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〽️ एक मर्तबा एक आराबी ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा ऐ मोहम्मदﷺ! अगर आप अल्लाह के रसूल हैं तो कोई निशानी दिखलाईये। हुज़ूरﷺ ने कहा अच्छा लो देखो ! वो जो सामने दरख्त खड़ा है उसे जाकर इतना कह दो की तम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है।

चुनाँचे वो आराबी उस दरख़्त के पास गया और उससे कहा, तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है वो दरख़्त ये बात सुन कर अपने आगे पीछे और दायें बायें गिरा और अपनी जड़ें ज़मीन से उखाड़ कर ज़मीन पर चलने लगा और चलते हुए हुज़ूर ﷺ की ख़िदमत में हाजिर हो गया और अर्ज़ करने लगा, “अस्सलामुअलैकुम या रसूलल्लाह ﷺ! आराबी हुज़ूरﷺ से कहने लगा अब इसे हुक्म दीजिए के ये फिर अपनी जगह पर चला जाए।

चुनाँचे हुज़ूर ﷺ ने उसे फरमाया के जाओ वापस चले जाओ, वो दरख़्त ये सुनकर पीछे मुड़ गया और अपनी
जगह जाकर फिर क़ायम हो गया।

आराबी ये मौजज़ा देख कर मुसलमान हो गया और हुज़ूरﷺ को सज्दा करने की इजाजत चाही हुज़ूर ने फ़रमाया सज्दा करना जायज़ नहीं फिर उसने हज़ूर ﷺ के हाथ पैर मुबारक चूमने की इजाज़त चाही तो हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया हाँ ये बात जायज़ है और उसने हुज़ूरﷺ के हाथ और पैर मुबारक चूम लिए।

#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफा- 441)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर ﷺ का हुक्म दरख्तों पर भी जारी है और ये भी मालूम हुआ के बुजुर्गों के हाथ पैर चूमने जायज़ हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उससे मना नहीं फ़रमाया।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 45, हिकायत नंबर- 22

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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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