___________________________________

हज़रते खुबैब रज़ि अल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि मैं अपनी कौम के एक शख्स के साथ एक गज़वह में नबि_ए_करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाजिर हुवा।

हमने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हम इस गज़वह में शरीक होने की ख्वाहिश रखते हैं।

सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया क्या तुम इस्लाम ले आए हो मैं ने अर्ज क्या क़ि नहीं, तो आप ने फ़रमाया हम मुश्रिकों के ख़िलाफ़ मुश्रिकों की मदद नहीं लेते हैं।

हज़रते खुबैव रजि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने इस्लाम कुबूल कर लिया और आक़ा_ए_करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हमराह जिहाद में शरीक हुवा ।

तलवारें चमकीं नेजे व भाले उठे, खनजर चलें, तीरों की बारिश हुई इस घमसान की जंग में दुश्मने दीन की तलवार मेरे कंधे पर पड़ी जिस से मेरा बाजु कट कर लटक गया।

मैं तबीबे दो जहाँ सरवरे सरवराँ ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बारगाहे बेकस पनाह में हाजिर हुवा आप ने मेरे बाजू पर लुआबे दहन लगाया और उस की जगह जोड़ दिया। मेरा कटा हुवा बाजू अपनी जगह जुड़कर ठीक हो गया फिर उस शख्स क़त्ल करके उस की बेटी से निकाह कर लिया जिसने
मुझ पर तलवार से हमला किया था।

📕 लुआबे दहने मुस्तफ़ा ﷺ, पेज: 23-24

___________________________________
🖌पोस्ट क्रेडिट -  शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

📌 इस उन्वान के दिगर पोस्ट के लिए क्लिक करिये -
https://MjrMsg.blogspot.com/p/luaabe-dahan.html