी और बैठ जाएगी वही मेरी कयामगाह होगी, चुनाँचे जो दो मंजिला मकान शाहे यमन तब्बऐ ने हुज़र की खातिर बनवाया था वो उस वक्त हज़रत अबु अय्युब अनसारी रदीअल्लाहु अन्हु की तहवील में था, उसी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊँटनी जाकर ठहर गई।
लोगों ने अबु लैला को भेजा के जाओ हुज़ूर को शाहे यमन तब्बऐ का खत दे आओ जब अबु लैला हाजिर हुआ तो हुज़ूर ने उसे देखते ही फ़रमाया तू अबु लैला है? ये सुनकर अबु लैला हैरान हो गया हुजर ने फिर फ़रमाया, मैं मोहम्मद रसूल अल्लाह हूँ, शाहे यमन का जो मेरा खत तुम्हारे पास है लाओ वो मुझे दो चुनाँचे अबु लैला ने वो खत दिया और और हुजूर ने पढ़ कर फरमाया, सालेह भाई तब्बऐ को आफ़रीन व शाबास है।
#(मेज़ान-उल-दयान, सफा- 171)
🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हर ज़माने में चर्चा रहा और खुश किस्मत अफ्राद ने हर दौर में हुज़ूर से फैज़ पाया और मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अगली पिछली तमाम बातें जानते हैं और ये भी मालूम हुआ के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद-आमद की खुशी में मकानात और बाजारों को सजाना और मुजय्यन करना सहाबाइक्राम की सुन्नत है, फिर आज अगर हुज़ूर की आमद की खुशी में बाज़ारों को सजाया जाए घरों को मुजय्यन किया जाए और जलूस निकाला जाए तो उसे बिदअत कहने वाला खुद क्यों बिदअती ना होगा।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 27-29, हिकायात नंबर- 05
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