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〽️ एक रोज मुक़ामे सेहबा में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ जौहर अदा की और फिर हज़रते अली रादिअल्लाहु अन्हु को किसी काम के लिए रवाना फरमाया हज़रते अली रादिअल्लाहु अन्हु के वापस आने तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अस्र भी अदा फरमा ली और जब हज़रते अली वापस आए तो उनकी आगोश में अपना सर रख कर हुज़ूर ﷺ सो गए।
हज़रते अली ने अभी तक नमाज़ अस्र अदा ना की थी इधर सूरज को देखा तो गुरूब होने वाला था। हज़रत अली सोचने लगे के इधर रसूले खुदा आराम फरमा हैं और इधर नमाजे खुदा का वक्त हो रहा है, रसूले खुदा की इसतराहत का ख्याल रखू तो नमाज़ जाती है और नमाज़ का ख़याल करू तो रसूले खुदा की इसतराहत में खलल वाके होता
है।
करू तो क्या करू❓
आखिर मौला अली शेरे खुदा रादिअल्लाहु अन्हु ने फैसला किया के नमाज़ को कज़ा होने दो मगर हुज़ूरﷺ की नींद मुबारक में ख़लल ना आए।
चुनाँचे सूरज डूब गया और अस्र का वक्त जाता रहा, हुज़ूरﷺ उठे तो हज़रत अली को मगमूम देखकर वजह
दरयाफ्त की तो हज़रत अली ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ ! मैंने आपकी इसतराहत के पेशे नज़र अभी तक नमाज़ अस्र नहीं पढ़ी और सूरज गुरूब हो गया है।
हुज़ूरﷺ ने फरमाया तो ग़म किस बात का, लो अभी सूरज वापस आता है और फिर उसी मुकाम पर आकर रूकता है जहाँ वक्ते अस्र होता है चुनाँचे हुज़ूरﷺ ने दुआ फरमाई तो गुरूब शुदा सूरज फिर निकला और उल्टे कदम उसी जगह आकर ठहर गया जहाँ अस्र का वक्त होता है हज़रते अली ने उठकर अस्र की नमाज पढी तो सूरज गुरूब हो गया।
#(हुज्जत-उलअली-अलआलमीन, सफा- 398)
🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूरﷺ की हकूमत सूरज पर भी जारी है और आप कायनात के हर ज़र्रे के हाकिम व मुख़्तार हैं आप जैसा ना कोई हुआ ना होगा ना हो सकता है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 43-44, हिकायत नंबर- 20
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
📌 हिंदी हिकायात पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
〽️ एक रोज मुक़ामे सेहबा में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ जौहर अदा की और फिर हज़रते अली रादिअल्लाहु अन्हु को किसी काम के लिए रवाना फरमाया हज़रते अली रादिअल्लाहु अन्हु के वापस आने तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अस्र भी अदा फरमा ली और जब हज़रते अली वापस आए तो उनकी आगोश में अपना सर रख कर हुज़ूर ﷺ सो गए।
हज़रते अली ने अभी तक नमाज़ अस्र अदा ना की थी इधर सूरज को देखा तो गुरूब होने वाला था। हज़रत अली सोचने लगे के इधर रसूले खुदा आराम फरमा हैं और इधर नमाजे खुदा का वक्त हो रहा है, रसूले खुदा की इसतराहत का ख्याल रखू तो नमाज़ जाती है और नमाज़ का ख़याल करू तो रसूले खुदा की इसतराहत में खलल वाके होता
है।
करू तो क्या करू❓
आखिर मौला अली शेरे खुदा रादिअल्लाहु अन्हु ने फैसला किया के नमाज़ को कज़ा होने दो मगर हुज़ूरﷺ की नींद मुबारक में ख़लल ना आए।
चुनाँचे सूरज डूब गया और अस्र का वक्त जाता रहा, हुज़ूरﷺ उठे तो हज़रत अली को मगमूम देखकर वजह
दरयाफ्त की तो हज़रत अली ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ ! मैंने आपकी इसतराहत के पेशे नज़र अभी तक नमाज़ अस्र नहीं पढ़ी और सूरज गुरूब हो गया है।
हुज़ूरﷺ ने फरमाया तो ग़म किस बात का, लो अभी सूरज वापस आता है और फिर उसी मुकाम पर आकर रूकता है जहाँ वक्ते अस्र होता है चुनाँचे हुज़ूरﷺ ने दुआ फरमाई तो गुरूब शुदा सूरज फिर निकला और उल्टे कदम उसी जगह आकर ठहर गया जहाँ अस्र का वक्त होता है हज़रते अली ने उठकर अस्र की नमाज पढी तो सूरज गुरूब हो गया।
#(हुज्जत-उलअली-अलआलमीन, सफा- 398)
🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूरﷺ की हकूमत सूरज पर भी जारी है और आप कायनात के हर ज़र्रे के हाकिम व मुख़्तार हैं आप जैसा ना कोई हुआ ना होगा ना हो सकता है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 43-44, हिकायत नंबर- 20
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