🌀 पोस्ट- 64 | ✅ सच्ची हिकायत ✅
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〽️ हजरत उमर फारूक़ (रजी अल्लाहु अन्हु) के दौर में जब आजरबाइजान फतह हुआ और मुस्लमानो को मुख्तलिफ चिजें मिली, एक शख्स उतबा नामी को निहायत नफीस हलवा मिला जो उसने हजरत फारुक़-ए-आजम (रजी अल्लाहु अन्हु) की खिदमत मे तोहफा भेज दिया।
हजरत उमर फारुक़-ए-आजम (रजी अल्लाहु अन्हु) ने उस हलवे को देखकर और चखकर फरमाया: क्या यह हलवा सब ने खाया है या मेरे लिए आया है ?
लाने वाले ने अर्ज किया: हुजुर सिर्फ आपके ही लिये आया है। आपने उसी वक्त भेजने वाले के नाम एक खत लिखा-
▶ अल्लाह के बन्दे अमीरुल मोमीनीन उमर की जानीब से उतबा बिन मरकद के नाम । अम्मा बाद! याद रखो की यह हलवा ना तुम्हारी कोशीश से हासील हुआ और न ही तुम्हारी मां या तुम्हारे बाप की कोशीश से हासील हुआ है। हम तो सिर्फ वही चिज ही खायेंगे जिसे तमाम मुस्लमान अपने - अपने घर मे पेट भरकर खायें
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📕 फुतुहुल बुलदान मुगनियुल वाइजीन, सफा-473
🌹सबक ~
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यह थे हमारे असलाफ जिन्हे रिआया के हर फर्द का ख्याल था। वह कोई ऐसी चिज न खाते तो रिआया को मयस्सर न आ सके। वह रिआया को अपनी औलाद से भी ज्याद अजीज समझते थे।
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस
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