🌀 पोस्ट- 66  |  ✅ सच्ची हिकायत
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〽️ हजरत मौला अली  (रजी अल्लाहु अन्हु) एक बार घर तश्रिफ लाये तो हजरत फातिमा (रजी अल्लाहु अन्हा) ने कहा-- "मैंने यह सुत काटा है, आप इसे बाजार ले जाइये और बेचकर आटा ले आइये ताकी हसन और हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हुम) को रोटी खिला दुँ। हजरत अली (रजी अल्लाहु अन्हु) वह सुत बाजार ले गये और उसे छ: दिरहम मे बेच दिया, फिर उन दिरहम को कुछ खरिदना चाहते थे की एक साइल ने सदा की। हजरत अली ने वह रुपये उस साइल को दे दिये।

थोड़ी देर के बाद एक आराबी आया जिसके पास बड़ी फरबा एक ऊंटनी थी। वह बोला ऐ अली! यह ऊंटनी खरिदोगे? फरमाया:-पैसे पास नही है। आराबी ने कहा उधार देता हुँ। यह कहकर ऊंटनी का मुहार हजरत अली के हाथ मे दे दी और खुद चला गया।

इतने मे एक दुसरा आराबी नमुदार हुआ और कहा :- अली! ऊंटनी देते हो? फरमाया:- ले लो। आराबी ने कहा तीन सौ नगद देता हुँ। यह कहकर तीन सौ हजरत अली को दे दिया और ऊंटनी लेकर चला गया।

उसके बाद हजरत अली ने पहले आराबी को तलाश किया मगर वह न मिला। आप घर आये और देखा की हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) हजरत फातिमा के पास तश्रिफा फरमा है। हुजुर ने मुस्कुरा कर फरमाया अली! ऊंटनी का किस्सा तुम खुद सुनाते हो या मै सुनाऊ??

हजरत अली ने अर्ज किया:- हुजुर आप ही सुनाईये ।
फरमाया:- पहला आराबी जिब्राइल थे और दुसरा आराबी इसराफिल। ऊंटनी जन्नत की वह ऊंटनी थी जिस पर
जन्नत मे फातिमा सवार होगी। खुदा को तुम्हारा ईसार जो तुमने छ: रुपये साइल को दिये पसंद आया और उसके सिले मे दुनिया मे भी उसने तुम्हे इसका अज्र ऊंटनी की खरीद व फरोख्त के बहाने दिया।

📕 जामिउल मुजिजात, सफा-4


🌹सबक ~
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अल्लाह वाले खुद भुखे रहकर भी मोहताजो को खाना खिलाते हैं।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस

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