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〽️ जंगे अहजाब में हज़रत जाबिर रदीअल्लाहु अन्हु ने हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दअवत की और एक बकरी ज़ब्ह की, हुज़ूरﷺ जब सहाबाऐ इक्राम की मईयत में जाबिर के घर पहुँचे तो हज़रत जाबिर ने खाना लाकर आगे रखा, खाना थोड़ा था और खाने वाले ज्यादा थे।

हुज़ूरﷺ ने फरमाया थोड़े थोड़े आदमी आते जाओ और बारी बारी खाना खाते जाओ, चुनाँचे ऐसा ही हुआ के जितने आदमी खाना खा लेते वो निकल जाते, उसी तरह सब ने खाना खा लिया, हज़रत जाबिर फ़रमाते हैं के हुज़ूर ने पहले ही फ़रमा दिया था के कोई शख्स गोश्त की हड्डी ना तोड़े, ना फेंके, सब एक जगह रखते जाएँ जब सब खा चुके तो आपने हुक्म दिया के छोटी मोटी सब हड्डियाँ जमा कर दो, जमा हो गईं तो आपने अपना दस्त मुबारक उन पर रख कर कुछ पढ़ा आपका दस्ते मुबारक अभी हड्डियों के ऊपर ही था और जुबाने मुबारक से आप कुछ पढ़ ही रहे थे के वो हड्डियाँ कुछ का कुछ बनने लगीं, यहाँ तक के गोश्त पोस्त तैयार होकर काने
झाड़ती हुई वो बकरी उठ खड़ी हुई, हुज़ूरﷺ ने फरमायाः “जाबिर! ले ये अपनी बकरी ले जा।”
#(दलायल-उल-नबुव्वत, सफा- 224, जिल्द- 2)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुनब्बऐ अल-हयात और हयात बख़्श हैं, आपने मुर्दा दिलों और मुर्दा जिस्मों को भी जिन्दा फरमा दिया फिर जो लोग (मआज़ अल्लाह) हुज़ूर ﷺ को “मर कर मिट्टी में मिलने वाला” कहते हैं किस कद्र जाहिल और बेदीन हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 37-38, हिकायात नंबर- 13

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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