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काजी अयाज़ लिखते हैं कि कुलसूम बिन हसीन रजि अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि एक मौका पर मेरी गरदन पर
तलवार की जर्ब लगी मैं रहमते आलम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमते बा बरकत में हाजिर हुवा ।

आप ने अपना लुआबे दहने मुबारक मेरी गरदन के उस गैहरे जख्म पर मल दिया जिस से उसी वक्त मेरा जख्म
दुरूस्त हो गया और मैं मुकम्मल सिहत याब हो गया।


📕 लुआबे दहने मुस्तफ़ा ﷺ, पेज: 28

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🖌पोस्ट क्रेडिट -   शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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