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हज़रते उतबह बिन फरक़द रजि अल्लाहु अन्हु के बदन से बड़ी दिलकश और दिल आवेज़ खश्बू आती थी जिस मजलिस में तशरीफ ले जाते थे, तो लोग तअज्जुब से पुछते थे कि ऐ उतबह कौन सा इत्र इस्तेमाल करते हो जिस की ख़श्बू हमारे इत्र की खुश्बू को माँद कर देती है।
उतबह की तीन बीवियां थीं हर एक की ख्वाहिश यही रहती थी कि जो भी इत्र इस्तेमाल करे वह दूसरी दो सौकनों से ज्यादह खुश्बू दार हो। हर बीवी बेहतर से बेहतर खुश्बू लगाने में कोशां रहती थीं।
लेकिन हज़रते उतबह ने कभी खुश्बू के लिए किसी इत्र का इस्तेमाल नहीं किया था इस के बावजूद उनके बदन से फूटने वाली कस्तूरी की महक के मुकाबले उन की बीवियों की इत्र व खुश्बू की कोई हक़ीक़त न थी ।
एक मरतबा उन की एक जौजह उम्मे आसिम ने उन से पूछा कि क्या वजह है, आप खुश्बू भी नहीं लगाते लेकिन आपके जिस्म से जो खुश्बू निकलती है उसके सामने सारे इत्र और कस्तूरियाँ बेकार हैं, इस में राज़ क्या है आप हमें बताइये?
आप ने उम्मे आसिम से कहना शुरू किया कि बचपन में मेरे जिस्म में छोटे छोटे दाने निकल आए थे जिस से बदन में खुजलाहट पैदा हो गई थी।
मैं तबीबे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाजिर हुवा, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे अपने सामने बैठने का हुक्म दिया फिर मेरे कपड़े उतरवा दिये और अपनी एक हथेली मुबारका पर लुआबे दहन रखकर दूसरी से मला उस के बाद अपने दस्ते अकदस को मेरी पीठ और मेरे पेट पर फेर दिया । यह उस
की बरकत है कि हमेशा मेरे जिस्म से ऐसी खुश्बू निकलती रहती है जिसका मुकाबला कोई दूसरी खुश्बू हरगिज़ नहीं कर सकती। ~(दलाइलुन्नबुव्वह जिल्द 6, स.133)
📕 लुआबे दहने मुस्तफ़ा ﷺ, पेज: 29-30
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
📌 इस उन्वान के दिगर पोस्ट के लिए क्लिक करिये -
https://MjrMsg.blogspot.com/p/luaabe-dahan.html
हज़रते उतबह बिन फरक़द रजि अल्लाहु अन्हु के बदन से बड़ी दिलकश और दिल आवेज़ खश्बू आती थी जिस मजलिस में तशरीफ ले जाते थे, तो लोग तअज्जुब से पुछते थे कि ऐ उतबह कौन सा इत्र इस्तेमाल करते हो जिस की ख़श्बू हमारे इत्र की खुश्बू को माँद कर देती है।
उतबह की तीन बीवियां थीं हर एक की ख्वाहिश यही रहती थी कि जो भी इत्र इस्तेमाल करे वह दूसरी दो सौकनों से ज्यादह खुश्बू दार हो। हर बीवी बेहतर से बेहतर खुश्बू लगाने में कोशां रहती थीं।
लेकिन हज़रते उतबह ने कभी खुश्बू के लिए किसी इत्र का इस्तेमाल नहीं किया था इस के बावजूद उनके बदन से फूटने वाली कस्तूरी की महक के मुकाबले उन की बीवियों की इत्र व खुश्बू की कोई हक़ीक़त न थी ।
एक मरतबा उन की एक जौजह उम्मे आसिम ने उन से पूछा कि क्या वजह है, आप खुश्बू भी नहीं लगाते लेकिन आपके जिस्म से जो खुश्बू निकलती है उसके सामने सारे इत्र और कस्तूरियाँ बेकार हैं, इस में राज़ क्या है आप हमें बताइये?
आप ने उम्मे आसिम से कहना शुरू किया कि बचपन में मेरे जिस्म में छोटे छोटे दाने निकल आए थे जिस से बदन में खुजलाहट पैदा हो गई थी।
मैं तबीबे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाजिर हुवा, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे अपने सामने बैठने का हुक्म दिया फिर मेरे कपड़े उतरवा दिये और अपनी एक हथेली मुबारका पर लुआबे दहन रखकर दूसरी से मला उस के बाद अपने दस्ते अकदस को मेरी पीठ और मेरे पेट पर फेर दिया । यह उस
की बरकत है कि हमेशा मेरे जिस्म से ऐसी खुश्बू निकलती रहती है जिसका मुकाबला कोई दूसरी खुश्बू हरगिज़ नहीं कर सकती। ~(दलाइलुन्नबुव्वह जिल्द 6, स.133)
📕 लुआबे दहने मुस्तफ़ा ﷺ, पेज: 29-30
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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